-पूरन डावर, सामाजिक चिंतक-विश्लेषक
मोदी सरकार पिछले 10 वर्ष में अनेक बिल लायी है मुख्यतः 3 तलाक़, धारा 370, सीएए ने काफ़ी सुर्ख़ियाँ बटोरी पक्ष और विपक्ष दोनों द्वारा ज़ोरदार समर्थन और ज़ोरदार विरोध हुआ, इन बिलों का जनता का सीधे संबंध कम, संवेदना, भूल सुधार, राष्ट्रीय अस्मिता और धार्मिक सुधार अधिक है। इन संवेदनशील मुद्दों पर जम कर राजनीति हुयी है और सत्ता पक्ष ने सुर्ख़ियाँ भी बटोरीं, सरकार की एक सक्षम सरकार की साख भी बनी।
लेकिन आवश्यक था जनता को सीधे प्रभावित करने वाले बिल जो आम जन के जीवन में बदलाव ला सकें। जनता से सीधे सरोकार के दो महत्वपूर्ण बिल आये और देश की निकृष्ट राजनीति की भेंट चढ़ गये।
पहला महत्वपूर्ण था किसान क़ानून जो भारतीय फार्मिंग की और किसानों की दिशा और दशा दोनों बदल सकता था। किसानों को क़र्ज़ से मुक्त कर सकता था किसानों को रिस्क फ्री बना सकता था किसानों की मात्र बरसात पर निर्भरता को कम कर सकता था किसानों की रात दिन के कठोर परिश्रम राहत दे सकता था आधुनिक उपकरणों से समय और परिश्रम दोनों में राहत मिल सकती थी और सबसे ऊपर किसानों को एमईएसपी पर बेचने की मजबूरी से क़तई बचा सकता था। ये बिल बुरी तरह राजनीति का शिकार हुआ यदि यह हो जाता तो किसानों के स्थिति सुधार जाती और अगर सुधार जाती तो वामपंथी राजनीति क्या करती उनकी तो राजनीति ही ग़रीबी है उनका हथियार ग़रीबी है। ऊपर से साथ मिला पंजाब के ऐसे किसानों का और आढ़तियों का जो एमएसपी क़ानून का दोहन कर रहे थे मोटी आढ़त वसूल रहे थे और मौक़ा मिल गया खालिस्तानी समर्थक सिखों का जो कनाडा, इंग्लैंड, अमेरिका बैठ कर खालिस्तान के नाम पर देश तोड़ने की राजनीति कर रहे थे और जिनके मोहरे केजरीवाल जैसे महत्वाकांक्षी अपरिपक्व राजनीतिज्ञ जो समझते है देश की ग़रीब जनता को लंबे समय तक बेवकूफ बनाया जा सकता है। टिकैत जैसे लालची नेताओं को ख़रीदा गया, टिकैत पहला किसान नेता था जिसने इन तीन किसान क़ानूनों की जमकर तारीफ़ की थी और कहा था हमारी 25 साल पुरानी माँग मान ली गई… फिर खालिस्तानी समर्थकों के पैसे पर बिके और टीवी पर राजनीति चमकाने की ललक, पंजाब की संवेदनशील स्थिति को देखते हुए पहली बार मोदी सरकार को झुकना पड़ा और किसान क़ानून वापस लेने पड़े। पंजाब के अतिरिक्त पूरे देश में उत्तर, दक्षिण, पूरब, पश्चिम कहीं क़ानूनों का विरोध नहीं था आंदोलन नाम की चिड़िया नहीं थी पूरे देश में आना जाना था, न शांतिपूर्ण आंदोलन न हिंसक केवल पंजाब-हरियाणा-दिल्ली बॉर्डर पर प्रायोजित धींगा-मुश्ती, मुख्य किरदार केजरीवाल और पंजाब की ‘आप’ सरकार।
देश में दूसरा सर्वाधिक महत्वपूर्ण क़ानून या कदम जो आज के युवाओं से सीधा जुड़ा है अग्निवीर। 5 साल मुफ़्त मिलिट्री ट्रेनिंग ही नहीं बल्कि ट्रेनिंग पीरियड में लगभग 50 हज़ार रुपये महीना स्टाइपेंड के रूप में… 25% का सेना में समायोजन, शेष को पूरी तरह ट्रेंड करके 12 -23 लाख की राशि देकर देश को ट्रेनेड वर्क फ़ोर्स देना।
सोचिए अग्निवीर से महत्वपूर्ण कोई योजना क्या संभव है क्या देश में कोई ऐसा इंस्टीट्यूट है किसी भी क्षेत्र में जो लाखों रुपये की फ़ीस लेकर भी शत प्रतिशत की नौकरी गारण्टी देता हो। ऐसे ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट जो सेना के लिए मात्र तैयारी कराते हैं लाखों रुपये की फ़ीस लेकर भी 5% सिलेक्शन की भी गारण्टी करते हैं।
5 साल की अनुशासित ट्रेनिंग देश के युवाओं की दिशा और दशा दोनों बदल सकती है जो सेना में समायोजित नहीं हो पाये उनके लिए सैकड़ों द्वार पुलिस, सिक्योरिटी, स्टार्ट्सअप, अनुशासित और अच्छी फ़िज़िकल फ़िटनेस उनका जीवन पूरी तरह बदल सकती है।
पूरा प्रयास है इस योजना को भी राजनीति की भेंट चढ़ाने का क्योंकि ऐसे महत्वपूर्ण कार्यक्रम सफल होते हैं तो विपक्ष की ज़मीन खिसकती है।