लखनऊ। लोकसभा चुनाव में महिलाओं को रहनुमाई देने में किसी भी सियासी दल ने खास दिलचस्पी नहीं दिखाई है, लेकिन कई सीटों पर सियासी दलों और उनके दिग्गज चेहरों की किस्मत महिला वोटर ही तय करती दिखाई दे रही हैं। अब तक पांच चरणों के लिए मतदान हो चुके हैं। इनमें 40% से अधिक सीटों पर महिलाओं का वोट प्रतिशत पुरुषों की अपेक्षा अधिक है। इसमें राहुल-सोनिया से लेकर आजम खां तक की सीटें शामिल हैं।
अब तक की वोटिंग के आंकड़े बताते हैं कि 2014 के अपेक्षा इस बार मतदान प्रतिशत में न तो कोई उत्साहजनक उछाल है और न ही बड़ी गिरावट। ऐसे में वोटरों का मूड क्या है, यह भांपना मुश्किल हो रहा है। यूपी की सीधी दिख रही सियासी लड़ाई में महिलाओं वोटरों की प्रभावी भागीदारी ने विश्लेषकों को एक बार फिर मंथन पर मजबूर कर दिया है। अब तक जिन 53 सीटों पर वोटिंग हुई है, उसमें 14 सीटों पर महिलाओं की वोटिंग का प्रतिशत पुरुषों की अपेक्षा अधिक है। वहीं, 8 सीटों पर दोनों की वोटिंग का आंकड़ा लगभग बराबर है।
मुस्लिम बेल्ट में दिखा जोश
वोटिंग के आंकड़े खंगाले तो महिलाओं की सक्रिय भागीदारी के ट्रेंड वेस्ट यूपी से लेकर अवध और बुंदेलखंड तक नजर आ रहे हैं। मुस्लिम बहुल लोकसभा सीटों बिजनौर, नगीना, अमरोहा, बुलंदशहर से लेकर रामपुर तक में महिलाओं ने अधिक वोटिंग की है। नगीना में तो महिला तथा पुरुष वोटरों के वोटिंग प्रतिशत में 6% का अंतर है। रामपुर से समाजवादी पार्टी के आजम खां के मुकाबले बीजेपी ने जया प्रदा को उतारा है। इस सीटों पर दोनों ही उम्मीदवारों ने एक-दूसरे पर जमकर व्यक्तिगत हमले किए थे। भावानात्मक अभियान भी दोनों उम्मीदवारों ने खूब चलाए थे। कैराना, मुजफ्फरनगर में महिला-पुरुष की वोटिंग का अनुपात लगभग बराबर है।
अवध-बुंदेलखंड में भी बढ़-चढ़कर भागीदारी
अवध और बुंदेलखंड की सीटों पर भी महिलाओं ने वोटिंग प्रतिशत में पुरुषों को पिछाड़ा है। मसलन, अमेठी और रायबरेली में भी महिलाएं पुरुषों की मुकाबले अधिक घर से निकली हैं। अमेठी में राहुल गांधी के खिलाफ स्मृति इरानी उम्मीदवार हैं। हिंदुत्व की सियासत का सेंटर पाइंट अयोध्या को समेटने वाली फैजाबाद सीट हो या बुंदेलखंड की बांदा, फतेहपुर, हमीरपुर जैसी लोकसभा महिलाओं का वोटिंग प्रतिशत पुरुषों को पीछे छोड़ रहा है। यादव बेल्ट की सीटों कन्नौज और इटावा में भी महिला-पुरुष के वोटिंग का आंकड़ा लगभग बराबर ही है। बांगरमऊ के विधायक कुलदीप सिंह सेंगर पर रेप के आरोपों के चलते चर्चित हुई उन्नाव लोकसभा में महिलाओं ने वोट प्रतिशत में पुरुषों की बराबरी की है।
योजनाएं, जागरूकता या सामान्य ट्रेंड?
बूथ तक महिलाओं की बढ़ी यह पहुंच सत्ता तक किसकी पहुंच आसान बनाएगी और किसकी मुश्किल इसको लेकर अलग-अलग व्याख्याएं हैं। लखनऊ विश्व विद्यालय में महिला अध्ययन विभाग के पूर्व निदेशक प्रोफेसर राकेश चंद्रा ने करीब 5 साल पहले महिलाओं की राजनीतिक सहभागिता पर स्टडी की थी। प्रोफेसर चंद्रा कहते हैं कि स्टडी के अनुसार शहरों में भी 41% महिलाओं ने माना था कि वे अपने परिवार के पुरुषों की राय से वोट डालती है। लेकिन, पिछले कुछ सालों से राजनीतिक दलों ने जिस तरह महिलाओं को वोटर वर्ग के रूप में लक्षित किया है, उसके भी असर दिख सकता है। उज्ज्वला, शौचालय जैसी महिलाओं की बुनियादी सुविधाओं से जुड़ी योजनाओं की चुनाव में मानस तैयार करने में सीमित भूमिका पूरी तरह से नकारी नहीं जा सकती।
समाजशास्त्री प्रोफेसर राजेश मिश्र कहते हैं कि जब राजनीतिक लड़ाई बहुत तीव्र हो तो ऐसे ट्रेंड दिखते हैं। जिन क्षेत्रों में पुरुष काम के सिलसिले में अधिकतर बाहर रहते हैं वहां भी महिलाओं की अधिक वोटिंग का आंकड़ा दिखता है। वोटिंग बढ़ने के पीछे योजनाएं हैं तो उनका असर हर क्षेत्र में दिखना चाहिए। फिर भी उनकी सीमित भूमिका और मजबूत प्रचार तंत्र का असर महिला वोटरों पर भी पड़ सकता है।