Home Spritual तीसरे दिन होती है मां चंद्रघंटा की पूजा

तीसरे दिन होती है मां चंद्रघंटा की पूजा

468
0
Maa Chandraghanta
Maa Chandraghanta

शारदीय नवरात्रे का जीवन में विशेष महत्व है। पंचांग के अनुसार 19 अक्टूबर 2020 आश्विन मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को शारदीय नवरात्रि का तीसरा दिन है। नवरात्रि के तीसरे दिन मां चंद्रघंटा की पूजा की जाती है. नवरात्रि का तीसरा दिन मां चंद्रघंटा को समर्पित है। मां चंद्रघंटा ने असुरों का संहार किया था। मां चंद्रघंटा ने पृथ्वी पर धर्म की रक्षा और असुरों का संहार करने के लिए अवतार लिया था. मां दुर्गा के इस रूप की विशेष मान्यता है.

मां चंद्रघंटा का स्वरूप
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार मां चंद्रघंटा को परम शांतिदायक और कल्याणकारी माना गया है। मां चंद्रघंटा के मस्तिष्क पर घंटे के आकार का आधा चंद्र है। इसीलिए इन्हें मां चंद्रघंटा कहा जाता है। मां चंद्रघंटा का रूप रंग स्वर्ण के समान है. मां चंद्रघंटा देवी के दस हाथ हैं। इनके हाथों में शस्त्र-अस्त्र विभूषित हैं और मां चंद्रघंटाकी सवारी सिंह है।

मां चंद्रघंटा की पूजा का महत्व
मान्यता है कि जो भी व्यक्ति नवरात्रि में मां चंद्रघंटा की पूजा विधि पूर्वक करता है उसे अलौकिक ज्ञान की प्राप्ति होती है। वहीं मां चंद्रघंटा की पूजा और उपासना से साहस और निडरता में वृद्धि होती है। हर प्रकार के भय से मुक्ति मिलती है। मां चंद्रघंटा की पूजा करने सौम्यता और विनम्रता में भी वृद्धि होती है। विधि पूर्वक पूजा करने से मां अपने भक्तों को आर्शीवाद प्रदान करती हैं। मां चंद्रघंटा की पूजा करने से रोग से भी मुक्ति मिलती है।

मां चंद्रघंटा पूजा विधि
19 अक्टूबर 2020 को शुभ मुहूर्त में मां चंद्रघंटा की पूजा प्रारंभ करनी चाहिए। पूजा आरंभ करने से पूर्व मां चंद्रघंटा को केसर और केवड़ा जल से स्नान कराएं। इसके बाद उन्हें सुनहरे रंग के वस्त्र पहनाएं। इसके बाद मां को कमल और पीले गुलाब की माला चढ़ाएं। इसके उपरांत मिष्ठान, पंचामृत और मिश्री का भोग लगाएं।

मां चंद्रघंटा का मंत्र
या देवी सर्वभूतेषु मां चंद्रघंटा रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमो नम:।।

मां चंद्रघंटा की कथा
पौराणिक कथा के अनुसार जब दैत्यों का आतंक बढ़ने लगा तो मां दुर्गा ने मां चंद्रघंटा का अवतार लिया। असुरों का स्वामी महिषासुर था, जिसका देवताओं से भंयकर युद्ध चल रहा था। महिषासुर देव राज इंद्र का सिंहासन प्राप्त करना चाहता था। उसकी प्रबल इच्छा स्वर्गलोक पर राज करने की थी। उसकी इस इच्छा को जानकार सभी देवता परेशान हो गए और इस समस्या से निकलने का उपाय जानने के लिए भगवान ब्रह्मा, विष्णु और महेश के सामने उपस्थित हुए।

देवताओं की बात को गंभीरता से सुनने के बाद तीनों को ही क्रोध आया। क्रोध के कारण तीनों के मुख से जो ऊर्जा उत्पन्न हुई. उससे एक देवी अवतरित हुईं। जिन्हें भगवान शंकर ने अपना त्रिशूल और भगवान विष्णु ने चक्र प्रदान किया। इसी प्रकार अन्य देवी देवताओं ने भी माता के हाथों में अपने अस्त्र सौंप दिए। देवराज इंद्र ने देवी को एक घंटा दिया। सूर्य ने अपना तेज और तलवार दी, सवारी के लिए सिंह प्रदान किया।

इसके बाद मां चंद्रघंटा महिषासुर के पास पहुंची। मां का ये रूप देखकर महिषासुर को ये आभास हो गया कि उसका काल आ गया है। महिषासुर ने मां पर हमला बोल दिया। इसके बाद देवताओं और असुरों में भंयकर युद्ध छिड़ गया। मां चंद्रघंटा ने महिषासुर का संहार किया। इस प्रकार मां ने देवताओं की रक्षा की।
विधि विधान से माँ चंद्रघंटा की विशेष आराधना से सुख समृद्धि मिलती है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here