नई दिल्ली।भारत ने 2016 में पठानकोट हमले के बाद पाकिस्तान से बातचीत रोक दी थी। और अब पाकिस्तान ने भारत के साथ द्विपक्षीय कारोबार रोकने और राजनयिक संबंध तोड़ने का फैसला किया है। भारत को इससे ज्यादा नुकसान नहीं होगा, क्योंकि दोनों देशों के बीच बातचीत तीन साल से बंद है। भारत-पाकिस्तान द्विपक्षीय कारोबार 18 हजार करोड़ रुपए का था, लेकिन पुलवामा हमले के बाद से ज्यादा आयात-निर्यात भी नहीं हो रहा। विदेश मामलों के जानकार रहीस सिंह बताते हैं कि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने अपने देश की फौज को खुश करने और दुनिया का ध्यान आकर्षित करने के लिए यह कदम उठाया है।
भारत के उच्चायुक्त को भेजा वापस
पाकिस्तान ने भारत के उच्चायुक्त को वापस भेजकर राजनयिक संबंधों में कटौती की है, लेकिन इसका कोई खास असर नहीं होगा। अभी दोनों देश नियंत्रण रेखा पर गोलीबारी बढ़ने के बाद एक-दूसरे के उच्चायुक्त को तलब करते हैं। भारत ने समग्र वार्ता 2013 से रोक रखी है। वहीं, द्विपक्षीय वार्ता 2016 में पठानकोट हमले के बाद से बंद है। बातचीत के नाम पर भारत ने हाल ही में सिर्फ करतारपुर कॉरिडोर के मामले में पाकिस्तान से संपर्क साधा था। रहीस सिंह बताते हैं कि पाकिस्तान अगर डिप्लोमैटिक चैनल बंद भी कर दे तो इसका भारत पर कोई असर नहीं पड़ेगा।
बौखलाए इमरान सिर्फ चीन ने दिया साथ
जब भारत ने जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देता अनुच्छेद 370 निष्प्रभावी कर दिया और लद्दाख को अलग कर जम्मू-कश्मीर को केंद्र शासित प्रदेश बना दिया तो इमरान खान बौखलाहट में थे। दुनिया के कई देशों ने भारत-पाकिस्तान के संबंधों पर पड़ने वाले संभावित असर पर चिंता जरूर जाहिर की, लेकिन भारत के खिलाफ कोई बयान नहीं दिया। सिर्फ चीन ने कहा कि भारत का यह कदम उसकी संप्रभुता को भी चुनौती देता है। इस पर भारत ने स्पष्ट किया कि यह भारत का अंदरूनी मामला है।
आवाम को खुश करने के लिए उठाया कदम
रहीस सिंह बताते हैं कि पाकिस्तान अन्य देशों के साथ बातचीत में कश्मीर का मुद्दा ले आता है। ऐसा तीन दशक से हो रहा है, क्योंकि पाकिस्तान की राजनीतिक आत्मा कश्मीर में बसी है। इमरान का ताजा कदम सेना के लिए हो सकता है, क्योंकि भारत के खिलाफ पाकिस्तान की नीति कमजोर पड़ने पर सेना उनके लिए सबसे बड़ी समस्या खड़ी कर सकती है। इमरान सेना को संदेश देना चाहते हैं कि वे भारत के खिलाफ कदम उठा रहे हैं, लेकिन सेना उनके इस कदम से खुश होगी या नहीं, यह कहना मुश्किल है। इमरान का कदम बौखलाहट से भरा है।
पुलवामा हमले के बाद छीना मोस्ट फेवर्ड नेशन का दर्जा
पुलवामा हमले से पहले जुलाई 2018 से जनवरी 2019 के बीच दोनों देशों के बीच 6,230 करोड़ रुपए का कारोबार हुआ था। जनवरी-जून 2018 की तुलना में इसमें 5% का इजाफा हुआ था। वहीं, 2018-19 में दोनों देशों के बीच करीब 18 हजार करोड़ रुपए का कारोबार हुआ। यह 2017-18 की तुलना में 1600 करोड़ रुपए ज्यादा था। इसमें भारत का पाकिस्तान को निर्यात 80% और आयात सिर्फ 20% है। हालांकि, 18 हजार करोड़ रुपए का यह कारोबार अब बेहद कम हो चुका है।
रहीस सिंह बताते हैं कि पुलवामा हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान से मोस्ट फेवर्ड नेशन का दर्जा छीन लिया था। इसके तहत हमने पाकिस्तान से आने वाले सामान पर 200% इम्पोर्ट ड्यूटी लगा दी थी। पाकिस्तान हमारे साथ वैसे भी कारोबार नहीं कर पा रहा था। हम न तो उनसे ज्यादा आयात कर रहे थे और न ही निर्यात कर रहे थे। वे हमारे ट्रकों को भी अटारी से आगे नहीं जाने जाते थे। फर्क सिर्फ यही होगा कि पाकिस्तान द्विपक्षीय कारोबार बहाल करने के लिए पहले गिड़गिड़ा रहा था, अब ऐसा नहीं करेगा।
कुलभूषण मामले पर इसका असर हो सकता है
रहीस सिंह के मुताबिक, पाकिस्तान के इस कदम से कुलभूषण जाधव मामले पर अवरोध पैदा हो सकता है। अंतरराष्ट्रीय अदालत के फैसले के बाद हाल ही में उसने जाधव को काउंसलर एक्सेस देने की बात कही थी, लेकिन अब इससे पलट सकता है। हो सकता है कि भारत को यह मामला दोबारा अंतरराष्ट्रीय फोरम पर ले जाना पड़े। पाकिस्तान जाधव को भारतीय जासूस बताता है। उसकी सैन्य अदालत जाधव को फांसी की सजा सुना चुकी है, जिसके खिलाफ भारत ने अंतरराष्ट्रीय अदालत में अपील की थी।
1965 और1971 के वक्त ही खत्म हो गए थे राजनयिक संबंध
1965 और 1971 की जंग के वक्त भारत-पाकिस्तान के बीच राजनयिक संबंध खत्म हो गए थे। वहीं, 1999, 2001 और 2002 में इसमें कटौती की गई थी। दिसंबर 2001 में संसद पर आतंकियों के हमले के बाद भारत ने दिल्ली में पाकिस्तान के मिशन में तैनात स्टाफ में 50% की कटौती करा दी थी। वहीं, अपने उच्चायुक्त को पाकिस्तान से बुला लिया था। भारत ने दिल्ली में पदस्थ पाकिस्तान के मिशन प्रमुख से बात करने से भी इनकार कर दिया था। इसके बाद मई 2002 में भारत ने नई दिल्ली स्थित पाकिस्तान के तत्कालीन उच्चायुक्त अशरफ जहांगीर काजी को निष्कासित किया था। कश्मीर में एक आतंकी हमले में 35 लोगों की मौत होने के बाद भारत ने यह कदम उठाया था। उस वक्त जहांगीर काजी आतंकियों का समर्थन कर रहे थे।