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देशभक्ति का कैसा जज्बा, चीनी सामान का बहिष्कार… क्या ये किया जा सकता है?

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डॉ. के एस राणा, कुलपति, कुमाऊँ विश्वविद्यालय

आपको याद होगा, सेना का मनोबल बढ़ाने के लिए देश की कई शीर्ष हस्तियों ने वर्दी पहनी है जिसमें सचिन तेंदुलकर, कपिल देव, एम.एस. धोनी, सचिन पाइलट, अनुराग ठाकुर जैसे लोग शामिल हैं। अब्दुल कलाम साहब भी एयर फ़ोर्स की बात करते थे, लेकिन मेरा सोचना है कि इन सबने वर्दी पहनी नहीं बल्कि इनको पहनाई गई। मात्र देश के नौजवानों का मनोबल बढ़ाने के वास्ते… यह लोग स्वतःस्फूर्त प्रेरणा से आगे चलकर क्यूँ नहीं गये सेना में ? इनके खेल का सम्मान किया गया, यह भी आर्मी की यूनिफॉर्म… बस ब्रांडिंग के मौके पर ही पहने हुए नजर आते हैं ये महानुभाव… क्या यही देशभक्ति है दिखावटी ?

सेना की विभिन्न भर्ती के फार्म उपलब्ध है आज भी ,जो लोग रोज Facebook और WhatsApp पर चीन से युद्ध करने का हल्ला मचा रहे हैं, क्या अपने बच्चों को फार्म भरवाएँगे ? देश में भगत सिंह पैदा हो किंतु पड़ौसी के घर में …! फिर चीनी सामान के बहिष्कार की बात करने वाले कभी उस समान की ख़रीद और बेच करने का एफिडेविड देंगे ? कदाचित् नहीं…
भीषण वीर हैं देश में ! इसीलिए तो, हमने 300 साल ग़ुलामी झेली थी… ! विरोध का झंडा उठाते थे फिर हराने वाले आक्रांताओं को माला पहनाते थे, देश का इतिहास इसीलिए कलंकित हुआ !

इजराइल बड़ा बहादुर देश है दुनिया का, वहां की आर्मी को भी नजदीक से जानो तो पता चलता है वहां के लोग आर्मी से दिल से जुड़े हैं, शत-प्रतिशत जुड़े हैं। लेकिन हमारे यहां स्थिति बिल्कुल भिन्न है।

एक शोध के अनुसार महज 10% भारतीय ही ऐसे होते हैं जो आर्मी में जोश और जज्बे के वशीभूत होकर जाते हैं। शेष को तो पापी पेट खींचकर ले जाता है। इसीलिए हम बात करते हैं कि फ़ौज में भर्ती की अनिवार्यता की शर्त रखी जाय तो सब कुछ सामान्य हो जाएगा। काश इज़राइल की तरह ही हमारे देश में नियम हो। सभी नेताओं और अफसरों की औलादें अनिवार्यत: सेना में भर्ती की जाए और सोशल मीडिया पर फ़तवा देने वालों की भी यही पहली शर्त हो.. तो देश बदलेगा ! किंतु यहाँ काग़ज़ी घोड़े दौड़ाने वाले बहादुर हैं, काग़ज़ी क्रांति के लिए ?

मैंने पर्यावरण एवं वन मंत्रालय भारत सरकार में विशेषज्ञ के रूप में पाँच साल कार्य किया है, अधिकारियों से मेरी वार्ता होती थी, सभी अपने बच्चों को IAS, IFS, IPS में ही भेजना चाहते हैं या फिर विदेश से MBA कराकर मल्टीनैशनल कम्पनी में ! पॉलिटिशन तो कभी सपनो में नहीं सोचते कि उनके बच्चे नौकरी भी करें। आज सेना को C ग्रेड का जॉब समझा जाता हैं जहां बस नान ऑफ़िसर कैडर में ज़रूरतमंद परिवारों के ग्रामीण बच्चे ही जाते हैं। आप ये जानकर हैरान होंगे की आज 134 करोड़ की आवादी का ये देश सैनिकों और सैन्य अधिकारियों की गम्भीर कमी से जूझ रहा है, कहाँ है देश भक्ति का जुनून ?

सुखद् अनुभव!
देश हित में अपना आत्मविश्वास मजबूत बनाते हुए देश की तीन बालाओं ने पायलट की ट्रेनिंग ली। अब वह देश के इतिहास में फाइटर पाइलट बनकर नाम रोशन करेंगीं… ! मुझे गर्व है कि दस वर्ष पूर्व मेरी एक शोध छात्रा अनामिका गौतम (फरीदाबाद) भी पायलट बनी थी, उसके माता-पिता शिक्षक थे अकेली बेटी थी, बेटे की तरह पाली थी, स्पोर्ट्स में मेधावी थी,शौक़ था ज़ुनून था देश सेवा का। किंतु परिजन उसे सेना में नहीं भेजना चाहते थे, रो रहे थे! तब मैंने बेटी की ज़िद पूरी कराने हेतु मुश्किल से माँ-बाप को समझाकर उनकी बेटी की इच्छा पूरी करायी थी। अब वह भुवनेश्वर में है उड़ीसा के पायलट से ही शादी कर ली ! सभी माँ-बाप बच्चों के सही कार्याें में सहयोग करें, तो देश बदल सकता है।

आज भारत चीन सीमा पर तनाव के समय कुछ लोग अपनी पुरानी टीवी सड़कों पर पटक विरोध कर रहे हैं। चीनी सामान का बॉयकट करने के लिए जो पहली शर्त है वो है हमें पता होना चाहिए कि कौन-कौन से सामान में चीन के पैसे लगे हैं। तो इसे जानने के लिए आपको अच्छा खासा इकोनोमिक एक्सपर्ट बनने की जरूरत पड़ेगी। किस भारतीय प्रोडक्ट में चीन की एसेसरीज लगी है और किस चीनी प्रोडक्ट की फैक्ट्री भारत में लगी है जहां भारतीयों का पैसा लगा है और उन्हें काम मिल रहा है ये पूरी तरह से पता लगाना एक जटिल काम है। आम आदमी के लिए ये बेहद मुश्किल है। किंतु मैं बताता हूँ…पेटीएम, पेटीएम मौल, बिग बास्केट, ड्रीम 11, स्नैपडील, फ्लिपकार्ट, ओला, मेक माई ट्रिप, स्विगी, जोमेटो जैसे स्टार्ट अप कंपनियों में चीन की अलीबाबा और टेंसट होल्डिंग कंपनी की बड़ी हिस्सेदारी है।
भारत में पिछले पांच साल में स्टार्टअप कंपनियों में चीन ने 4 बिलियन डॉलर यानी 30,000 करोड से ज्यादा का इन्वेस्टमेंट किया है। जो कुल इन्वेस्टमेंट का 2/3 भाग है।

  • ओप्पो, विवो, शियोमी जैसे मोबाइल जिनका भारत के 66% स्मार्ट फोन बाजार पर कब्ज़ा वो चीनी कंपनियां है।
  • देश भर की सभी पॉवर कंपनियां अपने ज्यादातर इक्विपमेंट चीन के बनाए खरीदते हैं। TBEA जो भारत की सबसे बड़ी इलेक्ट्रिक इक्विपमेंट एक्सपोर्टर है वो चीन समर्थित कंपनी है जिसकी फैक्टरी गुजरात में लगी है।
  • देश में बनने वाली दवा का 66% इंग्रेडिएंट्स चीन से आती है।
  • भारत में उत्पादित समान का चीन तीसरा सबसे बड़ा इंपोर्टर देश है। 2014 के बाद भारत का चीन से इंपोर्ट 55% और एक्सपोर्ट 22% बढ़ी है। भारत चीन के बीच लगभग 7.2 लाख करोड़ का व्यापार होता है जिसमें 1.5 लाख करोड़ भारत एक्सपोर्ट और और 5.8 लाख करोड़ का इंपोर्ट करता है।
  • इंडियन इलेक्ट्रिक ऑटो सेक्टर तो पूरी तौर पर चाइनीज कंपनी के चंगुल में आती जा रही। गिले, चेरि, ग्रेट वॉल मोटर्स, चंगान और बीकी फोटॉन जैसी चीनी कंपनियां अगले 3 साल में 5 बिलियन डॉलर यानी 35 हजार करोड से अधिक इन्वेस्टमेंट करने जा रही। इनमें कई की फैक्ट्रियां मुंबई और गुजरात में लग रही हैं।
  • अडानी समूह ने 2017 में चीन की सबसे बड़ी कंपनियों में से एक ईस्ट होप ग्रुप के साथ गुजरात में सौर ऊर्जा उपकरण के उत्पादन के लिए $300 मिलियन से अधिक का निवेश करने का समझौता किया था। रेनुवल एनर्जी में चीन की लेनी, लोंगी, सीईटीसी जैसी कंपनियां भारत में 3.2 बिलियन डॉलर यानी 25 हजार करोड़ से अधिक इन्वेस्ट करने वाली है।
  • आनंद कृष्णन के एक लेख के अनुसार 2014 में भारत चीन का इन्वेस्टमेंट 1.6 बिलियन था जो मोदी के दोस्ताना रिस्ते बनने के बाद केवल 3 बर्ष में यह पांच गुना बढ़कर करीब 8 बिलियन डॉलर हो गया।
  • 2019 अक्टूबर में गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रूपानी ने धोलेरा विशेष निवेश क्षेत्र (SIR) में चीन औद्योगिक पार्क स्थापित करने के लिए चाइना एसोसिएशन ऑफ स्मॉल एंड मीडियम एंटरप्राइजेज (CASME) के साथ एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किया जिसमें उच्च तकनीक क्षेत्रों में चीन 10,500 करोड़ रुपये के निवेश करेगा। ये प्रक्रिया उस वक़्त शुरू हुई, जब प्रधानमंत्री गुजरात में शी जिनपिंग को झूला झूलाने के लिए लाए थे।
  • हाल ही में दिल्ली-मेरठ रीजनल रैपिड ट्रांजिट सिस्टम (RRTS) प्रोजेक्ट के अंडरग्राउंड स्ट्रेच बनाने के लिए 1100 करोड़ का ठेका चीनी कम्पनी SETC को मिला है वहीं महाराष्ट्र सरकार के साथ चीनी वाहन निर्माता कंपनी ग्रेट वॉल मोटर्स (GWM) को 7600 करोड़ रुपये निवेश का समझौता हुआ है।

तो ये बीएसएनएल और एमटीएनएल जैसी सरकारी कंपनी जो पहले से ही खस्ता हालात में है वहां चीनी समान के उपयोग पर प्रतिबंध केवल फैंटा मंडली और मीडिया को चटकारे लगाने के लिए किया गया है। यदि सरकार सच में बॉयकॉट चीनी उत्पाद करने लगे तो सबसे ज्यादा नुकसान गुजराती परम मित्रों को ही होने वाला है।

यदि सच में भारत बॉयकॉट चीन चाहता है तो उसके लिए लंबी, कुशल और दूरदृष्टि रणनीति की जरूरत पड़ेगी। लेकिन जो सरकार चीनी कंपनियों के लगातार बेताहाशा इन्वेस्टमेंट के बाद भी देश की चलती फिरती अर्थव्यवस्था को 8 से 3.5% जीडीपी पर ले आए उससे आप बॉयकॉट चीन पर कितनी आशा रखते हैं। गंभीरता से सोचें, तब बताएं, देश भक्ति के जज्बे को सलाम करूँगा मैं।

चीन की वस्तुओं का बहिष्कार करने से कोई हल नहीं निकलने वाला इसका आयात बंद हो तब रास्ता निकलेगा केंद्र स्तर से। जनता थैला लेकर चीन नहीं जाती सामान ख़रीदने।

लेखक, समीक्षक एवं विश्लेषक कुमाऊं विश्वविद्यालय, नैनीताल के कुलपति हैं।

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