आगरा। लद्दाख में चीन की हिमाकत ने हिंदुस्तान की जनता के दिल में आक्रोश की एक ज्वाला भड़का दी है परिणामस्वरुप देश में चीनी सामान के बहिष्कार की मुहिम चल पड़ी है लेकिन बहिष्कार की इस मुहिम में हमें सतर्कता बरतनी बेहद जरुरी है कहीं यह आक्रोश अपने ही पैरों में कुल्हाड़ी मारने जैसा साबित न हो जाए। इससे कहीं चीन को अंततः फायदा और भारत को दोहरा नुकसान न झेलना पड़ जाए। आइये अब बात करते हैं ऐसे में आखिर हम क्या करें ? क्या हम इस मुहिम का समर्थन न करें ? तो समझिये हमें निश्चित रूप से समर्थन करना चाहिए लेकिन अक्लमंदी के साथ। हमें चीनी सामान के बहिष्कार को दो हिस्से में बाँटना पड़ेगा एक जो हमने चीन को 100% पेमेंट कर दिया है और भारत के बाजार में वह माल पड़ा है, उस माल को हम फेंके जलाएं या ख़रीदे उससे चीन को कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है उसे उस माल का 100% भुगतान मिल चुका है, वह बॉर्डर उस पार से यही देख मुस्कराएगा की भारतीय अपनी पूंजी में आग लगा रहे हैं। अतः जो माल 100% पेमेंट के भुगतान के बाद भारत में आ चुका है उसके बहिष्कार का कोई मतलब नहीं वह अपने पूंजी में ही आग लगाने जैसा है।
हाँ, एक कट ऑफ डेट लें जैसे आज का और आज के बाद भारत का कोई भी व्यापारी चीन से कोई सौदा, व्यापार, ठेका एवं आयात सब बंद कर दें, मतलब नो आयात नो भुगतान और हाँ, व्यापारिक स्तर पर जनता को इसके लिए प्रेरित करने से अच्छा इसके लिए सरकार को प्रेरित किया जाये क्योंकि सरकार के एक निर्णय से ही आयात और आयात के माध्यम से भुगतान दोनों रूक जायेंगे। मतलब सो सुनार की चोट मारने के बजाए एक लुहार की चोट भली। अतः इसपर जनता की अपेक्षा सरकार के स्तर पर कदम अति महत्वपूर्ण है।
सरकार या तो चीनी समान बैन करे या इतना आयात शुल्क लगाये जिससे भारतीय बाजार में फेयर कम्पटीशन हो और चीनी समान सस्ता होकर घरेलु उद्योगों के लिए घाटे का सबब न बने. चीनी समान का उपभोग करने वाले भी जान लें हर चीनी उत्पाद पर जो हम मूल्य भुगतान करते हैं उस मूल्य में चीनी कम्पनियों को सिर्फ उनका लागत और लाभ नहीं होता है उसमें चीनी सरकार का हिस्सा भी कर के रूप में शामिल होता है जिस मूल्य का हम भुगतान करते है और वह उसी टैक्स का इस्तेमाल सैन्य खर्च में करता है जो अंततः भारत के खिलाफ ही होता है, अतः आज से चीनी वस्तुवों के आयात से पहले 100 बार सोचें लेकिन सरकार को तुरंत सोचना चाहिए।
इस बात को बिलकुल और हाँ छोटे दुकानदारों, रेहड़ी वालों या अन्य के पास जो चीनी समान पड़ा है उसके बहिष्कार का कोई मायने नहीं है यह भारतीय इकॉनमी की ही रीढ़ तोड़ेगा क्यों की इसका पेमेंट तो चीन बहुत पहले ही प्राप्त कर मुस्करा रहा है।
लेखक राजनीतिक एवं सामाजिक विश्लेषक हैं।