गंगा की सफाई, उसे प्रदूषण मुक्त करने एवं नदियों के माध्यम से आर्थिक विकास, धार्मिक आस्था एवं पर्यटन की संभावनाओं को तलाशने की दृष्टि से वर्तमान उत्तरप्रदेश सरकार एवं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के तमाम प्रयासों के बावजूद गंगा आज भी मैली क्यों है? यह सवाल सरकार के नदियों को स्वच्छ बनाने के लिए लंबे समय से चल रही तमाम योजनाओं और कार्यक्रमों की पोल खोलते हैं। सरकार की ओर से घोषणाएं करने में शायद ही कभी कमी की जाती है, मगर उन पर अमल को लेकर कहां चूक या लापरवाही बरती जा रही है, इस पर गौर करना कभी जरूरी नहीं समझा जाता। सरकार यह समझे कि उसे केवल गंगा को साफ ही नहीं करना, बल्कि उसकी निर्मलता एवं अविरलता के लिये एक अनूठा उदाहरण भी पेश करना है। ऐसा करके ही देश की अन्य नदियों को भी प्रदूषणमुक्त करने की दिशा में सकारात्मक वातावरण निर्मित किया जा सकेगा।
गौरतलब है कि गंगा नदी पर अधिकार संपन्न कार्यबल यानी ईटीएफ की पिछले महीने हुई ग्यारहवीं बैठक में यह जानकारी भी सामने आई कि उत्तरकाशी में सुरंग के निर्माण के कारण इसके मलबे को गंगा नदी के किनारे डाल दिया गया। सरकार की अन्य विकास योजनाएं ही गंगा का प्रदूषित करने का जब जरिया बन रही है तो इसी गंगा नदी एवं अन्य नदियों में उद्योगों से विभिन्न रसायन, चीनी मिल, भट्टी, ग्लिस्रिन, टिन, पेंट, साबुन, कताई, रेयान, सिल्क, सूत, प्लास्टिक थेलियां-बोतले आदि जहरीले कचरे बड़ी मात्रा में मिलते हैैं, तो कोई आश्चर्य की बात नहीं है।
गंगा कायाकल्प का दृष्टिकोण ‘अविरल धारा’ (सतत प्रवाह), ‘निर्मल धारा’ (प्रदूषणरहित प्रवाह) को प्राप्त करके और भूगर्भीय और पारिस्थितिक अखंडता को सुनिश्चित करके नदी की अखंडता को बहाल करने की समग्र योजना और रखरखाव के बावजूद गंगा लगातार प्रदूषित हो रही है। जबकि सरकार क्रॉस-सेक्टोरल सहयोग को प्रोत्साहित करने वाली नदी बेसिन रणनीति को लागू करके गंगा नदी के प्रदूषण को समाप्त करने और पुनरोद्धार को सुनिश्चित करने की दिशा में काम कर रही है। यह पानी की गुणवत्ता और पारिस्थितिक रूप से जिम्मेदार विकास को बनाए रखने की दृष्टि से गंगा नदी में न्यूनतम जैविक प्रवाह भी सुनिश्चित करता है।
इन बहुआयामी योजनाओं के बावजूद गंगा स्वच्छता अभियान अब तक कहां पहुंचा है, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि आज भी गंगा जैसी अहम नदी को स्वच्छ बनाने की कोई पहल करनी पड़ रही है। हालत यह है कि अलग-अलग मौके पर लागू दिशा-निर्देशों के बावजूद कम से कम मलबा डालने पर भी रोक नहीं लगाई जा सकी है। प्रदूषित नालों से गन्दगी गंगा में लगातार डाली जा रही है। यह समझना मुश्किल नहीं है कि समस्या शायद योजनाओं या कार्यक्रमों की नहीं होगी, उनके अमल में बरती गई लापरवाही या फिर गड़बड़ियों की वजह से किसी बड़ी और बेहद महत्वपूर्ण पहलकदमी का भी हासिल शून्य हो जा सकता है।
अब एक बार फिर केंद्र सरकार ने गंगा नदी के किनारे मलबा डाले जाने या गांवों का गंदा पानी नदी में गिराने से प्रदूषण का स्तर बढ़ने पर संज्ञान लिया है। इसके तहत सरकार नदी किनारे स्थित चार हजार गांवों से निकलने वाले लगभग चौबीस सौ नाले को चिन्हित करके इनकी ‘जियो टैगिंग’ करेगी। सरकार इनसे ठोस कचरा प्रवाहित होने से रोकने के लिए एक ‘एरेस्टर स्क्रीन’ लगाएगी। यह गंगा नदी में अलग-अलग वजहों से होने वाले प्रदूषण को रोकने के अलावा किया जा रहा उपाय है। अब यह उम्मीद की जा सकती है कि इसके जरिए मानव सभ्यता के लिए एक बेहद जरूरी नदी में फिर से जीवन भर सकेगा। वास्तव में गंगा एक संपूर्ण संस्कृति की वाहक रही है, जिसने विभिन्न साम्राज्यों का उत्थान-पतन देखा, किंतु गंगा का महत्व कम न हुआ। आधुनिक शोधों से यह भी प्रमाणित हो चुका है कि गंगा की तलहटी में ही उसके जल के अद्भुत और चमत्कारी होने के कारण मौजूद है। यद्यपि औद्योगिक विकास ने गंगा की गुणवत्ता को दूषित किया है, किन्तुु उसका महत्व यथावत है। उसका महात्म्य आज भी सर्वोपरि है। गंगा स्वयं में संपूर्ण संस्कृति है, संपूर्ण तीर्थ है, उन्नत एवं समृद्ध जीवन का आधार है, जिसका एक गौरवशाली इतिहास रहा है।
एक ज्वलंत सवाल और होना चाहिए कि गंगा नदी को स्वच्छ बनाने के लिए दशकों से लागू गंगा कार्ययोजना या नमामि गंगे जैसे महत्वाकांक्षी कार्यक्रम और अन्य नीतियों के बावजूद आज भी इतनी बड़ी तादाद में ठोस कचरा या अन्य तरह की गंदगी बहाने वाले नालों पर कैसे रोक नहीं लग सकी? भारत में मुख्य नदी खासतौर से गंगा भारतीय संस्कृति और विरासत से अत्यधिक गहरे रूप में जुड़ी हुई है। मार्च, 2017 में उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ सरकार ने सत्ता में आने के बाद गंगा की स्वच्छता और निर्मलता सुनिश्चित करने के मोदी सरकार के लक्ष्य को आवश्यक गति और दिशा दी। अप्रैल, 2017 में कानपुर व कन्नौज में स्थित चमड़े के कारखानों को समयबद्ध योजना के तहत अन्यत्र स्थानांतरित करने की घोषणा की गई और औद्योगिक कचरे व अपशिष्ट पदार्थों के गंगा में मिलने से रोकने हेतु जलशोधन संयंत्र लगाने की योजना पर कार्य प्रारंभ किया गया।
गंगा किनारे के गांवों में शौचालय निर्माण पर जोर देकर खुले में शौच पर रोक लगाने की दिशा में काम शुरू किया गया। ‘नमामि गंगे’ परियोजना व स्वच्छ गंगा हेतु राष्ट्रीय मिशन के अंतर्गत प्रदेश में गंगा किनारे के 1,604 गांवों में 3,88,340 शौचालयों का निर्माण करवाकर उन्हें खुले में शौच से मुक्त गांव घोषित किया गया और नदी किनारे एक करोड़ 30 लाख पौधों का रोपण किया गया। गंगा को निर्मल बनाने के लिए घाट, मोक्षधाम, बायो डायवर्सिटी आदि से जुड़े 245 प्रोजेक्ट पर तेजी से काम हो रहा है। गंगा की 40 सहायक नदियों में प्रदूषित जल का प्रवेश रोकने के लिए दिल्ली, उत्तर प्रदेश, बिहार में 170 परियोजनाओं पर काम चल है। एक और राहत की खबर जो उम्मीद की किरण बन कर सामने आयी है कि गंगा में विषाक्त कचरा उड़ेलने वाली औद्योगिक इकाइयों में कमी आ रही हैं। सरकार के प्रयासों से गंगा के तटों का सौन्दर्यकरण भी बड़े पैमाने पर किया जा रहा है, जिससे पर्यटन को प्रोत्साहन मिलेगा। मोदी सरकार ने एक सराहनीय पहल करके स्वच्छ गंगा कोष की स्थापना की है, जिसमें स्थानीय नागरिक व भारतीय मूल के विदेशी व्यक्ति और संस्थाएं आर्थिक, तकनीकी व अन्य सहयोग कर सकते हैं। स्वयं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने उन्हें मिली विभिन्न भेंटों व स्मृति चिह्नों की नीलामी से प्राप्त 16 करोड़ 53 लाख रुपये की राशि इसी कोष में दी है।
तमाम योजनाओं एवं प्रयासों के गंगा नदी के जल में ठोस कचरा का स्तर बढ़ गया। इससे जलमल शोधन संयंत्रों में गंदे पानी का शोधन करने में समस्याएं आ रही हैं। हैरानी की बात यह है कि करीब साढ़े तीन दशक से गंगा परियोजना सहित अन्य तमाम कार्यक्रमों जैसे अभियानों के बीच क्या गंगा को प्रदूषित करने वाला यह कोई नया कारक खोजा गया है? अगर नहीं, तो इस समस्या को चिन्हित करने में इतना लंबा वक्त कैसे लग गया? लगभग तीन साल पहले यह खबर आई थी कि सरकार 2022 तक गंगा नदी में गंदे नालों के पानी को गिराने से पूरी तरह रोक देगी और इस मसले पर एक मिशन की तरह काम चल रहा है। लेकिन हकीकत यह है कि इसके एक साल बाद चौबीस से ज्यादा नाले चिन्हित किए गए हैं, जिनकी गंदगी और कचरे से गंगा का जीवन धीरे-धीरे छीज रहा है। यह स्थिति बताती है कि इस नदी के निर्मलीकरण के लिए चलाई जाने वाली योजनाओं की उपलब्धि वास्तव में कितनी है। नीतियों और योजनाओं के बरक्स उन पर अमल की यह तस्वीर राजनीति इच्छाशक्ति एवं प्रशासनिक लापरवाही को ही दर्शाती है। अन्यथा क्या कारण है कि नदियों के प्रदूषण को दूर करने के क्रम में सबसे ज्यादा जोर गंगा को स्वच्छ बनाने पर ही दिया गया, मगर इसका हासिल आज भी संतोषजनक नहीं है।
लेखक प्रसिद्ध पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।