कुछ हफ्ते पहले ही राजधानी के अखबारों में तिहाड़ जेल की तरफ जाते हुए दिल्ली में इस साल के शुरू में भड़के दंगों के मुख्य अभियुक्त उमर खालिद के माता-पिता और बहन को दिखाया गया था। सच में उस चित्र को देखकर किसी भी संवेदनशील इंसान का मन उदास हो गया था कि किस तरह से एक पुत्र के कुकृत्यों के कारण उसके पूरे परिवार वाले धक्के खाते फिरते हैं।
अब एक महत्वपूर्ण खबर कश्मीर से आ रही है कि उमर खालिद की तरह ही जेएनयू की पूर्व छात्र नेता शेहला रशीद के पिता अब्दुल राशिद शोरा ने जम्मू-कश्मीर के डीजीपी को पत्र लिखकर यह दावा किया है कि उन्हें अपनी बेटी से ही जान का खतरा है। अब्दुल राशिद शोरा ने जम्मू-कश्मीर के पुलिस महानिदेशक को लिखे गए पत्र में अपनी बेटी पर यह संगीन आरोप लगाया कि शेहला रशीद देश विरोधी गतिविधियों में पूरी तरह शामिल है। जरा सोचिए, कि किसी पिता द्वारा अपनी पुत्री पर इतने गंभीर आरोप लगाते हुए क्या गुजर रही होगी?
बेशक उमर खालिद और शेहला रशीद मेधावी नौजवान विद्यार्थी थे। ये जेएनयू में इसलिए ही दाखिला पाने में सफल हुए होंगे, क्योंकि ये योग्य होंगे। पर ये रास्ते से भटक गए। इनका रास्ता देश को तोड़ने वाला हो गया। आखिर जेएनयू में किसने पढ़ाया इन्हें राष्ट्रद्रोह का पाठ? इसकी भी जाँच और ऐसे शिक्षकों पर भी कारवाई होनी चाहिए, इन्हें उच्च शिक्षा प्राप्त कर देश के निर्माण में योगदान देना चाहिए था। आखिर इन्हें देश ने क्या नहीं दिया था? पर ये भारतीय सेना पर बेबुनियाद आरोप लगाने से लेकर दिल्ली में दंगे भड़काने में व्यस्त हो गए। पहली नजर में देखें तो इन पर लगे तमाम आरोप बेहद संगीन हैं।
देशद्रोह का मुकदमा दर्ज
पिछले साल सितंबर में शेहला रशीद के खिलाफ देशद्रोह का मुकदमा दर्ज किया गया था। बिना तथ्यों के रशीद ने दावा किया था कि भारतीय सेना घाटी में अंधाधुंध तरीके से लोगों को उठा रही है, घरों में छापे मार रही है और जनता को प्रताड़ित कर रही है। उस पर सेना के खिलाफ मिथ्या प्रचार करने का आरोप था। शेहला ने 18 अगस्त 2019 को कई ट्वीट किए, जिसमें भारतीय सेना पर कश्मीरियों के साथ अत्याचार करने के आरोप लगाए थे। उसके आरोपों को सेना ने झूठा बताया था। इसके बाद दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने शेहला के खिलाफ देशद्रोह का मुकदमा दर्ज किया था। क्या कोई भी देश अपनी सेना पर अनर्गल आरोप लगाने की इजाजत दे सकता है? कतई नहीं। जो सेना कश्मीर में देश की सहरदों की रखवाली कर रही है, वहां पर शहीद हो रहे हैं उन पर यूं ही आरोप लगाने का मतलब क्या है? देश में लोकतंत्र का मतलब यह नहीं है कि कोई देश के खिलाफ जंग ही छेड़ दे। यह भी जाँच हो कि शेहला को कच्ची उम्र में राष्ट्रद्रोह के पक्के रंग में रंगने वाले जेएनयू के वे राष्ट्रद्रोही शिक्षक कौन थे? उन्हें भी विश्वविद्यालय से बर्खास्त कर जेल में ठूंसना जरूरी है I
दिल्ली दंगों का गुनाहगार
अब जरा उमर खालिद की बात कर लें। पिछले कुछ माह पहले दिल्ली दंगे के आरोपी उमर खालिद के खिलाफ अनलावफुल ऐक्टिविटीज (प्रिवेंशन) ऐक्ट यानी यूएपीए के तहत मुकदमा चलाने के लिए अरविंद केजरीवाल सरकार ने आख़िरकार मंजूरी दे दी है। पर खालिद की दिल्ली दंगों में रही खतरनाक भूमिका पर बात करने से पहले यह जान लिया जाए कि कैसे वह गुजरे कई सालों से देश और समाज विरोधी हरकतों में व्यस्त था। मूल रूप से महाराष्ट्र के अमरावती शहर से संबंध रखने वाले परिवार का उमर खालिद अपने साथियों के साथ जेएनयू कैंपस में हिंदू देवी-देवताओं की आपत्तिजनक तस्वीरें लगाकर नफरतें भी फैलाता रहा था। खालिद उस कार्यक्रम में भी शामिल था जब आतंकी अफजल की फांसी पर जेएनयू कैंपस में मातम मनाया गया था। खालिद कई मौकों पर कश्मीर की आजादी की बेतुकी और बेबुनियाद मांग को भी उठाता रहा था। कहने वाले तो यह भी कहते हैं कि जेएनयू में 26 जनवरी, 2015 को ‘इंटरनेशनल फूड फेस्टिवल’ के बहाने कश्मीर को अलग देश दिखाकर उसका स्टॉल लगाया गया। जब नवरात्रि के दौरान पूरा देश देवी दुर्गा की आराधना कर रहा था, तब जेएनयू में दुर्गा माता का अपमान करने वाले पर्चे, पोस्टर जारी करके अशांति फैलाने वालों में खालिद भी मुख्य रूप से था। मतलब साफ है कि खालिद के इरादे बेहद खतरनाक थे। वह भारतीय समाज को तोड़ने में लगा हुआ था।
अगर दिल्ली पुलिस के सूत्रों पर यकीन करें तो इस साल राजधानी में भड़काए गए दंगों में उमर खालिद की अहम भूमिका रही थी। उमर खालिद पर आरोप है कि वह मुसलमानों को स़ड़कों पर गैरकानूनी तरीके से जाम लगाने का आहवान कर रहा था, जिस दिन अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप दिल्ली में थे उसी दिन यानि यह 24 फरवरी की बात है। उसे शरजील इमाम जैसे जेएनयू के एक अन्य देश विरोधी छात्र का भी साथ मिल रहा था।
अब सारा देश जानता है कि संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) के विरोधी और समर्थकों के बीच हिंसा के बाद दिल्ली में सांप्रदायिक दंगे सुनियोजित ढंग से भड़का दिये गये थे। उन दंगों में कम से कम 53 लोगों की मौत हुई थी, जबकि 200 के करीब घायल हुए थे। शरजील इमाम भी अब जेल की हवा खा रहा है। इस अक्ल से पैदल इंसान का एक वीडियो भी वायरल हुआ था। उसमें शरजील इमाम बेशर्मी से कह रहा था, ” आपको पता होना चाहिए कि 20वीं सदी का सबसे फासिस्ट लीडर गांधी ख़ुद है। कांग्रेस को हिंदू पार्टी किसने बनाया?” एक बात तो उमर खालिद हो या शहला हो, उनको कायदे से समझ लेनी चाहिए कि अब देश उन तत्वों को माफ नहीं करेगा जो देश के साथ गद्दारी करेंगे। जनता में विभिन्न मसलों पर वैचारिक भिन्नता हो सकती है। यह किसी भी लोकतांत्रिक देश के लिए स्वस्थ और सुखद बात है। पर देश की एकता और अखंडता के सवाल पर कोई बहस या तर्क स्वीकार नहीं होगा। अब देश के अंदर एक और पाकिस्तान पनपने नहीं दिया जाएगा। धर्म के नाम पर ही तो जिन्ना ने पाकिस्तान लिया लेकिन, वहां से हिन्दुओं, सिखों, इसाईयों, बौद्धों, जैनियों को तो या तो जबर्दस्ती धर्म परिवर्तन कराया जा रहा है या मार-मार कर भगाया जा रहा है, यदि यहाँ भी यही होने लगे तो क्या होगा? अत: उदारवादी हिन्दू समाज के सहनशीलता की जरूरत से ज्यादा परीक्षा लेना भी बहुत बड़ी बेवकूफी साबित हो सकती है
दिल्ली में डोनाल्ड ट्रंप की यात्रा के समय वास्तव में बहुत बड़े स्तर पर खूनी दंगें भड़काए गए थे। उस वजह से देश की छवि प्रभावित हुई। उन दंगो को भड़काने में जो भी शामिल था उसकी जगह जेल या फांसी की सजा ही हो सकती है। दंगों का गुनाहगार चाहे किसी किसी भी समुदाय या पार्टी से जुड़ा हो, उसे कभी भी माफ नहीं किया जा सकता। पर देश को इस बिन्दु पर भी गंभीरता से विचार करना होगा कि आखिर कुछ संभावनाओं से लबेरज नौजवान किसलिए बिना वजह देश के खिलाफ ही चलने लगते हैं? शेहला और उमर खालिद की ही तरह कन्हैया कुमार भी था। वह भी देश की सेना, न्यायपालिका, पुलिस वगैरह के खिलाफ बहुत जहर उगलता था। फिलहाल वह चुप है। पर अब देश ऐसे राष्ट्रविरोधी तत्वों को स्वीकार नहीं करेगा।
(लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तभकार और पूर्व सांसद हैं)
(ये लेखक के अपने विचार हैं)