नवरात्र में माता के नौ स्वरूपों की आराधना जीवन में सुख समृद्धि का संचार करती है। भारत संस्कृतियों, परम्पराओं व सभ्यताओं का देश है, जहां हर तरह के लोग मिलते हैं, हर धर्म, जाति, सम्प्रदाय व लिंग के लोग मिलते हैं, जो अपनी इच्छानुसार अपने ईश्वर की उपासना करते हैं, पूजा-अर्चना करते हैं। हिन्दू धर्म में उपासना और त्यौहारों का अपना महत्व है, दिन, महीने व साल के मुताबिक भगवान को पूजने की विधि हिन्दुओं में अपनाई गई है। इन्हीं त्यौहारों में से एक है शारदीय नवरात्र का त्यौहार जहां मां दुर्गा के अलग-अलग नौ रुपों की पूजा लगातार नौ दिनों तक की जाती है।
कोई इनकी उपासना के लिए नौ दिनों तक व्रत रहता है तो कोई कन्या भोज करता है एवं आदि-आदि चीजें करते हुए अपने जीवन में सुख शांति के लिए प्रार्थना करता है। शारदीय नवरात्र में मां के जिन नौ रुपों की पूजा होती है उनमें ब्रह्मचारिणी, कुष्मांडा, चंन्द्रघंटा, कालरात्रि, महागौरी, कात्यायनी, स्कन्दमाता, शैलपुत्री व सिद्धिदात्री मां की उपासना कर इन्हें खुश करने का प्रयास किया जाता है।
हर साल शारदीय नवरात्र भारत के अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग तरीकों से मनाया जाता है लेकिन हर बार कुछ न कुछ खास शारदीय नवरात्रों में जरुर होता है तो चलिए इस बार शारदीय नवरात्र में क्या खास है इस लेख के माध्यम से जानते हैं।
17 अक्टूबर से शारदीय नवरात्र की शुरुआत होने जा रही है, हालांकि इस साल नवरात्र का महीना इस बार काफी देर से है क्योंकि मलमास का महीना इस साल शामिल रहा है। मलमास का महीना अशुभ माना जाता है जहां सभी शुभ काम वर्जित होते हैं। वहीं शारदीय नवरात्र के बाद सभी शुभ काम शुरू या सम्पन्न कराए जा सकते हैं।
मां के नौ रुपों की पूजा का विधान
कथा के अनुसार महिषासुर के वध में मां दुर्गा व इनके नौ रुपों के साथ महिषासुर का युद्ध चला जहां दसवें दिन मां ने महिषासुर पर विजय प्राप्त की तभी से मां दुर्गा व इनके नौ रुपों की भली-भांति उपासना की जाती है। महिषासुर का विनाश कर मां ने तीनों लोकों की रक्षा की क्योंकि ये राक्षस सारे लोकों में आंतक मचा रहा था। ऐसे में मां की आराधना करते हुए उनसे संसार की रक्षा के लिए प्रार्थना की जाती है।
मां का प्रथम स्वरुप शैलपुत्री की पूजा
नवरात्र का पहला दिन मां शैलपुत्री का माना जाता है, जिनकी पूजा अर्चना की जाती है। मां के इस रुप को प्रसन्न करने के लिए घी के दीपक जलाने की परम्परा बनाई गई है। मां के पहले रूप की पूजा आराधना के दौरान पीले वस्त्र पहनना शुभ माना जाता है।
मां का दूसरा स्वरुप ब्रह्मचारिणी
मां ब्रह्मचारिणी की पूजा करते हुए उन्हें प्रसन्न करने के लिए मीठा, मिश्री चढ़ाने की मान्यता है। मां ब्रह्मचारिणी की विशेष कृपा के लिए कोई भी मीठी सामग्री चढ़ाने का प्रयास करना चाहिए। हरे रंग के वस्त्रों को धारण कर मां ब्रह्मचारिणी की आराधना करनी चाहिए। इससे मां को प्रसन्न किया जा सकता है।
मां के तीसरे स्वरुप चंद्रघंटा की पूजा
मां चंद्रघंटा के तीसरे रुप को शुध्द दूध से बने खाद्य पदार्थ चढ़ाए जाते हैं जैसे खोया, खीर, साबूदाना आदि। जिससे मां प्रसन्न होती हैं। मां चंद्रघंटा की पूजा करने के लिए मां की आराधना के दौरान प्रयास करें कि भुरे रंग के वस्त्र धारण किए हुए हों।
मां का चौथा स्वरुप कुष्मांडा
आपने मालपुआ का नाम तो सुऩा होगा क्योंकि मां के चौथे रुप कुष्मांडा को मालपुआ पसंद है इसीलिए इन्हें प्रसन्न करने के लिए ऐसा करना चाहिए। मां को संतरा रंग बेहद प्यारा होता है इसीलिए मां कुष्मांडा की अर्चना के दौरान मालपुआ चढ़ाना चाहिए।
पांचवें स्वरुप स्कन्दमाता की पूजा
केले का फल तो वैसे सभी पूजा पाठ में जरूर शामिल रहता है लेकिन स्कन्दमाता की पूजा अर्चना के दौरान केले का फल अति आवश्यक रुप से चढ़ाना चाहिए। सफेद रंग माता स्कन्द माता को बहुत भाता है, इसीलिए सफेद पोशाक धारण कर सभी भक्तजनों को इनकी पूजा करनी चाहिए।
छठा स्वरुप मां कात्यायनी
मां कात्यायनी को लाल रंग से बेहद लगाव होता है इसीलिए इनकी आराधना करते समय लाल रंग के वस्त्र धारण करने के प्रयास करें। मां कात्यायनी की पूजा करने के लिए शहद जरुर चढ़ाना चाहिए, माना जाता है कि इससे मां कात्यायनी प्रसन्न होती हैं।
सातवां स्वरुप मां कालरात्रि
माता कालरात्रि को खुश करने के लिए नीले रंग के वस्त्र धारण करते हुए गुड़ जैसे प्रसाद चढ़ाने चाहिए जिससे मां प्रसन्न होती हैं।
मां के आठवें स्वरुप महागौरी की पूजा
इसी दिन कन्या भोज सम्पन्न कराए जाने की परम्परा है, यानि कन्या भोज व महागौरी की पूजा-अर्चना के दौरान नारियल चढ़ाना चाहिए या तो नारियल से बने कोई अन्य खाद्य पदार्थ चढ़ाना चाहिए। इस दिन गुलाबी रंग के कपड़े पहनने चाहिए।
माता के नौवां स्वरुप सिद्धिदात्री की पूजा
मां के नौवे रूप को खुश करने के लिए तिल का प्रसाद चढ़ाना चाहिए वहीं पूजा अर्चना के दौरान बैंगनी रंग के कपड़ों को पहनना चाहिए। साथ ही कन्या पूजन कर व्रत खोलना चाहिए।