नयी दिल्ली। पंकज शर्मा 13 साल और 6 महीने एक ऐसे अपराध के लिए जेल में बिताकर घर वापस आने वाले हैं जो उन्होंने किया ही नहीं। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने इस हफ्ते एक सत्र न्यायलय के 2009 में दिए गए आदेश को खारिज करते हुए शर्मा को बहनोई की हत्या के आरोप से बरी कर दिया। जस्टिस पंकज नकवी और जस्टिस सुरेश कुमार की बेंच ने कहा कि अभियोजन यह साबित नहीं कर सका कि यह हत्या थी या आत्महत्या।
पंकज, उनके पिता, दो भाइयों और तीन दूसरे रिश्तेदारों को 22 मार्च, 2006 को गिरफ्तार कर लिया गया था। उनके बहनोई ललित पराशर ने पंकज के घर पर खुद को गोली मार ली थी। ललित का कथित तौर पर पत्नी शशि के साथ झगड़ा हुआ था और वह नाराज होकर मायके आ गई थी। परिवार ने दावा किया था कि ललित ने आत्महत्या की है लेकिन पुलिस ने पंकज और परिजनों को हत्या के आरोप में गिरफ्तार कर लिया।
पंकज के परिजनों को तो गिरफ्तार किए जाने के कुछ महीने बाद ही जमानत मिल गई थी लेकिन पंकज को जेल में ही रहना पड़ा। वह उस वक्त 27 साल के थे। उनकी पत्नी ने अपने बच्चों को बताया कि उनके पिता विदेश गए हैं।
बदल गए हालात
परिवार 2009 में केस हार गया। सत्र न्यायालय ने सातों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई। हालांकि, पंकज के अलावा बाकी सभी को जेल भेजने का फैसला हाई कोर्ट में सुनवाई होने तक स्थगित कर दिया। पंकज को जेल भेज दिया गया। पंकज के पिता और दो भाई वापस बिजनस करने लगे। उनका परिवार कोठी छोड़ छोटे घर में शिफ्ट हो गया क्योंकि वकीलों का खर्च उठाना मुश्किल हो गया था। वहीं, बच्चों से यह छिपाना भी चुनौती थी कि उनके पिता जेल में हैं।
दुश्मन को भी न मिले जेल
पंकज की पत्नी प्रीति ने बताया कि एक बार जब वह पंकज से मिलने गईं तो उन्होंने बच्चों से सच बताने के लिए कहा ताकि वह हर महीने उनसे मिल सकें। प्रीति ने बताया कि यह बेहद मुश्किल काम था लेकिन बच्चों ने समझदारी से सब स्वीकार किया। उनकी बेटी अब 11वीं में और बेटा 9वीं क्लास में हैं। प्रीति ने बताया, ‘जब भी उनसे मिलने जेल जाते थे, वह कहते थे कि दुश्मन को भी जेल में न रखा जाए।’