जेनेवा। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के आपातकाल अधिकारी माइक रायन ने कहा है कि कोरोना सर्वाइवर के ब्लड में मौजूद एंटीबॉडीज नए कोरोनावायरस का संक्रमण दोबारा होने से रोक सकती हैं या नहीं, अब तक इस बात का कोई प्रमाण नहीं मिला। उनके अनुसार, अगर एंटीबॉडीज प्रभावी भी हैं तो भी ये ज्यादा लोगों में विकसित नहीं हुई हैं।
WHO की चेतावनी
WHO के महामारी विशेषज्ञों ने उन सरकारों को भी चेतावनी दी है जो एंटीबॉडी टेस्ट की तैयारी कर रहे थे। विशेषज्ञों का कहना है एक बार कोरोनावायरस से संक्रमित हुए इंसान को दोबारा संक्रमण नहीं होगा इसका कोई प्रमाण नहीं है। ब्रिटिश सरकार ने कोरोना से जूझ चुके लोगों के ब्लड में एंटीबॉडीज का स्तर पता लगाने के लिए करीब 35 लाख सीरोलॉजिकल टेस्ट कराए हैं।
एंटीबॉडीज दोबारा संक्रमण की गारंटी नहीं
अमेरिका की संक्रमण रोग विशेषज्ञ का कहना है कि कई ऐसे देश हैं जो सीरोलॉजिकल टेस्ट की सलाह दे रहे हैं लेकिन इससे इंसान में ऐसी इम्युनिटी नहीं है जो गांरटी दे सकते हैं कोरोना का संक्रमण दोबारा नहीं होगा। सीरोलॉजिकल टेस्ट सिर्फ शरीर में एंटीबॉडीज का स्तर बता सकता है। इसका मतलब ये नहीं है, वह वायरस के संक्रमण से सुरक्षित है।
क्या होती हैं एंटीबॉडीज
ये प्रोटीन से बनीं खास तरह की इम्यून कोशिकाएं होती हैं, जिसे बी-लिम्फोसाइट कहते हैं। जब भी शरीर में कोई बाहरी चीज पहुंचती है तो ये अलर्ट हो जाती हैं। बैक्टीरिया या वायरस द्वारा रिलीज किए गए विषैले पदार्थों को निष्क्रिय करने का काम यही एंटीबॉडीज करती हैं। इस तरह ये रोगाणुओं के असर को बेअसर करती हैं। जैसे कोरोना से उबर चुके मरीजों में खास तरह की एंटीबॉडीज बन चुकी हैं। जब इसे ब्लड से निकालकर दूसरे संक्रमित मरीज में डाला जाएगा तो वह भी कोरोनावायरस को हरा सकेगा।
एंटीबॉडी के लिए उठा सवाल
भारत समेत कई देशों में कोरोना सर्वाइवर की एंटीबॉडीज से दूसरे मरीजों को ठीक करने की तैयारी चल रही है। संक्रमण से मुक्त हो चुके मरीजों की एंटीबॉडीज का इस्तेमाल प्लाज्मा थैरेपी में किया जाना है। इस थैरेपी की मदद से नए मरीजों की इम्युनिटी बढ़ाकर इलाज हो सकता है लेकिन WHO के इस बयान के बाद यह थैरेपी कितना काम करेगी, इस पर सवाल उठ गया है।
एंटीबॉडी का इस्तेमाल कैसे होगा
ऐसे मरीज जो हाल ही में बीमारी से उबरे हैं। उनके शरीर में मौजूद इम्यून सिस्टम ऐसे एंटीबॉडीज बनाता है जो ताउम्र रहते हैं। ये एंटीबॉडीज ब्लड प्लाज्मा में मौजूद रहते हैं। इसे दवा में तब्दील करने के लिए ब्लड से प्लाज्मा को अलग किया जाता है और बाद में इनसे एंटीबॉडीज निकाली जाती हैं। ये एंटीबॉडीज नए मरीज के शरीर में इंजेक्ट की जाती हैं इसे प्लाज्मा डिराइव्ड थैरेपी कहते हैं। यह मरीज में तब तक रोगों से लड़ने की क्षमता बढ़ाती हैं जब तक उसका शरीर खुद ये तैयार करने के लायक न बन जाए।