नई दिल्ली। महाराष्ट्र सरकार को फटकारते हुए सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुना दिया। इंटीरियर डिजाइनर को आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोप में जेल में बंद रिपब्लिक टीवी के संपादक अर्नब गोस्वामी और अन्य सह आरोपियों को जस्टिस चंद्रचूड़ की बेंच ने अंतरिम जमानत दे दी है। अंतरिम जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सख्त टिप्पणी करते हुए कहा था कि अगर राज्य सरकारें व्यक्तियों को टारगेट करती हैं, तो उन्हें पता होना चाहिए कि नागरिकों की स्वतंत्रता की रक्षा के लिए शीर्ष अदालत है। याचिकाकर्ताओं को 50,000 रुपये के व्यक्तिगत बॉन्ड पर अंतरिम जमानत पर रिहा किया जाएगा।
अर्नब मामले में सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चंद्रचूड और न्यायमूर्ति इन्दिरा बनर्जी की पीठ ने कहा कि अगर राज्य सरकारें लोगों को निशाना बनाती हैं तो उन्हें इस बात का अहसास होना चाहिए कि नागरिकों की स्वतंत्रता की रक्षा के लिए सुप्रीम कोर्ट है। शीर्ष अदालत ने इस बात पर चिंता व्यक्त की कि राज्य सरकारें कुछ लोगों को विचारधारा और मत भिन्नता के आधार पर निशाना बना रही हैं।
जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, ‘मान सकते हैं कि अर्नब पर सूइसाइड के लिए उकसाने के आरोप सही हों लेकिन यह जांच का विषय है। अगर केस लंबित है और जमानत नहीं दी जाती है तो यह अन्याय होगा।’ उन्होंने कहा, ‘मैं अर्नब का चैनल नहीं देखता और आपकी विचारधारा भी अलग हो सकती है लेकिन अगर कोर्ट अभिव्यक्ति की आजादी की रक्षा नहीं करेगा तो यह रास्ता उचित नहीं है। हमारा लोकतंत्र बहुत ही लचीला है। सरकार को टीवी के तंज को इग्नोर करना चाहिए। इस आधार पर चुनाव नहीं लड़े जाते हैं।’ जज ने महाराष्ट्र सरकार से कहा, आप देख लीजिए अर्नब के बोलने की वजह से क्या चुनाव पर कोई फर्क पड़ा है? कोर्ट में महाराष्ट्र सरकार की तरफ से वकील कपिल सिब्बल पेश हुए थे। कोर्ट ने कहा, ‘क्या किसी को पैसे न देना ही उसे आत्महत्या के लिए उकसाना हो गया? इसके लिए जमानत न देना न्याय का मजाक ही होगा।’
इस आदेश के बाद महाराष्ट्र सरकार और पुलिस की कार्यवाही पर सवालों की अब झड़ी लग चुकी है। ऐसे में अर्नब अब और जयादा घातक वार करने को तैयार होंगे।