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चंद्रयान-2 मिशन की सफलता में एलएंडटी, गोदरेज जैसी कंपनियों का भी महत्वपूर्र्ण योगदान

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Sriharikota: India’s second Moon mission Chandrayaan-2 lifts off onboard GSLV Mk III-M1 launch vehicle from Satish Dhawan Space Center at Sriharikota in Andhra Pradesh, Monday, July 22, 2019. ISRO had called off the launch on July 15 after a technical snag was detected ahead of the lift off. (ISRO/PTI Photo) (PTI7_22_2019_000096B)

मुंबई: इसरो के चंद्रयान-2 के सफल प्रक्षेपण में लार्सन एंड टूब्रो (एलएंडटी) और गोदरेज जैसी निजी कंपनियों ने भी महत्वपूर्र्ण योगदान दिया। इन कंपनियों ने हार्डवेयर और टेस्टिंग सॉल्यूशंस उपलब्ध करवाए। ऐसी कंपनियों में अनंत टेक्नोलॉजीज, एमटीएआर टेक्नोलॉजीज, आईनॉक्स टेक्नोलॉजीज, लक्ष्मी मशीन वर्क्स, सेन्टम अवसरला और कर्नाटक हाइब्रिड भी शामिल हैं।

  • इन कंपनियों ने हार्डवेयर और टेस्टिंग सॉल्यूशंस उपलब्ध करवाए
  • गोदरेज ने जीएसएलवी एमके-III लॉन्चर के लिए इंजन सप्लाई किए
  • एलएंडटी ने लॉन्चर के बूस्टर्स की मैन्युफैक्चरिंग और प्रूफ प्रेशर टेस्टिंग की

एलएंडटी ने फ्लाइट हार्डवेयर, सब सिस्टम मुहैया करवाए

गोदरेज एयरोस्पेस के एग्जीक्यूटिव वाइस प्रेसिडेंट और बिजनेस हेड एसएम वैद्य ने बताया कि गोदरेज ने जीएसएलवी एमके-III लॉन्चर के लिए एल110 इंजन और सीई20 इंजन, ऑर्बिटर-लैंडर के लिए थ्रस्टर्स और डीएसएन एंटीना के लिए कंपोनेंट उपलब्ध करवाए।

लार्सन एंड टूब्रो के डिफेंस एंड एलएंडटी-एनएक्सटी बिजनेस के सीनियर एग्जीक्यूटिव वाइस प्रेसिडेंट जे डी पाटिल के मुताबिक उनकी कंपनी ने कई अहम फ्लाइट हार्डवेयर, सब सिस्टम मुहैया करवाए। जीएसएलवी एमके-III के एस200 सॉलिड बूस्टर्स का जोड़ा लार्सन एंड टूब्रो के पवई एयरोस्पेस वर्कशॉप में बने थे। मैन्युफैक्चरिंग के अलावा लार्सन एंड टूब्रो ने एस200 सॉलिड बूस्टर्स की प्रूफ प्रेशर टेस्टिंग भी की थी।

सरकारी कंपनी स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया (सेल) ने चंद्रयान-2 मिशन के लिए विशेष गुणवत्ता वाली स्टील सप्लाई की थी। चंद्रयान-2 सोमवार दोपहर 2 बजकर 43 मिनट पर श्रीहरिकोटा (आंध्रप्रदेश) के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से लॉन्च किया गया था। प्रक्षेपण के 17 मिनट बाद ही यान सफलतापूर्वक पृथ्वी की कक्षा में पहुंच गया।

भारत ने 50 साल पहले अपना अंतरिक्ष कार्यक्रम लॉन्च किया था। 1974 के परमाणु परीक्षण के बाद पश्चिमी देशों ने भारत पर प्रतिबंध लगा दिए थे। इसके बाद देश ने अपनी तकनीक और रॉकेट विकसित करने पर फोकस करना शुरू कर दिया था। इसरो ने तभी से इम्पोर्ट पर निर्भरता कम कर दी। वह देश के प्राइवेट सेक्टर से आउटसोर्सिंग के आधार पर अपने कार्यक्रमों की रूप-रेखा तय करता है।

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