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बढ़ते छात्र आत्महत्या के मामले , 2018 में टूटा 10 साल का रिकॉर्ड

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Shadow of sad man hanging suicide. light and shadow

बेंगलुरु। नैशनल क्राइम रेकॉर्ड्स ब्यूरो के साल 2018 के आंकड़ों से स्टूडेंट्स की आत्महत्या को लेकर बेहद निराशाजनक तथ्य सामने आए हैं।स्टूडेंट्स के ऊपर पड़ने वाले दबाव और तनाव के कारण वे क्या कदम उठा लेते हैं, इस बारे में चर्चा नई नहीं है लेकिन डेटा के मुताबिक साल 2018 में हर 24 घंटे पर 28 स्टूडेंट्स अपनी जान दे रहे थे। पिछले 10 साल में भारत के करीब 82,000 स्टूडेंट्स ने सूइसाइड कर लिया और सबसे ज्यादा 10,000 के ऊपर मामले 2018 में सामने आए।

साल 2018 में भारत में कुल 13 लाख आत्महत्या के मामले सामने आए जिनमें से 8% स्टूडेंट्स थे। करीब इतने ही बेरोजगार लोग जबकि 10% बेरोजगार लोगों ने अपनी जान दे दी।1 जनवरी, 2009 से लेकर 31 दिसंबर, 2018 तक 81,758 स्टूडेंट्स ने आत्महत्या की है। इसमें से 57% स्टूडेंट्स ने पिछले 5 साल में अपनी जान दी और 10,159 स्टूडेंट्स ने 2018 में यह कदम उठाया।

क्या रहीं मुख़्य वजह
इस बारे में एक्सपर्ट्स का मानना है कि स्टूडेंट्स ड्रग्स, डिप्रेशन, पारिवारिक परेशानियों और रिलेशनशिप्स के चलते यह कदम उठाते हैं।
साल 2018 में जान देने वाले स्टूडेंट्स में से एक-चौथाई ने एग्जाम में फेल होने के चलते जिंदगी खत्म कर ली। साइकॉलजिस्ट्स के मुताबिक क्लिनिकल डिप्रेशन, स्कीजोफ्रीनिया और दूसरी मानसिक परेशानियों और नशे-शराब के कारण सबसे ज्यादा आत्महत्या के मामलों के पीछे होते हैं।
सोशियॉलजिस्ट समता देशमाने का कहना है कि स्टूडेंट्स समाज में होते बदलाव के साथ चल नहीं पाते। उन्होंने कहा कि इंसान सामाजिक प्राणी है लेकिन आज लोग सामाजिक कम, अकेले ज्यादा होते जा रहे हैं।वहीं सोशियॉलजिस्ट्स और राइट्स ऐक्टिविस्ट्स के मुताबिक यह एक साइको-सोशल प्रॉब्लम है।

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