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कोरोना वैक्‍सीन का प्रॉडक्‍शन और डिस्‍ट्रीब्‍यूशन भी करेगा भारत

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नई दिल्ली। वैसे तो कई भारतीय कंपनियां कोरोना वैक्‍सीन बनाने में लगी हुई हैं अगर कोई भारतीय कंपनी वैक्‍सीन बनाने में कामयाब नहीं होती, तब भी भारत का रोल बेहद अहम होगा। क्‍योंकि मैनुफैक्‍चरिंग और डिस्‍ट्रीब्‍यूशन में भारत के फार्मा सेक्‍टर का कोई सानी नहीं है।
यूं तो कोरोना की विश्व भर में 125 से ज्‍यादा वैक्‍सीन बन रही हैं। इनमें से अधिकतर इंटरनेशनल वैक्‍सीन डेवलपमेंट प्रोग्राम्‍स में भारत की मौजूदगी है। यानी वैक्‍सीन बनाने में ग्‍लोबल लेवल पर भारत की अहमियत साफ है। भारत में भी तीन-चार वैक्‍सीन कैंडिडेट्स क्लिनिकल ट्रायल से गुजर रही हैं। अगर इनमें से कोई सफल नहीं भी होती तो भी भारत को वैक्‍सीन मिले, इसकी कोशिशें तेज कर दी गई हैं। सरकार ने वैक्‍सीन का इंतजाम करने का जिम्‍मा इंडो-पैसिफिक ग्रुप को सौंपा है। विदेश मंत्री एस जयशंकर, विदेश सचिव हर्ष हर्ष श्रृंगला के अलावा प्रधानमंत्री के प्रिंसिपल साइंटिफिक एडवाइजर डॉ के. विजयराघवन और डिपार्टमेंट ऑफ बायोटेक्‍नोलॉजी मिलकर इस दिशा में काम कर रहे हैं।

कोई बनाए वैक्‍सीन भारत नहीं होगा इग्‍नोर

एडवाइजर डॉ के. विजयराघवन ने कहा कि अगर कोई भारतीय वैक्‍सीन नहीं बन पाती तब भी डिस्ट्रीब्‍यूशन में भारत की आवाज होगी क्‍योंकि दूसरों तक वैक्‍सीन पहुंचाने में भारत का अहम रोल होगा। उन्‍होंने कहा कि भारत में बल्‍क वैक्‍सीन मैनुफैक्‍चरिंग का साइज और क्षमता बेहद ज्‍यादा है और दुनिया में मशहूर है। बड़े मल्‍टीनेशनल्‍स के अलावा ब्राजील, चीन, इंडोनेशिया और भारत के पास बहुत क्षमता है। तो वैक्‍सीन कोई भी बनाए, भारत इग्‍नोर नहीं किया जाएगा।

वैक्‍सीन का प्रॉडक्‍शन और डिस्‍ट्रीब्‍यूशन भी करेगा भारत
विदेश सचिव हर्ष श्रृंगला लगातार अपने अमेरिकी समकक्ष स्‍टीव बिजन के संपर्क में हैं। इसके अलावा वह जापान, ऑस्‍ट्रेलिया और साउथ कोरिया के अधिकारियों से भी संपर्क में हैं। दूसरी तरफ, विदेश मंत्री ने अमेरिका, इजरायल, क्‍वाड देशों, ब्राजील और साउथ कोरिया से तालमेल बढ़ाया है। अधिकारियों के मुताबिक, भारत न सिर्फ वैक्‍सीन बनाने बल्कि प्रॉडक्‍शन और डिस्‍ट्रीब्‍यूशन पर भी काम करेगा।

कुछ महीनों में पता चलेगा, कौन सी वैक्‍सीन असरदार
पीएम के प्रिंसिपल साइंटिफिक एडवाइजर विजयराघवन ने कहा, “दुनियाभर में 125 से ज्‍यादा वैक्‍सीन बन रही हैं… इनमें से 10 फर्स्‍ट स्‍टेज में हैं, 8 फेज 2 (एनिमल और लिमिटेड ह्यूमन ट्रायल) और दो फेज 3 (बड़े पैमाने पर ह्यूमन ट्रायल) में हैं। हमें कुछ महीनों में फेज 3 ट्रायल्‍स के नतीजे पता चल जाएंगे।”

वैक्‍सीन डेवलपमेंट का स्‍टेटस
ऑक्‍सफर्ड यूनिवर्सिटी की वैक्‍सीन दुनिया में सबसे ऐडवास्‍ड स्‍टेज में हैं। वहां पर भारत की अच्‍छी-खासी प्रजेंस हैं। विजयराघवन के मुताबिक, ‘अमेरिका में वार्प स्‍पीड नाम का एक वैक्‍सीन प्रोग्राम है जो फेज 1 और 2 में हैं। एक चीनी वैक्‍सीन भी फेज 3 में जाने वाली है। ऑस्‍ट्रेलिया की एक वैक्‍सीन भी तीसरे स्‍टेज में पहुंच रही है।’

चीनी वैक्‍सीन प्रोग्राम में भारत शामिल नहीं
दुनिया में कोरोना की वैक्‍सीन बनाने के लिए इंटरनेशनल लेवल पर चल रहे अधिकतर प्रोग्राम्‍स में भारत शरीक है। मगर चीन जहां से कोरोना निकलकर पूरी दुनिया में फैला, वहां के दो वैक्‍सीन प्रोग्राम का हिस्‍सा भारत नहीं है।

दुनिया के सामने सबसे बड़ी लॉजिस्टिकल चुनौती, दूर करेगा भारत
कोविड वैक्‍सीन बन जाने के बाद उसकी कई बिलियन डोज तैयार करना होगी। फिर उसके बाद सबसे बड़ी चुनौती उन्‍हें लोगों तक पहुंचाना होगी। ब्रिटेन की बर्मिंघम यूनिवर्सिटी में इंजीनियरिंग एंड टेक्‍नोलॉजी एक्‍सपर्ट टोबी पीटर्स ने रॉयटर्स से कहा कि ‘यह दुनिया के सामने आई सबसे बड़ी लॉजिस्टिकल चुनौती है।’

इतिहास में पहली बार हो रहा ऐसा
पूरी दुनिया ने ऐसा दौर कभी नहीं देखा जब एक साथ इतनी सारी वैक्‍सीन तैयार की जा रही हों। भारत का सीरम इंस्‍टीट्यूट ऑफ इंडिया दुनिया का सबसे बड़ा वैक्‍सीन मैनुफैक्‍चरर है। ऐसे में वैक्‍सीन कहीं भी बने, उसका एक बड़ा हिस्‍सा भारत में प्रोड्यूस होगा।

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