झारखंड । विधानसभा चुनाव में सबसे दिलचस्प मुद्दा खुद मुख्यमंत्री रघुबर दास और झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) नेता हेमंत सोरेन हैं। जहां भाजपा ने अपना चुनाव प्रचार मुख्यमंत्री रघुबर दास के चेहरे से हटाकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर केंद्रित कर लिया है वहीं झामुमो-कांग्रेस-राजद गठबंधन ने अपना पूरा चुनाव प्रचार हेमंत सोरेन को मुख्यमंत्री बनाने के नाम पर केंद्रित करते हुए अपने पक्ष में आदिवासियों के ध्रुवीकरण की कोशिश की है। लंबे समय बाद ईसाई और गैर ईसाई आदिवासी मुख्यमंत्री के नाम पर एकजुट होते दिख रहे हैं।
संथाल परगना की जिन शेष 16 सीटों के लिए आखिरी चरण में 20 दिसंबर को मतदान होना है, वहां गांव-गांव और कस्बे-कस्बे में सिर्फ एक ही चर्चा है कि महज दो बार के अलावा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अब मुख्यमंत्री रघुबर दास का नाम लेना क्यों बंद कर दिया है। पूरे चुनाव को प्रधानमंत्री ने सीधे अपना चुनाव बनाकर लोगों से अपने लिए वोट मांगे हैं। यहां तक कि बाद की चुनावी सभाओं में प्रधानमंत्री ने उन उम्मीदवारों के नाम लेकर भी वोट नहीं मांगे जिनकी विधानसभा सीटें मोदी की जनसभाओं के क्षेत्रीय दायरे में थीं।
झारखंड के चुनाव प्रचार में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भाजपा के चुनाव अभियान का सबसे बड़ा सहारा बने हुए हैं। जिस तरह महाराष्ट्र में प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी चुनावी सभाओं में नारा दिया था कि दिल्ली में नरेंद्र और मुंबई में देवेंद्र और हरियाणा में जिस तरह हर सभा में मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर को फिर से मुख्यमंत्री बनाने की अपील मतदाताओं से की थी, ठीक उसी तरह उन्होंने चुनाव प्रचार की शुरूआत करते हुए झारखंड में भी भाजपा की सरकार बनने पर मुख्यमंत्री रघुबर दास को फिर से अगला मुख्यमंत्री बनाने की घोषणा की।
राज्य में दो सभाओं के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने मुख्यमंत्री का नाम लेना बंद कर दिया। शुरूआत में उन्होंने मंच पर मौजूद विधानसभा सीटों के उम्मीदवारों के नाम भी लिए थे, लेकिन बाद की चुनाव सभाओं में उन्होंने उनके नाम पर भी वोट मांगना बंद कर दिया। मोदी ने अपनी हर सभा में कहा कि कमल का मतलब मोदी और मोदी का मतलब कमल है। इसलिए, आपका कमल का बटन दबाने पर आपका वोट सीधा मोदी को जाएगा।
दरअसल इसकी एक वजह मुख्यमंत्री रघुबरदास द्वारा नौकरशाही को काम करने की आजादी देकर उसके कामकाज में राजनीतिक हस्तक्षेप न करने की नीति भी है। जिसकी वजह से भाजपा कार्यकर्ता और विधायक ही नहीं मंत्री तक नाखुश हैं और इस बात का प्रचार सबसे ज्यादा भाजपा के लोगों ने ही किया कि मुख्यमंत्री ने पूरे पांच साल सिर्फ अफसरों की ही सुनी और पार्टी की उपेक्षा की। यही बात प्रधानमंत्री और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह को भी बताई गई कि मुख्यमंत्री रघुबरदास की जनमानस में लोकप्रियता कम हुई है, इसलिए उनके नाम पर मतदाताओं से अपील करने की बजाय मोदी के नाम पर ही वोट मांगे जाना ही ठीक होगा। मंत्री सरयू राय की बगावत और रघुबर दास के खिलाफ उनका मैदान में उतरना भी इस धारणा को मजबूत बना गया। एक भाजपा नेता के मुताबिक यही वजह है कि प्रधानमंत्री ने बाद में अपनी चुनाव प्रचार की रणनीति बदल दी।
दुमका, शिकारीपाड़ा, लिट्टीपाड़ा, बरहेट, बड़हरवा, जामताडा, जमतड़ी, बसमत्ता, नवासर आदि जगहों में जहां भी लोगों से बात की गई अधिकतर ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी ने जिस तरह मुख्यमंत्री और भाजपा उम्मीदवारों के नाम लेने बंद कर दिए, इससे साफ जाहिर है उन्हें राज्य सरकार और विधायकों को लेकर लोगों की नाराजगी की खबरें मिल चुकी हैं और इसलिए उन्होंने अपने लिए वोट मांगना शुरू कर दिया है। भाजपा के स्थानीय कार्यकर्ता भी दबी जबान से स्वीकारते हैं कि इस बार कांटे की टक्कर है और 2014 के विधानसभा चुनावों या 2019 के लोकसभा चुनावों की तरह मामला एकतरफा नहीं है।
दुमका क्षेत्र के बसमता गांव में कपड़े की दुकान करने वाले जीतेंद्र कुमार दास कहते हैं कि वह खुद भाजपा कार्यकर्ता हैं, लेकिन इस बार लड़ाई आसान नहीं है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चुनाव प्रचार का कितना असर है यह पूछने पर जीतेंद्र दास कहते हैं कि मोदी जी की बात लोग सुनने के लिए आते हैं क्योंकि उनसे लोगों को प्यार है। लेकिन चुनाव राज्य का है और मुद्दे भी राज्य के ही हैं। दुमका के नवासर गांव में कुल 600 मतदाता हैं। पूरा गांव संथाल आदिवासियों का है। जिनका बहुमत झामुमो के साथ दिखता है। हालाकि महिलाओं में भाजपा के लिए भी नरमी है। महिलाओं के एक समूह से पूछने पर कि किसको वोट देंगी उनकी अगुआ रोशनी हेरंब से जवाब मिलता है अभी तय नहीं किया है। पास ही खड़े आदिवासी मंडल मिसिर कहते हैं कि महिलाओं को रघुबर सरकार ने काफी कुछ दिया है,इसलिए इनका ज्यादा वोट भाजपा को मिलेगा। मुद्दा क्या है इस पर कोई कुछ खास नहीं बताता। बाद में मंडल मिसिर खुद हमसे पूछते हैं कि आप ही बताइए किसको वोट देना चाहिए।
और आगे चलने पर सड़क के किनारे जमतड़ी के पास एक ढाबे पर भाजपा कार्यकर्ताओं के हुजूम से बात होती है। सब एक मोटर साईकिल रैली से आ रहे हैं जो दुमका विधानसभा सीट से भाजपा उम्मीदवार लुईस मरांडी के प्रचार के लिए निकाली गई थी। शुरू में भाजपा की जीत का दावा करने वाले ये कार्यकर्ता कुछ देर बाद मानते हैं कि इस बार झामुमो के हेमंत सोरेन के साथ कांटे की टक्कर है।क्योंकि आदिवासियों का एकतरफा झुकाव झामुमो की तरफ होता दिख रहा है। वजह ये कि उन्हें लगता है कि अगर झामुमो कांग्रेस राजद महागठबंधन की सरकार बनी तो हेमंत मुख्यमंत्री बनेंगे। करीब करीब पूरे संथाल परगना में यह भावना जोरों पर है और कई गैर आदिवासी समूह भी इस उम्मीद में मुकाबले को कांटे का बना रहे हैं।