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मिलिए आधुनिकता से कृषि की दिशा और दशा बदल रहे शिक्षित युवा से

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आगरा। भारत एक कृषि प्रधान देश है। समय-समय पर कृषि में परिवर्तन और प्रयोग देखे जा सकते हैं। जिस प्रकार टैक्नोलॅजी का विस्तार हुआ है, ठीक उसी प्रकार पारम्परिक कृषि की दिशा में भी बदलाव देखे जा रहे हैं। एक समय था जब युवा वर्ग नौकरी पाने को प्रयासरत था, लेकिन वर्तमान डिजिटलाइजेशन के युग में संचार क्रांति के साथ खेती में भी आधुनिक उपकरणों ने खेती की दिशा बदली है। अब किसान अपनी खेती का मूल्य खुद निर्धारित करते हैं। ऐसे ही उच्च शिक्षा प्राप्त गांव पनवारी के शिशुपाल जिनके यहां परम्परागत खेती की जाती है। स्नातक की पढ़ाई करने के बाद शिशुपाल ने भी कॅरियर के रूप में खेती का चुनाव किया है।

आगरा परिक्षेत्र की बात करें तो यहां आलू की खेती बहुतायत में की जाती है। गेहूं, बाजरा और अन्य फसलों का भी प्रचलन है। शिशुपाल ने पहले पारम्परिक खेती का आंकलन किया उसके बाद इसमें व्यापक सुधार और विस्तार पर अपना फोकस किया। उसके बाद ज्यादा मुनाफा कैसे कमाया जाय और लीक से हटकर खेती की जाय इस दिशा में उन्होंने ढाई बीघा खेती में केसर की फसल शुरू की। केसर का बाजार मूल्य 40 हजार रुपए किलो है। पहली बार उनके एक बीघा खेत में 25 किलो केसर का उत्पादन हुआ। खेत से केसर की बिक्री और तमाम कम्पनियों से सम्पर्क होने के बाद आसपास के क्षेत्र में भी ये चर्चा का विषय बन गया।

एक प्रयोग सफल होता देख शिशुपाल ने अश्वगंधा की खेती की ओर अपना रुख किया। बात अगर अश्वगंधा के बाजार मूल्य की करें तो उसको 25 हजार रुपए कुंतल के हिसाब से खरीदा जाता है, जो कि एक बीघा में तकरीबन 20 कुंतल अश्वगंधा का उत्पादन किया जा सकता है। इसके साथ-साथ शिशुपाल आर्गेनिक गेेहूं का भी उत्पादन किया है। आप मान सकते हैं कि जिस प्रकार शिशुपाल ने पारम्परिक खेती के स्वरूप में अपनी शिक्षा का समावेश करते हुए बदलाव किए और अपनी फसल का मूल्य खुद तय किया, इस बदलाव ने तमाम किसानों को भी इस दिशा में कार्य करने के लिए प्रेरित किया, खासकर पढ़े-लिखे युवा वर्ग को।

अब आज का युवा पढ़-लिखकर अपना खुद का व्यवसाय करने पर ज्यादा भरोसा करने लगा है। शिशुपाल इस बात का उदाहरण है। अकेले शिशुपाल ही नहीं ऐसे तमाम युवा हैं जो पारम्परिक खेती की दिशा और दशा बदलकर आधुनिक कृषि के माध्यम से तमाम प्रयोग कर रहे हैं और सफलता प्राप्त कर अच्छी खासी कमाई भी कर रहे हैं। आत्मनिर्भर भारत की परिकल्पना को साकार करते ये युवा निश्चित रूप से भारतीय कृषि की दिशा बदल देंगे और अपनी फसल का खुद बाजिव दाम स्वयं तय करेंगे।

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