आध्यत्म के सहारे अपने कारोवार को चलाने वाले भी बड़े फूहड़पन की पराकाष्ठा तक चले जाते हैं! इसका समाज, विशेषकर नौजवान पीढ़ी पर क्या प्रभाव पड़ेगा? उस इष्टदेव की क्या छवि बनेगी? उन्हें इस बात का अहसास भी नहीं ? या फिर उससे उन्हें कोई मतलव नहीं! क्यूँकि माल बेचना और व्यापार चलाना एक मात्र उद्देश्य है चाहे उसके लिए उन्हें कितना भी फूहड़ प्रदर्शन देवो का करना पड़े? एक मामले में बाथरूम टाइल पर फोटो लगाकर आस्था से खिलवाड़ करना तुक्ष मानसिकता को दर्शाता है। हमें चिंतन की आवश्यकता है आखिर श्रीकृष्ण के चरित्र से खिलवाड़ क्यों?
कृष्ण को योगीश्वर की पदवी क्यों मिली? इसलिए नहीं कि वो रास लीला कराते थे?
बल्कि सच तो ये है-
1- गोपिकाओं से लड़ाकू टीम तैयार कर कंस अन्य तात्कालिक राजाओं का टैक्स बंद कराकर कृष्ण ने एक आंदोलन खड़ा किया!
2- उनके बच्चों के दूध, दही को बचाने के लिए ग्वालों को एक जुट किया, उनकी सेना बनाई, गोप सेना!
3- जो ग्वाल फिर भी नहीं माने, राजाओं की ग़ुलामी में दूध मक्खन ले जाते थे उनके लिए सामाजिक मटकी फोड़ आंदोलन चलाया।
4- जो नारी अपने सुहाग नहीं बचा सकीं, उन्हें पति के रूप में अपना नाम दिया, नाकि पटरानी बनाई! यह महिलाओं के सम्मान की लड़ाई का हिस्सा था!
कृष्ण महायोगी थे, समाजवादी आंदोलन के जनक एवं नायक थे। न ऐसा चरित्र कभी पैदा हुआ न होगा। अतः कृष्ण के नाम पर महिलाओं के साथ फूहड़ फ़ोटो प्रदर्शनी बंद होनी चाहिए। जनहित में ऐसे फूहड़ चित्रों पर पाबंदी लगनी चाहिए।
(ये लेखक के निजी विचार हैं)