पीवी नरसिम्हा राव की विरासत पर सभी पार्टियां अपना दावा ठोकती दिखती हैं। फिर चाहे वो बीजेपी हो, टीआरएस हो, टीडीपी हो या फिर कांग्रेस। जन्मशताब्दी समारोह मनाकर टीआरएस अपना दावा पुख्ता करना चाहती है। केसीआर इस समारोह के जरिए कांग्रेस को सबक भी देना चाहते हैं, जिसने राव को हाशिए पर धकेल दिया था।
- हाइलाइट्स
- तेलंगाना में मनाई जा रही है पूर्व PM नरसिम्हा राव की जन्म शताब्दी
- कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता रहे राव पर KCR पुख्ता करना चाहते हैं
- कांग्रेस ने राव को हाशिए पर धकेल दिया था, निधन के बाद भी नहीं उचित सम्मान
- TRS, TDP, बीजेपी, कांग्रेस में लगी रहती है राव की विरासत पर दावे की होड़
पूरे साल चलेगा तेलंगाना में यह भव्य समारोह
तेलंगाना राष्ट्र समिति सरकार ने पूरे साल चलने वाले इस कार्यक्रम के लिए 10 करोड़ रुपये का प्रावधान किया है। साल भर चलने वाले इन कार्यक्रमों के लिए राज्यसभा सदस्य के केशव राव की अगुवाई में एक समिति भी गठित की गई है। हैदराबाद में राव का एक स्मारक स्थापित किया जाएगा। इसके साथ ही हैदराबाद, वारंगल, करीमनगर, दिल्ली में तेलंगाना भवन और राव की जन्मस्थली वांगरा में उनकी पांच कांस्य प्रतिमाएं भी लगाई जाएंगी। इसके साथ ही उनके लिए भारत रत्न की सिफारिश किए जाने की भी तैयारी है।
प्रधानमंत्री के रूप में राव ने दिखाई थी देश को नयी दिशा
पामुलापति वेंकट नरसिम्हा राव ने वर्ष 1991 में राजीव गांधी की हत्या के बाद देश के नौवें प्रधानमंत्री बने थे। राव की कैबिनेट में ही मनमोहन सिंह वित्त मंत्री बने। पीवी नरसिम्हा राव को भारत में आर्थिक सुधारों की नीति की शुरुआत और ‘लाइसेंस राज’ की समाप्ति के लिए याद किया जाता है। उनके शासनकाल में ही भारतीय अर्थव्यवस्था समाजवादी मॉडल से निकलकर वैश्वीकरण, उदारीकरण और निजीकरण की तरफ बढ़ी। राव ने देश की इकॉनमी को दुनिया के लिए खोल दिया।
सोनिया की वजह से हाशिए पर धकेल दिए गए राव!
राव ने 21 जून 1991 से 16 मई 1996 तक देश की सत्ता संभाली। हालांकि कांग्रेस पार्टी ने उनसे धीरे-धीरे दूरी बनाई और हाशिए पर धकेल दिया। इसकी मुख्य वजह पार्टी की अंदरूनी खेमेबाजी और सोनिया गांधी से नापसंदगी बताई जाती है। राव ने कई मौकों पर सवाल भी उठाया था कि कांग्रेस का नेतृत्व केवल गांधी-नेहरू परिवार ही क्यों करे? कांग्रेस उन्हें 1992 में बाबरी मस्जिद विध्वंस के मामले को उचित तरीके से नहीं संभाल पाने का भी दोषी ठहराती रही। 1998 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस ने उन्हें टिकट तक नहीं दिया
नहीं मिला उचित सम्मान निधन के बाद भी
वर्ष 2004 में पीवी नरसिम्हा राव ने बीमारी के कारन से दम तोड़ दिया। कांग्रेस नेतृत्व ने राव का बायकॉट किस हद तक कर दिया था, इसका अंदाजा इसी से लगता है कि उनके पार्थिव शरीर को कांग्रेस मुख्यालय तक में नहीं आने दिया गया। श्रद्धांजलि सभा तक आयोजित नहीं होने दी गई और उनके शव को आनन-फानन में हैदराबाद रवाना कर दिया गया। उसी साल सत्ता में आई कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने राजधानी दिल्ली में जगह की कमी का हवाला देते हुए पूर्व पीएम का स्मृति स्थल तक बनवाने से मना कर दिया।
सत्ता में आने पर बीजेपी ने बनवाया स्मृतिस्थल
अपने निधन के बाद एक दशक तक राव अपनी पहचान को तरसते रहे। 2014 में बीजेपी की सरकार बनने के बाद तत्कालीन सहयोगी तेलुगू देशम पार्टी (टीडीपी) ने राव की याद में स्मृति स्थल बनवाए जाने का प्रस्ताव रखा, जिस पर मोदी सरकार ने अमल भी किया। इसके बाद पीएम मोदी ने भी कई बार कांग्रेस पर पूर्व पीएम को भुलाने का आरोप लगाया है।
सभी दलों में मची है ‘विरासत’ की होड़
फिलहाल दक्षिण भारत से आने वाले देश के पहले प्रधानमंत्री तेलुगू मूल के पीवी नरसिम्हा राव की विरासत पर सभी पार्टियां अपना दावा ठोकती दिखती हैं। फिर चाहे वो बीजेपी हो, टीआरएस हो, टीडीपी हो या फिर कांग्रेस। जन्मशताब्दी समारोह मनाकर टीआरएस अपना दावा पुख्ता करना चाहती है, जो पहले ही राव को स्कूलों के पाठ्यक्रम में शामिल कर चुकी है।