आगरा। अपने फर्ज के लिए अपनी जिंदगी को दांव पर लगा देने के आमतौर पर किस्से या तो फिल्मों में देखने को मिलते हैं या फिर सीमा से तिरंगे में लिपटकर आये किसी वीर सैनिक की शहादत के वक्त। लेकिन इस विश्वव्यापी कोरोना संकट में हेल्थ योद्धा Corona Warriors के रूप में हॉस्पिटल में जुटे डॉक्टर और स्वास्थकर्मी भी अपने फर्ज के लिए आज किसी से पीछे नहीं हैं। लखनऊ के पीजीआई हॉस्पिटल में स्टाफ नर्स के पद पर तैनात आगरा की सोनाली सिंह एक ऐसी ही हेल्थ योद्धा हैं, जिन्होंने अपने पेशे के प्रति फर्ज को निभाते हुए कोरोना संक्रमित मरीजों की सेवा कर एक मिशाल कायम की है। गंभीर बीमारी से ग्रसित 7 साल की बेटी और मां के दूध से वंचित 2 साल की बेटी दोनों से 350 किलोमीटर दूर कोरोना वार्ड में ड्यूटी पर डटी हुई हैं। दोनों बेटियों को आज इस हाल में छोड़ इतनी दूर के सवाल पर सोनाली कहती हैं अपने लिए जिए तो क्या जिये जिंदगी वही जो दूसरों के काम आये। मेरी बेटी कुछ दिन मां से दूर रह लेंगी तो कोई बड़ी बात नहीं, लेकिन अगर में उनके लिए अपने फर्ज से मुंह मोड़ लुंगी तो देश पर आये कोरोना संकट पर हम कैसे जीत हासिल करेंगे।
बेटी का चल रहा है गंभीर बीमारी का इलाज
बेटी जब महज सात महीने की थी तब से उसे नेफ्रोटिक सिंड्रोम नाम की गंभीर बीमारी है, जोकि मुख्यत: बच्चों को होती है। दिल्ली के एम्स हॉस्पिटल से बच्ची का लगातार छह साल से इलाज चल रहा है। बीमारी की गंभीरता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि बच्ची को रोज नियमित दवाई लेने के साथ-साथ रोज यूरिन की जांच भी करानी होती है।
वो सीमा पर निभाते हैं फर्ज तो हम यहां क्यों नहीं ?
सोनाली बताती हैं कि दुर्लभ परिस्थितियों में माइनस जीरो डिग्री टेम्प्रचर में देश की सीमा पर वीर सैनिक काम कर सकते हैं तो हम क्यों नहीं, भगवान ने हमें भी मौक़ा दिया है कोरोना संक्रमित मरीजों की सेवा कर अपने वतन के लिए कुछ करने का मुझे गर्व हैं मेरी परवरिश देने वाले मेरे पेरेंट्स पर जिन्होंने मुझे ऐसे संस्कार दिए कि आज में अपने फर्ज को समझती हूं।

पति ने दिया हर कदम पर हिम्मत
सोनाली कहती हैं कि आज में कोरोना से लड़ाई में जंग के इस मैदान में डटी हूँ तो उसके लिए सबसे अधिक श्रेय में अपने पति सौरभ सिंह को देती हूँ जो मुझे लगातार हिम्मत देते हैं और इससे भी बड़ी बात ये है कि वे मुझसे पीछे दोनों बेटियों के लिए पिता के साथ साथ मां का भी फर्ज निभाते हैं गंभीर बीमारी से जूझती मेरी बड़ी बेटी की बात हो या छोटी बेटी की दोनों को वे मेरी कमी बिल्कुल महसूस नहीं होने देते। आज में जो भी हूँ उन्हीं कि बदौलत हूँ। शादी के बाद उन्होंने ही मेरी मेडिकल की पढ़ाई कराई जब मेरी पहली बेटी महज 6 महीने की थी तभी से वे उनकी देखरेख कर रहे हैं और मैंने उनकी मदद से अपनी पढ़ाई पूरी की।
चिकित्सा विभाग में कार्यरत मां से मिली प्रेरणा
मेरी सासु मां कमलेश जोकि आगरा के लेडी लॉयल हॉस्पिटल में कार्यरत हैं। जब से मेरी शादी हुई है तब से मैं लगातार देख रही हूँ वे अपने प्रोफेशन को लेकर काफी गंभीर रहती हैं। वे ही मेरी प्रेरणा हैं। उनसे ही मैंने सीखा कि जीवन में फर्ज हमारे लिए क्या है।