लखनऊ। सीटों के लिहाज से देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश और बिहार में लोकसभा चुनाव से ठीक पहले महागठबंधन बनाने वाली बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी), समाजवादी पार्टी (एसपी) और राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) को चुनाव परिणामों में करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा है। जिस तरह से नब्बे के दशक में मंडल आंदोलन की धार को कुंद करने के लिए बीजेपी ने ‘कमंडल’ आंदोलन को गति दिया था, उसी तरह से वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘कमंडल-2’ की ऐसी पटकथा लिख दी कि ‘सामाजिक न्याय’ की बात करने वाले दलों के लिए अस्तित्व का संकट पैदा हो गया है।
गठजोड़ बनाने में असफल रहे दल
लोकसभा चुनाव में करारी शिकस्त ने एसपी, बीएसपी और आरजेडी के भविष्य को लेकर सवाल खड़ा कर दिया है। ओबीसी, दलितों और मुस्लिमों को साधने के लिए इन दलों की ‘सामाजिक न्याय’ की अपील ‘भगवा राष्ट्रवाद’ के आगे ध्वस्त हो गई। यूपी और बिहार के चुनाव परिणामों ने यह दर्शा दिया है कि एसपी, बीएसपी और आरजेडी ओबीसी, दलित और मुस्लिम का गठजोड़ बनाने में असफल रहे। ओबीसी, दलित और मुस्लिम का गठजोड़ ने ही हिंदी बेल्ट में लालू यादव, मुलायम सिंह यादव, कांशीराम-मायावती को उभरने में मदद की थी।
मंडल बनाम कमंडल
समय के साथ ओबीसी और दलित अलग-अलग जातियों में बंट गए। यादव मुलायम सिंह और लालू यादव के वोटर बन गए और बीएसपी के साथ दलितों में शामिल जाटव आ गए। वर्ष 2019 का लोकसभा चुनाव ‘मंडल बनाम कमंडल’ के बीच सीधी जंग का बेहतरीन उदाहरण है, जहां ‘पिछड़ी जातियां’ एक हो गईं। मजेदार बात यह है कि दलित संगठन इसलिए मंडल कटेगरी में शामिल हो गए क्यूंकि बीएसपी के संस्थापक कांशीराम ने वर्ष 1980 के दशक में मंडल आयोग की रिपोर्ट को लागू करने का वादा करते थे।
10 फीसदी आरक्षण के खिलाफ भी किया जमकर प्रचार
बिहार में लालू यादव की आरजेडी ने अन्य पिछड़ी जातियों से जुड़ी पार्टियों उपेंद्र कुशवाहा की आरएलएसपी, मुकेश साहनी की वीआईपी के साथ गठजोड़ करके ‘ओबीसी आरक्षण को खतरा’ के मुद्दे को पीएम मोदी के राष्ट्रवाद के मुद्दे के समांतर खड़ा किया। इन दलों ने गरीबों को मिलने वाले 10 फीसदी आरक्षण के खिलाफ भी जमकर प्रचार किया। इसी तरह से यूपी में एसपी ने अपनी धुर विरोधी बीएसपी के साथ गठजोड़ बनाया ताकि दलित, ओबीसी और मुस्लिम के गठजोड़ से बीजेपी को मात दी जा सके।
एसपी और बीएसपी की तीसरी हार
वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव, वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में हार के बाद यह एसपी और बीएसपी की तीसरी हार है। यूपी की तरह ही बिहार में वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में आरजेडी को करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा। साल 2015 में विधानसभा चुनाव में आरजेडी का फिर से उद्भव हुआ। लेकिन वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में आरजेडी का सूपड़ा साफ हो गया।
कैसे बनाये खुद को प्रासंगिक ?
इन तीनों ही दलों की असफलता से कम से कम निकट भविष्य में अब उनके अस्तित्व पर ही सवाल उठने लगे हैं। बीजेपी के हिंदुत्व के नारे के सामने जातीय दलों का दम तोड़ना नया नहीं है। इससे पहले कल्याण सिंह के दौर में अयोध्या आंदोलन के दौरान हो चुका है। हालांकि मोदीराज में एसपी-बीएसपी-आरजेडी के अस्तित्व पर खतरा ज्यादा प्रभावी नजर आ रहा है। अब इनके सामने सबसे बड़ी चुनौती यह है कि वे कैसे खुद को पीएम मोदी के रहते हुए प्रासंगिक बनाती हैं।
युवाओं को लुभाया पीएम का वादा
ओबीसी युवाओं को पीएम मोदी का विकास का वादा लुभा रहा है। उत्तर प्रदेश में यह साबित भी हो गया जहां आरएलडी के अजीत सिंह के साथ गठजोड़ के बाद भी जाट युवा मोदी के साथ नजर आए। यही नहीं मंडल आयोग से जुड़े ये दल पिछड़ों को साथ रखने में असफल रहे। युवा नेताओं अखिलेश यादव और तेजस्वी यादव को अपने भविष्य और रणनीति के बारे में सोचना होगा।