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जनगणना की प्रक्रिया में इनकार करने वाले राज्य सरकार के कर्मचारियों को हो सकती है तीन साल जेल

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नई दिल्ली। राज्य सरकार और स्थानीय निकायों के कर्मचारी जिन्हें जनगणना आयुक्त और रजिस्ट्रार जनरल ऑफ सिटिजन रजिस्ट्रेशन को क्रमशः जनगणना और राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर) की प्रक्रिया में मदद करने की जिम्मेदारी दी जाएगी, वो सेंसस ऑफ इंडिया ऐक्ट, 1948 और सिटिजनशिपर रूल्स, 2003 से बंधे होंगे। सरकारी सूत्रों ने बताया कि ऐसे कर्मचारी दी गई जिम्मेदारी से मुंह नहीं मोड़ सकते हैं।
एक अधिकारी ने बताया कि इन दोनों कानूनों के तहत चिह्नित किए गए सरकारी कर्मचारी जनगणना और एनपीआर के लिए आंकड़े जुटाने के निर्धारित दायित्व का निर्वहन करने को बाध्य हैं। यह बाध्यता एनपीआर आंकड़ा जुटाते वक्त मकानों की सूची तैयार करने की जिम्मेदारी निभाने वाले कर्मचारियों और जनगणना अधिकारियों, दोनों के लिए है।

तीन साल तक की जेल संभव
भारतीय जनगणना अधिनियम के मुताबिक, राज्य सरकारों और केंद्रशासित प्रदेशों के प्रशासकों को अपने इलाके में जनगणना के लिए अधिकारियों की नियुक्ति करना अनिवार्य है जिनमें प्रमुख जनगणना अधिकारी (डीएम), जिला एवं उप-जिला जनगणना अधिकारी, पर्यवेक्षक और प्रगणक (न्यूमरेटर) शामिल हैं। इस अधिनियम की धारा 11 के तहत जनगणना प्रक्रिया में हिस्सा लेने से इनकार करने वाले सरकारी या अन्य कर्मचारियों के लिए तीन साल की जेल या जुर्माने या जेल के साथ जुर्माने का प्रावधान है।

बंगाल ने रोकी NPR प्रोसेस
इसी तरह, एनपीआर ड्यूटी से इनकार करने वालों पर भी सिटिजनशिप रूल के नियम 17 के तहत 1 हजार रुपये तक का जुर्माना लगाने का प्रावधान किया गया है। एक अधिकारी ने बताया कि ऐसे स्टाफ पर अनुशासनिक कार्रवाई भी हो सकती है। 2021 की जनगणना के लिए इस वर्ष अप्रैल से सितंबर महीने के बीच मकानों की गणनी की जाएगी। साथ-साथ ही एनपीआर का काम भी निपटाया जाएगा। इस दौरान पश्चिम बंगाल में समस्या उत्पन्न हो सकती है क्योंकि राज्य सरकार ने कहा है कि उसने एनपीआर प्रोसेस को रोक दिया है।

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