- कई अपराधों को सुलझाने के लिए फेसबुक मैसेंजर, ईमेल आदि महत्वपूर्ण जरिया होते हैं
- ऐसे केसों में क्लाउड ऐक्ट के तहत अमेरिकी कंपनियों से इलेक्ट्रॉनक सबूत पेश कर डेटा लिए जा सकते
- कई यूरोपीय देश अमेरिका की इस नीति का डेटा चोरी की आशंका के कारण विरोध कर रहे हैं
- राजनीतिक प्रदिद्वंदिता के लिए भी डेटा प्रयोग की आशंका राइट विंग के लोग जता चुके हैं
ग्लोबल डेस्क। फ्रांस के मैदेगेस्का के समुद्र तट पर अगस्त 2016 में फ्रांस के एक युवक और युवती की लाश मिली। दोनों के बीच में संपर्क फेसबुक मैसेंजर के जरिए हुआ था और माइक्रोसॉफ्ट के ईमेल आउटलुक के जरिए भी यह कपल संपर्क में था। दो लोगों की कत्ल की यह गुत्थी सुलझाने में दोनों के बीच हुए आखिरी मैसेज अहम साबित हो सकते हैं। दोनों के बीच के मैसेज अमेरिकी कंपनियों के डेटाबैंक में सुरक्षित थे और फ्रेंच जांच दल को वह मैसेज उनके जरिए ही मिल सकते हैं।
यह थी मूल समस्या
2013 में अमेरिकी प्रशासन ने एक सर्च वॉरंट नारकोटिक्स केस में जारी किया था। इस केस को सुलझाने के लिए जांच टीम को माइक्रोसॉफ्ट से कुछ सूचना की जरूरत थी। माइक्रोसॉफ्ट अमेरिकी कंपनी है इसके बावजूद भी माइक्रोसॉफ्ट ने डेटा सुरक्षित रखने के लिए कानूनी लड़ाई लड़ी। कंपनी का तर्क था कि संबंधित डेटा माइक्रोसॉफ्ट के दूसरे देश आयरलैंड से जुड़ा है और इसलिए अमेरिकी जांचकर्ताओं को इससे संबंधित जानकारी नहीं दी जा सकती है।
इस केस पर कई सवाल उठे जिसमें सबसे प्रमुख था कि किसी आपराधिक केस को सुलझाने के लिए पूरी निर्भरता एक कंप्यूटर में बंद डेटा पर हो। इसके बाद भी अलग न्यायिक क्षेत्र में होने के कारण इसे आसानी से हासिल नहीं किया जा सकता। हालांकि, वॉशिंगटन और ब्रसल्ज दोनों ने ही क्रॉस बॉर्डर डेटा उपलब्धता को आसान करनेवाले कानूनों पर पहल की। हालांकि, इसके बाद राइट विंग ने अंदेशा जताया कि इससे प्राइवेट डेटा आसानी से हासिल किया जा सकेगा। आसानी से डेटा मिलने पर सरकारें इसका दुरुपयोग राजनीतिक प्रतिद्वंदियों के खिलाफ भी कर सकती हैं।
मार्च 2018 में अमेरिका ने क्लाउड ऐक्ट पास किया। इस ऐक्ट के तहत विदेशी सरकारें अमेरिकी कंपनियों से ऐसी परिस्थितियों में कुछ डेटा हासिल कर सकती हैं, लेकिन इसके लिए द्विपक्षी समझौता अनिवार्य है। साथ ही डेटा जानकारी के लिए जांच एजेंसियों को वॉशिंगटन को इलेक्ट्रॉनिक सबूत भी उपलब्ध कराने होंगे। हालांकि, बहुत से यूरोपीय देश अमेरिका के इस द्विपक्षीय समझौते वाली शर्त से सहमत नहीं हैं। कुछ देशों का ऐसा भी मानना है कि ऐक्ट के जरिए अमेरिका की कोशिश यूरोपियन नागरिकों के बारे में डेटा इकट्ठा करना भी है।