प्रेम कुमार
पुलवामा में आतंकी हमले इसलिए सफल नहीं हैं कि इसमें आतंकियों ने 40 से ज्यादा जवानों की जान ले ली। यह सफल इसलिए है कि इस घटना के बाद पहली बार कश्मीर की भारत में एकाकार तस्वीर दरकती दिखायी पड़ी है। कश्मीरियों को कश्मीर में चाहे किसी से तकलीफ रही हो लेकिन कश्मीर से बाहर भारत के किसी हिस्से में उन्हें तकलीफ हुई हो, ऐसा पहली बार हुआ है।
अब तक कश्मीर में भारत के बायकाट की असफल कोशिशें होती रही हैं लेकिन अब शेष भारत में कश्मीर के बायकाट की ऐसी ही असफल कोशिश देखने को मिल रही है।
सुप्रीम कोर्ट ने देश में कश्मीरी मूल के लोगों के साथ मारपीट और उनके बहिष्कार की घटनाओं पर संज्ञान लिया है। भारत सरकार और देश के 11 राज्यों को नोटिस भेजा है। मगर, मेघालय के राज्यपाल ने जो कश्मीर और कश्मीरियों के बहिष्कार की अपील की है उस पर कौन और कब संज्ञान लेगा? कश्मीरी मूल के छात्रों को उनके कॉलेज कैम्पस छोड़ने पड़े हैं। अपने-अपने घरों को लौटना पड़ा है। एक ऐसा माहौल देश में है जहां कोई कुछ सुनने को तैयार नहीं है।
हर कोई फैसला आॅन स्पॉट चाहता है। कुछ लोग ही अपराध को समझते, महसूस करते और उसका संज्ञान लेते हैं। वही लोग बगैर सुनवाई के अपराधी घोषित कर देते हैं। वही लोग सजा भी देते नजर आते हैं। देहरादून के शिक्षण संस्थान ऐसे लोगों से इतने प्रभावित हो गये कि उन्होंने भी कश्मीरी छात्रों को कॉलेज में दाखिला नहीं देने का एलान तक कर दिया। उत्तराखण्ड सरकार की ओर से कहा गया कि कश्मीरी छात्रों का सत्यापन हुआ करेगा, तभी एडमिशन। यह तो एक शहर और राज्य की बात हुई। बाकी राज्यों में स्थिति और भी भयावह है।
अब अकेली नहीं रही कश्मीरी अलगाववादियों की जुबान
कश्मीरियों को अपने देश लौटने पर मजबूर करने के लिए दहशतगर्दों के पास तो तर्क नहीं हैं। वे तो बस प्रतिक्रियावादी ताकत हैं। मगर, तथागत राय तो राज्यपाल हैं। मतलब खुद शासन हैं, खुद प्रशासन हैं। जब वे कश्मीर का बहिष्कार करने की बात कहते हैं तो उसके मायने क्या हैं। क्या वे उन लोगों को बड़ी वजह नहीं दे रहे हैं जो कश्मीर में भारत के बहिष्कार की बात करते रहे हैं? क्या वे आतंकवादियों और अलगाववादियों के मंसूबों को पूरा नहीं कर रहे हैं जो कश्मीर को भारत से अलग करना चाहते हैं, तोड़ना चाहते हैं?
पुलवामा हमले के पहले केवल कश्मीर में अलगाववादी होते थे। अब समूचे भारत में अलगाववादी हैं। अलगाववाद का विस्तार हुआ है। इसकी दूसरी धारा निकल आयी है। दोनों धाराएं देश को अलगाववाद और विघटनवाद की ओर ले जाने वाली हैं। एक कश्मीरियत और भारत विरोध के नाम पर है तो दूसरा देशभक्ति और कश्मीर के विरोध के नाम पर है। दुर्भाग्य से तथागत राय दूसरी धारा के प्रतीक बन गये हैं।
कश्मीर के अलगाववादी पाकिस्तानी, शेष भारत के क्या?
पुलवामा के बाद पहली धारा के अलगाववादियों को पाकिस्तान परस्त बताते हुए और उन पर पाकिस्तान से फंडिंग लेने का आरोप लगाते हुए उनकी सुरक्षा वापस ले ली गयी। मगर, शेष हिन्दुस्तान के अलगाववादियों को क्या कहा जाए? देश तोड़ने में तो दोनों लगे हैं। कश्मीर के अलगाववादियों की सुरक्षा वापस ले ली जाए तो इससे उन पर क्या फर्क पड़ेगा? अलगाववादी कब कहते हैं कि उन्हें सुरक्षा चाहिए? फर्क देश पर पड़ेगा। सुरक्षा में रहते हुए वही अलगाववादी हमारी निगरानी में भी थे। इसके अलावा कल को अगर कुछ हुआ, तो बिना कहे-सुने इल्जाम शासन पर ही लगेगा। यानी अलगाववादियों का जीना और मरना दोनों सरकार के लिए मुश्किल पैदा करने लगा है।
सुप्रीम कोर्ट है तो हम उनके नोटिस के जरिए भी पहचान पा रहे हैं कि कहां गलत हो रहा है। अन्यथा सही-गलत की पहचान भी हम करने की क्षमता खोते जा रहे हैं। कश्मीरी मूल के लोगों के साथ पुलवामा के बाद देशभर में जो हुआ है उससे कश्मीर में कश्मीरी पंडितों के साथ हुए ज्यादती की याद दिला दी है।
हालांकि उस जोर-जुल्म के मुकाबले ये घटनाएं कुछ भी नहीं हैं। मगर, इन घटनाओं ने कश्मीरी पंडितों के जायज सवाल को को कमजोर बनाया है। कश्मीरी पंडितों के सवाल पर जो लोग ग्लानि महसूस किया करते थे, उनकी ग्लानि इससे कम हो गयी है। ये स्थिति इसलिए पैदा हो रही है कि अब सरकार ही आम लोगों की तरह प्रतिक्रिया देने लगी है। सरकार ही पार्टी बनती दिख रही है। यह बहुत बड़ा दाग है। अगर इस दाग से मुक्ति पाना है तो तथागत राय की राज्यपाल जैसे संवैधानिक पद से तुरंत छुट्टी कर दी जानी चाहिए।