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आर्थिक राजधानी मुंबई में कोरोना के खिलाफ सरकार का लचर सिस्टम

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मुंबई। महाराष्ट्र कोरोना संक्रमण से सबसे बुरी तरह जूझ रहा है। अभी तक राज्य में कोरोना के तीन हजार से ज्यादा मरीज हो चुके हैं और लगभग दो सौ लोगों की मौत हो चुकी है। राज्य में कोरोना संक्रमण लगातार फैलने का सबसे बड़ा कारण प्रशासनिक व्यवस्था की कमी है। आलम यह है कि एक कोरोना संक्रमित मरीज को एडमिट होने के लिए 30 घंटे तक का इंतजार करना पड़ा। राज्य में कोई सेंट्रलाइज्ड सिस्टम या सिंगल विंडो सोल्युशन ना होने के कारण आम मरीजों को भी तीन-चार अस्पतालों का चक्कर काटना पड़ रहा है। ऐसी कोई सेंट्रलाइज्ड डेस्क नहीं है, जो मरीजों को ये बता सके कि कहां पर बेड्स उपलब्ध हैं। एक अन्य कोरोना संक्रमित गर्भवती महिला को बच्चे को जन्म देने से पहले कई घटों तक अस्पतालों का चक्कर काटना पड़ा और बड़े-बड़े अधिकारी भी आसानी से बेड का इंतजाम नहीं कर सके। इस सबके बीच कोरोना से बचाव के लिए जरूरी मुख्य गाइडलाइन्स का भी पालन नहीं हो रहा है।

30 घंटे लम्बे इतंजार के बाद महिला को मिला बेड
66 साल की एक बुजुर्ग महिला को पहले से ही हार्ट संबंधी समस्या है। उसके कोरोना संक्रमित पाए जाने के बाद एक पार्किंग में 30 घंटे तक इंतजार करना पड़ा तब जाकर उसे अस्पताल में एंट्री मिल सकी। इतने लंबे इंतजार के बाद आखिर उन्हें रात को सेंट जॉर्ज हॉस्पिटल में एडमिट कराया जा सका। इतना ही नहीं, उनके 36 साल के बेटे को भी आइसोलेट नहीं किया गया जबकि वह शुरुआत से उनके साथ था। कारण था कि महिला की देखरेख करने के लिए कोई स्टाफ उपलब्ध ही नहीं था और वह खुद अपनी मां के लिए परेशान थे और लगातार उनके संपर्क में थे।

इस शख्स ने अपनी मां का सैंपल रविवार को दिया था। मंगलवार को फोन पर बताया गया कि वह कोरोना संक्रमित हैं। कोरोना संक्रमित पाए जाने के बाद इन्हें निर्देश दिए गए कि वह अपनी मां को केईएम में एडमिट कराएं। एक घंटे के इंतजार के बाद एम्बुलेंस आई। जैसे ही वे अस्पताल पहुंचे और उन्होंने बताया कि उनकी मां कोरोना पॉजिटिव हैं, तुरंत ही उनसे कहा गया कि पार्किंग में इंतजार करें। उन्हें बताया गया कि एक सिक्यॉरिटी गार्ड उन्हें बताएगा कि कब एडमिट करना है।

बैठने को कुर्सी तक नहीं मिली, भूखे पेट गुजारी रात
वह बताते हैं कि मेरी मां को किसी डॉक्टर या नर्स ने चेक तक नहीं किया। हमें बाहर इंतजार करने को कह दिया। यहां तक कि एक कुर्सी तक नहीं दी गई। मैंने कैसे भी करके अपनी मां के लिए एक व्हील चेयर खोज निकाली। मेरी मां उसी कुर्सी पर पूरे दिन और पूरी रात बैठी रहीं।’

जितनी भी बार वह पता लगाने जाते उन्हें यही कहा जाता कि अस्पताल फुल है और डॉक्टर्स बेड का इंतजाम कर रहे हैं। पूरी रात उन्हें और उनकी मां को भूखे रहना पड़ा क्योंकि कोई फूड स्टॉल या रेस्तरां या हॉस्पिटल खाना नहीं दे रहा है। अगली सुबह भी उन्हें बताया गया कि बेड उपलब्ध नहीं है। दोपहर में एक दूसरी एम्बुलेंस का इंतजाम किया गया और महिला को सेवेन हिल्स ले जाया गया। सेवेन हिल्स ने भी महिला को एडमिट करने से इनकार कर दिया और वह वापस केईएम आ गईं। आखिर में रात 9 बजे के आसपास उन्हें सेंट जॉर्ज हॉस्पिटल में एडमिट किया गया और उनके बेटे को होम क्वारंटीन में भेज दिया गया।

इस मामले में केईएम और सेवेन हिल्स के अधिकारियों ने कहा कि वह इस बारे में कुछ नहीं कर सकते थे। केईएम के डीन डॉ. हेमंत देशमुख ने कहा कि उनका अस्पताल कोविड-19 अस्पताल नहीं है। हालांकि, जब उनसे यह पूछा गया कि फिर बीएमसी ने मरीज को यहां लाने को क्यों कहा तो उन्होंने इस सवाल का जवाब नहीं दिया। दूसरी तरफ सेवेन हिल्स के इंचार्ज डॉ. मोहन जोशी ने कहा, ‘अस्पताल में एक भी बेड खाली नहीं था। बुधवार को सभी 450 बेड फुल थे।’ मोहन जोशी ने इस मुद्दे पर ज्यादा टिप्पणी करने से इनकार कर दिया।

गर्भवती महिला को चार अस्पतालों से मिली निराशा
ऐसा ही एक वाकया साउथ मुंबई के एक आदमी के साथ हुआ। हालांकि, उन्हें कुछ ही घंटे इंतजार करने के बाद बेड मिल गया। फिर भी इन चार घंटों में उन्हें चार अस्पतालों ने एंट्री देने से इनकार कर दिया। ये अस्पताल- जगजीवन राम हॉस्पिटल (कुर्ला), केईएम (कुर्रला, भाभा और राजावाड़ी) हैं। आखिर में उन्हें एक अस्पताल में एडमिट किया गया।

बताया गया कि इस शख्स की पत्नी गर्भवती है और शुक्रवार तक बच्चे को जन्म देने वाली है। उन्होंने बताया कि 24 घंटे तक तो बीएमसी के अधिकारी यही नहीं बता सके कि आखिर किस अस्पताल में भर्ती कराना है। पिछले शनिवार को एक प्राइवेट लैब में सैंपल भेजा गया था और मंगलवार को रिपोर्ट में महिला को कोरोना पॉजिटिव पाया गया। बीएमसी के अधिकारी आए और महिला को एक कमरे में आइसोलेट कर दिया। जब उन्हें बताया गया कि महिला जल्द ही बच्चे को जन्म देने वाली है तो उन्होने कहा कि जल्द ही वे अस्पताल के बारे में बताएंगे।

अस्पतालों में जगह नहीं, हर कोई कर रहा इनकार
इसके बाद कई बार उनसे पूछा गया लेकिन हर बार उनका जवाब यही होता कि किसी अस्पताल में जगह नहीं है। महिला के पति ने कहा, ‘बीएमसी अधिकारियों ने नायर, सेंट जॉर्ज, जेजे, केईएम, राजावाड़ी और सेवेन हिल्स में पता किया लेकिन कोई भी एडमिट करने को तैयार नहीं था। इसका मतलब या तो अस्पतालों में जगह नहीं थी या फिर उनके यहां कोरोना के मरीजों के लिए सुविधाएं नहीं थीं।’

आखिर में महिला के पति ने स्थानीय विधायक से मदद मांगी। विधायक ने कुछ लोगों को फोन किया, जिसके बाद महिला को नायर अस्पताल ले जाया गया। महिला के पति कहते हैं कि कितने लोग विधायक से मदद मांगेंगे? क्या बीएमसी को पता नहीं होना चाहिए कि ऐसी स्थिति में क्या करना है? क्या एक ऐसी हेल्प डेस्क नहीं होनी चाहिए जो लोगों की मदद कर सके।’

बीएमसी के पास नहीं है कोविड-19 मरीजों के लिए उपलब्ध बेड्स का आंकड़ा
इस बारे में बीएमसी के एक अधिकारी ने अपनी पहचान छिपाने की शर्त पर बताया, ‘शहर में कोविड-19 के मरीजों के लिए उपलब्ध बेड्स का कोई आंकड़ा हमारे पास मौजूद नहीं है। हमें हर अस्पताल में फोन करके पूछना पड़ता है कि बेड है या नहीं, यही कारण है कि देरी होती है।’

बीएमसी के स्वास्थ्य विभाग की डिप्टी डायरेक्टर ने कहा कि जल्द ही बीएमसी की वेबसाइट पर बेड्स की संख्या का डेटा उपलब्ध हो जाएगा। इसका काम चल रहा है। हम उन मरीजों को भी डिस्चार्ज कर रहे हैं, जिनमें कोरोना के लक्षण नहीं पाए गए हैं। ऐसे में हमें और जगह मिल जाएगी।’

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