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आखिर, किसानों को क्यों परहेज है जामिया से?

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राजधानी दिल्ली की सीमाओं पर इन दिनों किसान अपनी मांगों के समर्थन में जुटे हुए हैं। इनका समर्थन जताने के चक्कर में विगत दिनों जामिया मिल्लिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी के करीब 10-15 छात्र पहुंच गए गाजीपुर बोर्डर के इलाके में। ये किसानों से कहने लगे कि वे उनके बीच में क्रांतिकारी गीत गाएंगे और नुक्कड़ नाटक खेलेंगे। जैसे ही किसानों को इनके बारे में पता चला कि इनका संबंध जामिया से है तो उन्होंने इन छात्रों को वहां से यह कहते हुए खदेड़ दिया कि वे अपना आंदोलन करना जानते हैं। उन्हें जामिया वालों के समर्थन की कोई जरूरत नहीं है। मामला गर्म हो गया था। छात्रों के पिटाई की नौबत आ गई थीI पर पुलिस के बीच-बचाव के बाद जामिया के छात्र वहां से बचकर निकल गए। सवाल यह है कि जामिया की इस तरह की नकारात्मक छवि कैसे बन गई है कि किसानों ने उनका समर्थन लेने तक से इंकार कर दिया। यह अब जामिया बिरादरी को सोचना होगा कि क्यों और कैसे उनकी ऐसी नकारात्मक छवि बन गई?

असामाजिक तत्वों का गढ़
दरअसल जामिया में विगत कुछ वर्षों से असामाजिक और उपद्रवी तत्व रहने लगे हैं। ये बात-बात पर आंदोलन ही करते हैं। आपको याद होगा कि पिछले साल जामिया में इजराईल को लेकर आंदोलन किया गया। दरअसल जामिया में एक कार्यक्रम में इजराईल को पार्टनर बनाए जाने के विरोध में कुछ छात्र नाहक ही हड़ताल करने लगे थे। इनका कहना था कि इजराईल फिलीस्तान में मानवाधिकारों का उल्लंघन कर रहा है। यह उनकी व्यक्तिगत राय तो हो सकती है, पर इसका कहां से यह मतलब हुआ कि वे एक केन्द्रीय विश्वविद्लाय को बंदूक की नोक पर अपनी राय मनवाने के लिए आंदोलन करें। किसी भी कॉलेज या यूनिवर्सिटी के छात्रों को बेशक यह अधिकार तो है कि वे अपने किसी भी तरह के विचार को व्यक्त करें, शांतिपूर्ण आंदोलन भी करें। इसमें कोई बुराई भी नहीं है। इन मांगों में उनके छात्रावास, लाइब्रेरी, भोजन, पढाई, परीक्षा या किसी अध्यापक से संबंधित बातें भी हो सकती हैं।

यहां तक सब तो सही है। गंभीर बात तो यह भी है कि जामिया प्रशासन ने आंदोलनकारी छात्रों की मांग मानते हुए कहा कि अब जामिया के किसी भी कार्यक्रम में कोई इजराईली भाग नहीं लेगा। क्या जामिया बिरादरी को पता नहीं था कि भारत-इजराईल घनिष्ठ मित्र हैं? कहते हैं कि मित्र की पहचान संकट के समय होती है। इजराईल ने भारत का हर संकट की घड़ी में साथ दिया है। इजराईल ने 1971 में पाकिस्तान के खिलाफ लड़ाई के दौरान भी भारत को मदद दी थी। इजराईल ने 1971 में भारत को लगातार गुप्त जानकारियां देकर मदद की थी। कहा तो यह भी जाता है कि तब भारतीय सुरक्षा या ख़ुफ़िया अधिकारी साइप्रस या तुर्की के रास्ते इजराईल जाते थे। वहां उनके पासपोर्ट पर मुहर तक नहीं लगती थी। उन्हें मात्र एक काग़ज़ की पर्ची दी जाती थी, जो उनके इजराईल यात्रा का सुबूत होता था। 1999 के करगिल युद्ध में इजराईल मदद के बाद ही भारत और इजराईल खासतौर पर करीब आए। तब इजराईल ने भारत को एरियल ड्रोन, लेसर गाइडेड बम, गोला बारूद और अन्य हथियारों की मदद दी।

पाकिस्तान के परमाणु बम, जिसे इस्लामी बम भी कहा जाता है, ने भी दोनों देशों को नज़दीक आने में मदद की। इजराईल को भी इस बात का डर रहा है कि कहीं यह परमाणु बम ईरान या किसी इस्लामी चरमपंथी संगठन के हाथ न लग जाए। आप कह सकते हैं कि भारत और इजराईल के बीच सैन्य संबंध सबसे अहम रहे हैं। इजराईल ने करगिल युद्ध के दौरान इस्तेमाल किए गए लेज़र गाइडेड बम और मानवरहित हवाई वाहन भी हमें दिए थे। भारत के मित्र देश के खिलाफ जामिया को अपना विरोध तो बंद करना ही होगा। इसके साथ ही पूरे देश ने देखा था जब जामिया कैंपस में नागरिकता संशोधन अधिनियम के खिलाफ किस प्रकार विरोध प्रदर्शन चालू हो गए थे। बिलकुल सुनियोजित और प्रायोजित कार्यक्रम की भांति जामिया कैंपस के पास में प्रदर्शनकारियों ने तीन बसों में आग लगा दी थी।

जामिया और गांधी
देखिए जामिया मिल्लिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी ने हाल ही में अपनी स्थापना का 100 साल का सफर पूरा कर लिया है। महात्मा गांधी के आशीर्वाद से ही 29 अक्तूबर 1920 को जामिया मिल्लिया इस्लामिया की बुनियाद रखी गई थी। ये सन 1925 में अलीगढ़ से दिल्ली के करोल बाग में शिफ्ट हो गई थी। तब जामिया को धन की बहुत कमी रहती थी। तब सब अंग्रेज़ी हुकूमत के डर से भी इसकी आर्थिक मदद करने से कतराते थे। इसके चलते ये 1925 में बड़ी आर्थिक तंगी में घिर गई। तब गांधी जी ने कहा था, ‘‘जामिया के लिए अगर मुझे भीख भी मांगनी पड़े तो मैं भीख मांगूगा।”

गांधी जी के आहवान पर जमनालाल बजाज, घनश्याम दास बिड़ला और बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के संस्थापक पंडित मदन मोहन मालवीय तक ने जामिया की आर्थिक मदद करके जिन्दा रखने में मदद की थी। यानी जामिया को खड़ा करने में सबका योगदान रहा है। इसलिए यहां पर अपनी राजनीति करने वाले कठमुल्लों को कुचलना होगा।

जामिया की देश के निर्माण में अहम भूमिका हो सकती है। यह अकेला ऐसा विश्वविद्यालय है जो भारत की थल सेना, वायु सेना और नौसेना के जवानों और अधिकारियों के लिए, आगे की पढ़ाई के अवसर मुहैया कराता है। सेना के जवान कम उम्र में भर्ती होते हैं और अन्य सेवाओं की तुलना में कम उम्र में ही रिटायर हो जाते हैं। ऐसे में सेना में रहते हुए आगे की पढ़ाई करके, अवकाश प्राप्ति के बाद उन्हें अच्छे रोज़गार पाने के अवसर मिल जाते हैं।

जामिया के हिन्दी विभाग से देश के नामवर हिंदी विद्वान जैसे प्रो. मुबीब रिजवी, प्रो. सैयद असग़र वजाहत, प्रो. अशोक चक्रधर और अब्दुल बिस्मिल्लाह जुड़े रहे हैं। इसी जामिया में आकर मुंशी प्रेमचंद ने अपनी कालजयी कहानी कफन लिखी थी।

मतलब जामिया शानदार शिक्षा का मंदिर हैं। इसे और बेहतर बनाने की जरूरत है। यहां से असामाजिक तत्वों को तो हर सूरत में खदेड़ा जाना होगा। सरकार इस पर हर साल सैकड़ों करोड़ रुपए व्यय करती है। वह धन देशभर के ईमानदार आयकर दाताओं का होता है। इसलिए जामिया मिल्लिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी को अपनी छवि को उजला करना होगा। यह संभव है अगर जामिया बिरादरी संकल्प ले ले कि यहां पर असमाजिक तत्वों के लिए कोई जगह नहीं होगी।

(लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तभकार और पूर्व सांसद हैं)

(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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