जैसा कि सभी जानते हैं पूरा विश्व इस वक़्त एक ऐसी महामारी से लड़ रहा है जिसको हम Covid-19 (कोरोनावाइरस) के नाम से जानते हैं, यह बीमारी जहाँ दुनिया में तबाही लेकर आई है, वहीं ईश्वर का संदेश भी। हम जानते हैं पूरी दुनिया में बहुत से ऐसे देश हैं जो अपने को विकसित ही नहीं बल्कि दुनिया का सबसे ताक़त वर देश मानते हैं, वह सबसे ज्यादा इस वक्त महामारी से ग्रस्त हैं। जो ईश्वर का साफ सन्देश है, कि अभी आप क़ुदरत से बहुत दूर हैं, अभी आपको बहुत कुछ खोज की आवश्यकता है।
समस्या
समस्या यह है, इस बीमारी से विश्व सहित हमारे देश में भी मौतों का आंकड़ा बढ़ रहा है, वहीं हमारे अपने नागरिकों की क्षमताएँ समाप्त होती दिख रही हैं, क्यों कि यह ऐसा मौका है, जब इंसान बिना इनकम के खर्च कर रहा है। जहां आम आदमी की जुड़ी रक़म खत्म होने पर है, वहीं दानदाताओं के भी ख़ज़ाने खाली होने लगे हैं। बहुत जल्द अगर इस बीमारी से छुटकारा नही मिला, तो आपको इसका भी सामना करना पड़ सकता है। इंसान लूट के अपराध की तरफ भी बढ़ेगा। क्यों कि मरना कोई नहीं चाहता जीने की इच्छा सभी की होती है। और जीने के लिए भोजन की।
पर्यावरण
अगर पर्यावरण की दृष्टि से देखें, तो साफ दिखता है यह ईश्वर का संदेश है। उसने कैसी दुनिया बनाई थी, जो इंसान ने अपने विकास के नाम पर उजाड़ दी। आज नदियां जैसे गंगा, जमुना जो वर्षो से सरकार और आम नागरिक से आस लगाई बैठी थीं कि हमें भी सफाई की आवश्यकता है, पर इंसान रुकने का नाम नहीं ले रहा था। विकास की दौड़ में पेड़, पहाड़, नदियां, पोखर, बाग़, बग़ीचे, जंगल सब ख़त्म करने पर जुटा था, पर आज ईश्वर ने एक छोटी सी बीमारी दे कर सब उजाड़ने वालों को घरों में कैद होने पर मजबूर कर दिया। आज गंगा, जमुना देखिये कितनी शीतल नज़र आ रही हैं। सरकार को इस तरफ ध्यान की आवश्यकता है, कि किस तरह से गैर जरूरी कारखाने बन्द करने हैं, ताकि हमारी नदिया शीतल रहें, किस तरह से आपको पेड़, पहाड़, कटने से बचाने हैं, जिससे हमारे देश का सौंदर्य बचा रहे, किस तरह से आपको बाग़ात, जंगल बचाने है, जो हमारी आनी वाली पीढ़ी को साफ हवा दे सकें। यह सरकार के साथ नागरिकों के लिए भी ईश्वर का बेहतरीन सबक है।
आर्थिक संकट
आर्थिक संकट तो साफ दिखाई दे रहा है। किस तरह से आज लोग बिना इनकम के खर्च कर रहे हैं, और दवाई, दैनिक जरूरत खाद्यान के सिवा कोई भी व्यापार इस समय गति नहीं कर रहा है और आने वाले समय में भी बहुत जल्द बाकी उद्योग गति नहीं पकड़ने वाले, क्यों कि आम नागरिक जहां वर्षो से विश्व की मंदी से जूझ रहा था। उस पर यह बीमारी पहाड़ जैसा बोझ है। इस समस्या से उबरने के लिए बहुत समय लगेगा। बड़े संयम की आवश्यकता है, जहां संयम खोया वहीं बड़े संकट का सामना करना पड़ सकता है। गैर जरूरी सफर हों या शादी पार्टी सभी पर नियंत्रण से काम चलेगा। ज्यादा आज़ादी आपको बड़े आर्थिक संकट की तरफ लेकर जा सकती है।
अवसर
अवसर यह है कि इस समय दुनिया के बड़े बड़े देश बेईमान हो रहे हैं, जैसा अभी आपने देखा होगा अचानक शेयर बाज़ार गिरा और जो बाहरी मुल्कों का पैसा चीन में लगा था, चीन ने सभी के शेयर खरीद सभी इन्वेस्टर को कंगाल कर दिया। इधर लॉकडाउन के समय उसने हमारे देश में भी कुछ कम्पनी खरीदने की कोशिश की। HDFC बैंक का कुछ हिस्सा खरीद भी लिया था। पर हमारी सरकार के तुरंत निर्णय के कारण बहुत सी कम्पनियां बिकने से बच गईं। वरना चीन का प्लान बहुत ख़तरनाक था। इसी प्रकार दुबई जैसा हमारे भारतीयों के कारोबार वहां लूट रहा है, ट्विटर के बहाने उसने जाने कितने हमारे भारतीय कारोबारी तबाह कर दिए, जिनका पूरा का पूरा कारोबार दुबई में था। आज बड़ा संकट दिखाई दे रहा है, इस संकट के समय पूरी दुनिया के इन्वेस्टर चीन, दुबई से निकल कर नए देश की तलाश में हैं, जहां वह अपना इन्वेस्ट सुरक्षित देखना चाहते हैं, बहुत से खाड़ी मुल्क़ हैं जिनके पास पैसे की कोई कमी नहीं वह बड़ा इन्वेस्ट हमारे यहां भी कर सकते हैं हमें इस समय पहले कोरोना से जीतना होगा, फिर अपनी कुछ सामाजिक व्यवस्था सुधारनी होगीं।
ताकि हम यह इन्वेस्ट अपने देश में ला सकें क्योंकि दुनिया में चीन के बाद सबसे ज्यादा कामगारों की संख्या और जगह है तो वह हमारे पास है। यह हमारे लिए सबसे बड़ा अवसर है। लेकिन हमें यह हासिल करने के लिए कुछ बदलाव की आवश्यकता है। जैसे देश का मूंड कल था वैसा ही आज है, अधिकतम नागरिकों को कल भी प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी से कम स्वीकार नहीं था, वैसे ही आज भी नहीं है और मोदी जी प्रधानमंत्री पद की गरिमा सहित अपने कार्यों को पूरी क्षमता से निभा भी रहे हैं, कैबिनेट की अगर बात करें तो गृह मंत्रालय, रक्षा मंत्रालय, क़ानून मंत्रालय, शिक्षा मंत्रालय सहित बहुत से मंत्रालय सुरक्षित हाथों में है पर वित्तमंत्रालय क्या पिछले छः 6 वर्षों से अपना सही काम कर रहा है। आप अगर पक्षपात न करें तो जवाब होगा ना। अब क्या किया जा सकता है? तो इसके लिए हमें इतिहास में जाना होगा। जब देश आज़ाद हुआ देश ने सर्व सहमति से पण्डित नेहरू जी को प्रधानमंत्री चुना। तब पण्डित जी 200 करोड़ के मालिक थे और यह रक़म उस दौर की बहुत बड़ी रकम थी। पण्डित जी ने 196 करोड़ देश को अनुदान किया, इस तरह की जानकारी मिलती है। पर मेरा मक़सद यहां उनकी दौलत का महिमा मंडन का नहीं बल्कि उनकी बड़ी सोच का है। देश आज़ाद हुआ, पण्डित जी ताकतवर प्रधानमंत्री बने, चाहते तो अपने नौकर से लेकर माली तक को कैबिनेट का हिस्सा बना सकते थे। पर ऐसा नही हुआ, देश की ज़रूरत अपनी जरूरत से बड़ी थी, तो नेहरू जी ने काबिलियत चुनी जैसे बाबा साहब उनके घोर विरोधी थे, पर पण्डित जी उनकी क्षमता को जानते थे, उन्होंने देश के संविधान की बड़ी जिम्मेदारी बाबा साहब को दी, इसी प्रकार स्यामा प्रसाद मुखर्जी जी को उधोग और आपूर्ति मंत्रालय दिया।
1952 के चुनाव के बाद बहुत बार ऐसा हुआ कि देश से विदेश डेलिगेशन गया और देश का पक्ष रखने के लिए विपक्ष से अध्यक्ष चुन कर भेजा, क्यों कि आपसी मतभेद आगे नहीं आते थे देश की उन्नति प्रथम थी। इसी प्रकार आज देश को बड़ी सोच बड़े हृदय की आवश्यकता है। माननीय प्रधानमंत्री जी को एक वित्तीय सुझाव कमेटी का गठन करना चाहिए, जिसमें पुराने क़ामयाब अर्थशास्त्री, गवर्नर्स को सदस्यता देनी चाहिए और कमेटी का अध्यक्ष श्री मनमोहन सिंह साहब को बनाना चाहिए इनकी देख रेख में वित्त मंत्रालय कार्य करे। ताकि हमारी सुस्त पड़ी अर्थव्ययस्था गति पकड़ सके और जो अवसर हमारे सामने है उसको हम समय से अपने यहाँ लाने में कामयाब हो जाएं, किसी भी व्यक्ति, पार्टी से देश बड़ा है, यह हम सब जानते हैं।