देश में व्यापक रूप से बड़े बदलाव जरुरत हैं और सरकार द्वारा एक-एक करके सभी किए भी जा रहे हैं। मुझे लगता है हर बदलाव में गहराई है, दूरदर्शिता है। अभी बात कृषि सुधारों पर हो रही है। इसको लेकर किसान आन्दोलनरत हैं अब ऐसे में हमें यह समझने की जरूरत है कि पंजाब और हरियाणा के ही किसान क्यों आंदोलित हैं। इसकी जड़ ‘न्यूनतम समर्थन मूल्य’ (एमएसपी), मंडियां और मंडियों पर राजनीतिक नियंत्रण है। देश की एमएसपी पर कुल खरीद में पंजाब का हिस्सा 40 प्रतिशत से अधिक और हरियाणा का 15-20 प्रतिशत है।
एमएसपी पर खरीद केवल गेहूं और चावल की होती है, इसलिए पंजाब में अधिकांश खेती गेहूं और चावल की ही जाती है और एमएसपी पर मंडी के माध्यम से सरकार को बेच दी जाती है। यही बड़ा ‘खेल’ है। मंडियों पर राजनीतिज्ञों का वर्चस्व है। मनमाफिक एमएसपी दलालों के माध्यम से तय होता है। किसान से मोटा कमीशन, साथ ही सरकार से 2.5 प्रतिशत कमीशन। ये अनाज सरकार के गोदामों में सड़ता है। सरकार के पास पर्याप्त गोदाम हैं भी नहीं। पेपर पर खरीद भी हो जाती है और सड़ा भी दिखाया जा सकता है। पंजाब की पूरी राजनीति इसी पर आधारित है।
नए प्रावधानों से ‘खेल’ पूरी तरह बंद तो नहीं होगा, लेकिन इससे बड़ी चोट अवश्य लग सकती है। कृषि सुधार कानून में तीन प्रावधान किए गए हैं। पहला है ‘कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) विधेयक, 2020’। इसमें किसान अब अपनी फसल को मात्र मंडी के माध्यम से ही बेचने को बाध्य नहीं हैं। अब वह सीधे भी देश में कहीं भी अपनी फसल को बेच सकते हैं। मंडियो के चंगुल से मुक्त हो सकते हैं। अपनी खेती कांट्रैक्ट पर भी दे सकते हैं। बोने से पहले ही फसल का सौदा कर सकते हैं। इससे उसका स्वतः बीमा हो सकता है और वह सुरक्षित हो सकते हैं।
सरकार ने किसी भी विवाद की स्थिति में हल के लिए व्यवस्था की है इसके लिए एसडीएम को अधिकृत किया है, क्योंकि वही एक अधिकारी है जो सीधे किसान से जुड़ा होता है। प्राकृतिक स्थितियों और विपत्ति में हानि-लाभ तय करता है। अदालतों के झंझट से मुक्त रखता है। नई व्यवस्था का उद्देश्य अदालत की लंबी प्रक्रिया में किसान को उलझाना नहीं है। एसडीएम के साथ जन प्रतिनिधि भी मदद कर सकते हैं और प्रक्रिया आसान की गई है।
आवश्यक वस्तु सेवा अधिनियम 1955 में परिवर्तन के बिना बदलाव नहीं हो सकता। यह तब बना था जब देश में अन्न की काफ़ी कमी थी। व्यापारी अनुचित भंडारण कर फसल रोककर दाम बढ़ाते थे। आज स्थिति बदल चुकी है। खाद्यान बहुतायत में है। सरकार के पास खरीदकर भंडारण की व्यवस्था भी नहीं है और की भी क्यों जाए, जब निस्तारण ही नहीं है और पूरी व्यवस्था में बड़ा झोल भी है।
इस अधिनियम में छूट दी गई है कि अब आप आपातकाल और युद्ध को छोड़कर भंडारण कर सकते हैं। कृषि उत्पाद और उनके उत्पादनों का निर्यात भी कर सकते हैं। इससे किसानों की आय भी बढ़ेगी। भंडारण की व्यवस्था व्यापारी स्वयं करेंगे, सरकार पर भंडारण और एमएसपी पर खरीद का दबाव भी कम होगा। किसानों के विश्वास के लिए अभी दोनो प्रक्रियाएं चलेंगीं। सच्चाई यही है। बाकी सब अटकलें और विपक्ष विलाप है।