नई दिल्ली। ई-कॉमर्स व्यापार से जुड़े ग्लोबल नियमों के खिलाफ भारत वर्ल्ड ट्रेड ऑर्गेनाइजेशन (WTO) में भी अपनी लड़ाई अकेला लड़ता दिखाई देगा। ऐसा इसलिए क्योंकि 70 के करीब देश अमेरिका के साथ हैं जो बहुपक्षीय तंत्र चाहते हैं। इससे पहले भी कई मौकों पर भारत इस मामले पर अलग पड़ चुका है। पिछले हफ्ते हुई एक मंत्री बैठक में भी भारत को सिर्फ साउथ अफ्रीका का साथ मिला था।
दरअसल, भारत की ई-कॉमर्स ड्राफ्ट पॉलिसी बहुपक्षीय समझौतों से बचने के लिए है। वहीं यूएस, यूरोप, चीन जैसे देश ऐसे नियमों के पक्ष में हैं जिनसे ऐमजॉन, अलिबाबा और उबर के लिए व्यापार के रास्ते खोले जाएं। भारत के अलावा साउथ अफ्रीका और सऊदी अरब फिलहाल इसके खिलाफ हैं।
व्यापारियों और उपभोक्ता को ज्यादा फायदा नहीं मिल रहा
सरकार की तरफ से कहा गया है कि भारत इसपर राजी नहीं होगा क्योंकि इससे घरेलू व्यापारियों और उपभोक्ता को ज्यादा फायदा नहीं मिल रहा। सरकारी सूत्र ने आगे कहा ‘अगर 160 देश भी ग्लोबल कॉमर्स रूल के फेवर में रहे, तब भी भारत इसे रोकने की कोशिश करेगा।’ भारत की मुख्य चिंता किसी घरेलू पॉलिसी के न होने को लेकर है। साथ ही उसे यूएस और यूरोप द्वारा फ्री डेटा फ्लो की वकालत करना भी ठीक नहीं लगता।
भारत की क्या है चिंता
यूएस, ईयू और चीन की बात करें तो वे निजी जानकारी आदि डेटा के ट्रांसफर पर रोक नहीं चाहते। वहीं भारत का कहना है कि ऐसा होने से डेटा फ्लो निरंकुश हो जाएगा। अन्य नियमों पर भारत का कहना है कि इससे विकासशील देशों को बदले में WTO से कुछ नहीं मिलेगा।