नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव में मोदी की जीत में रोड़ा अखिलेश-राहुल नहीं बल्कि अलग-अलग वर्ग से आने वाली ये तीन महिला राजनेता एक बड़ा खतरा साबित हो सकती हैं। प्रियंका गांधी वाड्रा उस गांधी-नेहरू परिवार का हिस्सा हैं जिन्होंने आजादी के बाद से सबसे अधिक समय तक देश में शासन किया। प्रियंका को देश की सबसे पुरानी पार्टी में जनवरी में शामिल कर लिया गया था। विपक्षी कांग्रेस पार्टी ने देश के सबसे अधिक आबादी वाले राज्य उत्तर प्रदेश में उन्हें अपना चेहरा बनाया है। अन्य दो पावरफुल महिला नेताओं की बात करें तो पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और यूपी का पूर्व सीएम मायावती हैं। जो कि मोदी के सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) महागठबंधन को एकजुट करने की कोशिश कर रही हैं। हालांकि उनके बीच अभी तक कोई ठोस समझौता नहीं हुआ है।
विपक्ष के पास राजग की तुलना में अधिक शक्तिशाली महिला नेता यशवंत सिन्हा ने कहा, विपक्ष के पास राजग की तुलना में अधिक शक्तिशाली महिला नेता हैं। इसलिए वे मतदाताओं के साथ आम तौर पर और विशेष रूप से महिला मतदाताओं को लुभाने में सफल हो सकती हैं। हाल के राज्य चुनावों में भाजपा की हार का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा, तीन प्रमुख हिंदी राज्यों में हार के बाद उन्हें बहुत चिंतित होना चाहिए। और अब यूपी में प्रियंका की एंट्री के बात बीजेपी के मुश्किलें और बढ़ गई हैं। नाचते हुए समर्थकों की तस्वीरें ये बात साफ करती हैं कि लोग प्रियंका में उनकी दादी पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को देखते हैं। वहीं उनके भाषण लोगों के बीच काफी प्रभावशाली है जो उनसे लोगों को सीधा जोड़ते हैं। पूर्व में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की इसी बात को लेकर आलोचना होती थी कि, वे अपने को लोगों से नहीं जोड़ पाते हैं।
अन्य दोनों महिला नेताओं की बात करें तो वे मोदी की सत्ता पर पकड़ को धमकाती दिखी हैं। इन दोनों नेताओं को प्रियंका की तुलना में अधिक राजनीति का अनुभव है। एक गठबंधन सरकार में दोनों को संभावित प्रधानमंत्री उम्मीदवारों के रूप में देखा जा रहा है। एक शिक्षक से मुख्यमंत्री तक का सफर तय करने वाली बीएसपी चीफ मायावती उत्तर प्रदेश में दलित और पिछड़ी जातियों में खासा प्रभाव रखती हैं। अब उन्हें समाजवादी पार्टी से समर्थन प्राप्त है जो अन्य निचली जातियों और मुसलमानों से समर्थन प्राप्त करती है। केंद्र सरकार में दो बार रेल मंत्री रह चुकी ममता बनर्जी जो पश्चिम बंगाल में दूसरी बार सत्ता में विराजमान है। हाल ही उन्होंने कोलकाता में 20 से अधिक दलों की मेगा रैली की आयोजन किया था। जिसमें उनके लाखों समर्थक जुटे थे।
व्यक्तिगत गठबंधन कांग्रेस का कहना है कि वह मायावती की बसपा और सपा गठबंधन के साथ चुनाव के बाद गठबंधन करना चाहती है, हालांकि वह 78 सीटों पर उनके खिलाफ लड़ रही है।वहीं इस गठबंधन में राहुल गांधी और सोनिया गांधी के खिलाफ अपने उम्मीदवार उतारने से इंकार कर दिया है। मायावती ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में सपा के साथ गठबंधन की घोषणा करते हुए कहा कि कांग्रेस इसका हिस्सा नहीं है क्योंकि इस चुनाव में उनके हमारे साथ आने से कोई फायदा नहीं होगा। बीएसपी मध्य प्रदेश और राजस्थान में कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकारों का समर्थन करती है। वहीं बनर्जी और कांग्रेस के बीच कोई औपचारिक गठबंधन नहीं है, हालांकि वह राहुल और प्रियंका को जानती हैं। वहीं पूर्व मंत्री और बनर्जी के करीबी दिनेश त्रिवेदी का कहना है कि उनके सोनिया गांधी और कांग्रेस अध्यक्ष के पिता के साथ व्यक्तिगत तौर पर अच्छे संबंध रहे हैं इसलिए उनके दो बच्चों के साथ काम करना कोई समस्या नहीं होगी। त्रिवेदी ने कहा, अनुभव के मामले में ममता बनर्जी बहुत आगे हैं। मुझे आश्चर्य नहीं होगा अगर राहुल गांधी या प्रियंका गांधी ममता बनर्जी को किसी ऐसे व्यक्ति के रूप में देखेंगे जो वास्तव में उन्हें प्रेरित कर सकता है।
प्रियंका यूपी में कांग्रेस का कर सकती हैं कायाकल्प
प्रियंका यूपी में कांग्रेस का कायाकल्प कर सकती हैं संभावित विपक्षी गठबंधन के रूप में प्रियंका, मायावती और बनर्जी में वह ताकत है कि वे चुनाव में विभिन्न हिस्सों में अपील कर सकती हैं। कांग्रेस के दो सूत्रों ने कहा कि प्रियंका के राजनीति में औपचारिक प्रवेश से उत्तर प्रदेश में पार्टी का कायाकल्प हो सकता है। उन्होंने कहा कि वह राज्य में उच्च जाति के मतदाताओं से अपील कर सकती हैं जो आम तौर पर भाजपा को वोट देते हैं। गाँधी के करीबी एक कांग्रेसी नेता ने कहा कि वह महिलाओं, युवाओं और मतदाताओं को आकर्षित करेंगी। वह पहले भी यूपी में अपनी मां और भाई के लिए चुनाव प्रचार कर चुकी हैं।
मायावती का जेंडर कोई मायने नहीं रखता
बसपा प्रवक्ता सुधींद्र भदौरिया ने कहा कि मायावती का जेंडर कोई मायने नहीं रखता। भदौरिया ने कहा, वह इस स्तर पर पार्टी को मैनेज कर रही हैं। महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि उन्होंने बड़ी संख्या में पुरुषों और महिलाओं, दलितों, अन्य पिछड़ी जातियों, गरीबों, अल्पसंख्यकों को संगठित किया है। मैं उन्हें पुरुष-महिला के स्ट्रेटजैक में फिट नहीं करता। मुझे लगता है कि वह एक राष्ट्रीय नेता हैं। अगर बात ममता बनर्जी की करें तो उन्होंने 2011 में पश्चिम बंगाल में 34 साल पुरानी कम्युनिस्ट सरकार को हराया था। उन्हे स्ट्रीट पॉलिटिक्स के लिए जाना जाता है । हाल में वे भाजपा के खिलाफ एक धर्मनिरपेक्ष चेहरा बनकर उभरी हैं।