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सूर्य ग्रहण: उत्तर भारत के कई हिस्सों में कंगन के आकार का दिखा सूर्य

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नईदिल्ली। सुबह 9.16 बजे से सूर्य ग्रहण का असर शुरू हो गया। भारत में यह सबसे पहले सुबह 10.01 बजे मुंबई में दिखा। दिल्ली, राजस्थान, जम्मू और गुजरात में ही नहीं बल्कि भारत के लगभग सभी जगह से ग्रहण का असर देखा गया है। ये साल का पहला और आखिरी सूर्य ग्रहण है। इसके बाद अगला सूर्य ग्रहण 25 अक्टूबर 2022 को भारत में दिखेगा। उत्तर भारत के कुछ हिस्सों में चंद्रमा ने सूर्य को कहीं हद तक ढक दिया, जिससे ये कंगन के जैसी आकृति का दिखाई दिया। ज्योतिष ग्रंथों में इसे कंकणाकृति सूर्य ग्रहण कहा गया है। ये आकृति ज्यादातर स्थानों पर 11.50 से 12.10 के बीच दिखाई दी।

तीन तरह के सूर्य ग्रहण

पूर्ण सूर्य ग्रहण: जब चंद्रमा पृथ्वी के बहुत करीब रहते हुए सूर्य और पृथ्वी के बीच में आ जाता है। इस दौरान चंद्रमा पूरी तरह से पृथ्वी को अपनी छाया में ले लेता है। इससे सूर्य की रोशनी पृथ्वी पर नहीं पहुंच पाती है। इस खगोलीय घटना को पूर्ण सूर्य ग्रहण कहा जाता है।

वलयाकार सूर्य ग्रहण: इस स्थिति में चन्द्रमा पृथ्वी और सूर्य के बीच में तो आता है लेकिन दोनों के बीच काफी दूरी होती है। चंद्रमा पूरी तरह से सूर्य को नहीं ढंक पाता है और सूर्य की बाहरी परत ही चमकती है। जो कि वलय यानी रिंग के रूप में दिखाई देती है। इसे ही वलयाकार सूर्य ग्रहण कहते हैं।

खंडग्रास सूर्य ग्रहण: इस खगोलीय घटना में चंद्रमा, सूर्य और पृथ्वी के बीच में इस तरह आता है कि सूर्य का थोड़ा सा ही हिस्सा अपनी छाया से ढंक पाता है। इस दौरान पृथ्वी से सूर्य का ज्यादातर हिस्सा दिखाई देता है। इसे खंडग्रास सूर्य ग्रहण कहते हैं।

ज्योतिष और खगोल विज्ञान: लगातार 3 ग्रहण होना आम बात
जयपुर की वेधशाला के पूर्व अधीक्षक ओ.पी शर्मा का कहना है कि खगोल विज्ञान के अनुसार, लगातार 3 ग्रहण होना आम बात है। ये सामान्य खगोलीय घटना ही है। खगोल गणना के अनुसार 18 साल में करीब 70 ग्रहण हो सकते हैं। इस तरह एक साल में दोनों तरह के 7 ग्रहण होना संभावित है। लेकिन, 4 से ज्यादा ग्रहण बहुत ही कम देखने को मिलते हैं। इस तरह लगातार तीन ग्रहण की स्थिति हर 10 साल में करीब 2 या 3 बार बन जाती है।

सूर्यग्रहण का वैज्ञानिक पहलू
विज्ञान के अनुसार, सूर्यग्रहण एक खगोलीय घटना है। जब चंद्रमा घूमते-घूमते सूर्य और पृथ्वी के बीच में आ जाता है तो सूर्य की चमकती रोशनी चंद्रमा के कारण दिखाई नहीं पड़ती। चंद्रमा के कारण सूर्य पूरी तरह या आंशिक रूप से ढंकने लगता है और इसी को सूर्यग्रहण कहा जाता है।

चार हजार साल पहले दिखा था पहला सूर्य ग्रहण
चाइनीज ग्रंथ शु-चिंग के अनुसार पहला सूर्य ग्रहण आज से करीब चार हजार साल पहले यानी 22 अक्टूबर 2134 ईसा पूर्व दिखा था। इस ग्रंथ के अनुसार आकाशीय ड्रेगन ने सूर्य को निगल लिया था। चाइनीज भाषा में ग्रहण शब्द को शी कहा जाता है, जिसका अर्थ है निगलना। चीन के ग्रामीण इलाकों में आज भी सूर्य ग्रहण के समय तेज आवाज में ड्रम बजाने की परंपरा है। ऐसा माना जाता है कि इस तेज आवाज से सूर्य को निगलने वाला ड्रेगन डर के भाग जाता है। प्राचीन काम में चीन में सूर्य और चंद्र ग्रहण को दिव्य संकेत माना जाता था।

वेदों में सूर्यग्रहण
महर्षि अत्रि ग्रहण के ज्ञान को देने वाले पहले आचार्य माने गए हैं। ऋग्वेद में पांचवें मंडल के 40वें सूक्त के मन्त्रों में इस बात की जानकारी मिलती है कि जब असुर राहु पृथ्वी और सूर्य के बीच में आ गया था, तो पृथ्वी पर अंधकार छा गया था। तब महर्षि अत्रि ने मंत्रों की शक्ति से उस अंधकार को दूर किया था। ग्रहण के समय जो प्रथाएं हैं उनका उल्लेख अथर्ववेद में मिलता है। इनके साथ ही सामवेद के पंचविंश ब्राह्मण में भी सूर्य ग्रहण का महत्व बताया गया है।

पुराणों में सूर्यग्रहण
मत्स्य पुराण अनुसार, सूर्य ग्रहण का संबंध राहु-केतु और उनके द्वारा अमृत पाने की कथा से है। इसके अलावा स्कंदपुराण में भगवान शिव ने देवी पार्वती को समझाया कि सूर्यग्रहण कैसे होता है। इसके साथ ही विष्णु पुराण के पहले अंश के नौवें अध्याय में समुद्र मंथन की कथा में इसका उल्लेख मिलता है।

महाभारत में सूर्यग्रहण
महाभारत युद्ध की लड़ाई 18 दिन चली थी। इस दौरान 3 ग्रहण होने से महाभारत का भीषण युद्ध हुआ। महाभारत में अर्जुन ने प्रतिज्ञा ली थी कि वो सूर्यास्त के पहले जयद्रथ को मार देंगे वरना खुद अग्निसमाधि ले लेंगे। कौरवों ने जयद्रथ को बचाने के लिए सुरक्षा घेरा बना लिया था, लेकिन उस दिन सूर्यग्रहण होने से सभी जगह अंधेरा हो गया। तभी जयद्रथ अर्जुन के सामने यह कहते हुए आ गया कि सूर्यास्त हो गया है अब अग्निसमाधि लो। इसी बीच ग्रहण खत्म हो गया और सूर्य चमकने लगा। तभी अर्जुन ने जयद्रथ का वध कर दिया।

रामायण में सूर्यग्रहण
मूल वाल्मीकि रामायण के अरण्यकांड के तेइसवें सर्ग के शुरुआती 15 श्लोकों में सूर्य ग्रहण के बारे में जानकारी दी गई है। भगवान राम और खर के बीच हुए युद्ध में इस बारे में बताया गया है। राहु को सूर्य ग्रहण का कारण बताया है।

सूर्य ग्रहण का ज्योतिषीय महत्व
बृहत्संहिता ग्रंथ में वराहमिहिर ने लिखा है कि सूर्यग्रहण में चन्द्रमा, सूर्य के बिंब में प्रविष्ट हो जाता है। यानि, सूर्य और पृथ्वी के बीच में चन्द्रमा आ जाता है। वहीं, चन्द्रग्रहण के दौरान चन्द्र पृथ्वी की छाया में आ जाता है। ज्योतिषाचार्य पं. मिश्रा के अनुसार पूर्ण ग्रहण होने से प्राकृतिक आपदाएं और सत्ता परिवर्तन देखने को मिलता है। ग्रहण से देश में रहने वाले लोगों को नुकसान होता है। बीमारियां बढ़ती हैं। देश की आर्थिक स्थिति में उतार-चढ़ाव आते हैं।

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