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डिजिटल भारत में सभी शासकीय विभागों के कार्यालयों में डिजिटल अटेंडेंस नियम लागू करना समय की मांग

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  • प्रशासन की सख़्त नीतियों से शिक्षा की गुणवत्ता, प्रशासनिक कार्यों की जवाबदेही में तीव्र सुधार को रेखांकित करना ज़रूरी

गोंदिया। वैश्विक स्तरपर दुनियां के हर देश की अभिलाषा रहती है कि वह विकसित राष्ट्र बने,उस देश के हर नागरिक की तमन्ना रहती है कि उनका भी जीवन स्तर विकसित देशों के नागरिकों की तरह हो, तो हमें भी इसके लिए त्याग, कर्तव्यों की पराकाष्ठा जवाबदेही, जिम्मेदारी के गुणों को अपने आप में समाहित करना होगा। अपने कार्यों के परफॉर्मेंस उच्च स्तर पर देने का मन बनाना होगा, ताकि राष्ट्र विकास की चैनल में हम अहम भूमिका निभा सके। इसी भूमिका को साकार करने के लिए माननीय पीएम ने भारत को पूर्ण डिजिटल इंडिया का आकार देने की ठान ली है और हम देखते हैं कि आज लाखों करोड़ रुपये डीबीटी माध्यम से ट्रांसफर होकर सीधे लाभार्थियों के अकाउंट में पहुंच रहे हैं। इस तरह आधार, पैन, राशन कार्ड को डिजिटल से जोड़ा गया है अतिबहुत तेजी से भ्रष्टाचार की जड़ें कटती जा रही है। परंतु अब समय आ गया है कि हमारे वर्किंग परफॉर्मेंस को भी हम डिजिटल गतिविधियों से जोड़ें, क्योंकि हम अपने-अपने क्षेत्र में देखते हैं कि विभिन्न विभागों की शासकीय वर्किंग ऑफिसों, स्कूलों, पुलिस विभाग सहित करीब-करीब सभी कार्यालय में हमें अनेक बार संबंधित अधिकारी, बाबू, कर्मचारी नदारत मिलते हैं। मिली भगत घुट्टी के चलते फलां दौरे पर, साहब के केबिन में या फिर राउंड पर, मीटिंग पर साहब गए हैं ऐसी बोलचाल की भाषा हमें सुनाई देती है।

स्कूलों में भी कई बार देखा जाता है कि टीचर्स नदारत रहते हैं। अभी हमने देखा यूपी के संभल जिले में एक स्कूल में आकस्मिक दौरे पर पहुंचे डीएम ने अनेक लापरवाहियों को देखा तो दूसरी ओर एक स्कूल में ड्यूटी पर शराब पीकर आए शिक्षक को पकड़ा तो वह भाग गया। यह सब मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर हमने फोटोस और वीडियो के माध्यम से देखा। यहां बता देना जरूरी है कि मैं भी गोंदिया राइस सिटी की एक एजुकेशन सोसाइटी का हाईकोर्ट द्वारा चैरिटी कमिश्नर के माध्यम से नियुक्त किया गया सदस्य हूं तथा अनेक स्कूलों गांव के स्कूलों, पुलिस कर्मियों पर नजर रखता हूं तो मुझे शिक्षक, पुलिसकर्मी व ऑफिसों के बाबू वर्किंग अवर्स में मार्केट में वर्दी में दुकानों से सामान लेते हुए दिखते हैं, इसका मतलब वे अपने ऑफिस स्कूल या कार्यालय छोड़कर आए हैं, इन्हीं कमियों के चलते मेरा सुझाव है कि पूरे भारत के स्कूलों, शासकीय कार्यालयों पुलिस विभाग सहित सभी ऑफिसों में डिजिटल हाजिरी नियमावली लागू करना जरूरी है। हालांकि यूपी में यह लागू की गई थी, परंतु अचानक 16 जुलाई 2024 को 2 माह के बाद इस निर्णय को वापस ले लिया गया है। चूंकि प्रशासन की सख्त नीतियों से शिक्षा की गुणवत्ता प्रशासनिक कार्यों की जवाबदेही में तीव्र सुधार को रेखांकित करना जरूरी है, इसलिए आज हम मीडिया में उपलब्ध जानकारी के सहयोग से इस आर्टिकल के माध्यम से चर्चा करेंगे, डिजिटल भारत में हर शासकीय विभागों के कार्यालयों में डिजिटल अटेंडेंस नियम लागू करना समय की मांग है।

साथियों बात अगर हम दिनांक 16 जुलाई 2024 को यूपी में शिक्षकों की डिजिटल हाजिरी को 2 माह के लिए स्थगन के आदेश ही करें तो, यूपी के प्राइमरी स्कूलों के शिक्षकों को सरकार ने बड़ी राहत दी है। सरकार ने फैसला किया कि 2 महीनों तक डिजिटल अटेंडेंस को पोस्टपोन किया जाए जिससे शिक्षकों की परेशानी समझी जा सके। सरकार की ओर से यह फैसला मुख्य सचिव ने शिक्षक संघ के साथ मुलाकात के बाद लिया है। मुख्य सचिव ने शिक्षकों को भरोसा देते हुए कहा कि इस मामले में एक कमेटी बनाकर समस्या का समाधान किया जाएगा। उन्होंने कहा कि राज्य की शिक्षा में ट्रांसफॉर्मेशन होनी चाहिए लेकिन सभी को साथ लेकर, इसीलिए इस सिस्टम को 2 माह के लिए स्थगित किया जाता है। यानि कि अब 2 माह तक टीचर पहले की तरह अटेंडेंस देंगे। प्राइमरी और माध्यमिक स्कूलों में अभी तक अटेंडेंस के लिए रजिस्टर होता था। टीचर इस पर सिग्नेचर करते थे। यह रजिस्ट्रर हेड मास्टर या प्राचार्य के पास होता था। इसमें लूप होल यह था कि जब भी टीचर स्कूल आते सिग्नेचर कर देते थे। दूसरा- अगर स्कूल नहीं आते तो दूसरे दिन भी सिग्नेचर कर देते थे। यूपी में अधिकतर डिपार्टमेंट में बायोमेट्रिक अटेंडेंस का नियम लागू है। एमपी में इसी साल से डिग्री कॉलेजों में स्कूल खुलने और बंद होने के समय सेल्फी लेकर सार्थक ग्रुप में डालने का नियम है। इसके पहले एमपी के ही प्राइमरी स्कूलों में बायोमेट्रिक अटेंडेंस की शुरुआत की गई थी, लेकिन विरोध के चलते यह सफल नहीं हो पाया। यूपी सरकार ने हाल ही में पूरे प्रदेश के बेसिक, कंपोज़िट और कस्तूरबा स्कूलों के शिक्षकों के लिए डिजिटल अटेंडेस का नियम लागू किया। इस नियम के तहत शिक्षकों को अपनी हाजिरी ऑनलाइन लगानी होगी।

साथियों बात अगर हम यूपी में डिजिटल हाजरी के नियम व उससे परेशानी की करें तो गौरतलब है कि 8 जुलाई को बेसिक शिक्षा विभाग ने प्राइमरी टीचर्स के लिए डिजिटल अटेंडेंस सिस्टम लागू किया। इसके मुताबिक, टीचर्स को 1 अप्रैल से 30 सितंबर की तारीख तक सुबह 7:45 से 8 बजे तक स्कूल आने पर और दोपहर 2:15 से 2:30 छुट्टी होने पर डिजिटल अटेंडेंस लगानी होगी। वहीं, सर्दियों में 1 अक्टूबर से सरकारी स्कूल का टाइम चेंज हो जाएगा और तब सुबह 8:45 से 9 बजे तक और दोपहर 3:15 से 3:30 तक स्कूल बंद होने पर डिजिटल हाज़िरी लगानी पड़ेगी। जिस टीचर की हाज़िरी इन समयों पर नहीं लगेगी तो उस टीचर एब्सेंट मान लिया जाएगा। इसके बाद मामला का विरोध शुरू हुआ, टीचर्स ने काली पट्टी बांधकर इसका विरोध किया। इसके बाद बेसिक शिक्षा विभाग ने विरोध को देखते हुए सुबह 7:45 से 8 बजे वाले समय में आधे घंटे की छूट दी थी। शिक्षकों ने कहा कि बारिश के मौसम में कई स्कूल डूब जाते हैं, जिससे स्कूल पहुंचने में दिक्कत होती है। वहीं, आगे कहा कि सिर्फ एक समय हाजिरी ली जाए, जाते समय की हाजिरी गलत तरीका है। कई स्कूलों में नेटवर्क की दिक्कत हैं, वहीं, ऐप पर लोकेशन भी गलत बता रहा है।

आगे कहा कि आधे दिन की भी हाजिरी की व्यवस्था हो। साथ ही कई स्कूलों में जाने के लिए सड़क नहीं है, करीब 30 फीसदी स्कूल में जाने की सड़क ठीक है और 60 फीसदी स्कूल में जाने के लिए सरकारी ट्रांसपोर्ट नहीं है। इसकी वजह से कई बार टीचर देर से स्कूल पहुंचते हैं। टीचरों को टैबलेट चलाने की ट्रेनिंग नहीं दी गई है। गांवों में अक्सर नेटवर्क की समस्या रहती है। इससे अटेंडेंस लगाने में परेशानी आएगी। टैबलेट अगर खराब हो गया तो उन्हें अनुपस्थित माना जाएगा। कई शिक्षक दूर से स्कूलों में पढ़ाने के लिए आते हैं। वे ट्रैफिक जाम में फंस जाएंगे तो क्या होगा, शिक्षकों पर टैबलेट में हाजिरी लगवाने का दबाव बना रहेगा, इसलिए जल्दबाजी में स्कूल पहुंचने में हादसे का भी डर रहेगा। टैबलेट से अटेंडेंस में खामियां क्या हैं? कुछ स्कूलों से ये भी शिकायत आई है कि वहां पर नेटवर्क नहीं है। इसकी वजह से अटेंडेंस नहीं लग पा रही है। कुछ जगह टैब भी नहीं काम कर रहे हैं। अटेंडेंस स्कूल के अंदर से लगानी है। ऐप में लोकेशन किसी दूसरी जगह की दिख रही है। शिक्षक नेताओं का कहना है कि सरकार प्राइवेट कंपनी के जरिए ये प्रक्रिया लागू करा रही है। जूनियर स्कूलों में सिम और टैब नहीं दिया गया है। सिम के लिए शिक्षकों को अपनी आईडी देनी पड़ रही है। इससे महिला शिक्षकों की सुरक्षा को भी खतरा है, हर समय उनकी लोकेशन ट्रेस हो रही है। अटेंडेंस में गड़बड़ी होने पर उन्हें परेशान किए जाने का भी डर है।

साथियों बात अगर हम डिजिटल हाजरी के प्रोसीजर को समझने की करें तो डिजिटल अटेंडेंस बायोलॉजिकल मेजरमेंट है। इससे किसी भी व्यक्ति की पहचान की जा सकती है। इसके लिए फिंगर प्रिंट, फेस रिकग्निशन, रेटिना स्कैन किया जाता है। शिक्षकों के मामले में फेस रिकग्निशन के जरिए हाजिरी लगाने का प्रावधान है। आमतौर पर बायोमेट्रिक सिस्टम में हर कर्मचारी के फिंगर प्रिंट, रेटिना और फेस को स्कैन किया जाता है। इसके बाद जब कर्मचारी बायोमेट्रिक सिस्टम पर अपनी उंगली रखता है, तो उसके पिछले रिकॉर्ड से मैच होने के साथ अटेंडेंस लग जाती है। इसके लिए बेसिक शिक्षा विभाग ने सभी सरकारी स्कूलों में दो-दो टैबलेट उपलब्ध करवाए हैं। जिसके जरिए शिक्षकों को स्कूल खुलने के 15 मिनट पहले और बंद होने के 15 मिनट के भीतर प्रेरणा ऐप पर डिजिटल अटेंडेंस लगानी है। हालांकि, विरोध के बाद आधे घंटे का अतिरिक्त समय दिया गया है। उसके लिए शिकायत दर्ज करानी होगी। बेसिक शिक्षा विभाग के प्रमुख सचिव ने साफ किया है कि छूट सिर्फ तब तक के लिए है जब तक प्रेरणा ऐप की तकनीकी खराबी ठीक नहीं कर ली जाती।

साथियों बात अगर हम डिजिटल हाजिरी को सख़्ती से लागू करने की जरूरत की करें तो, पुरानी पद्धति की आदत एक्सपर्ट कहते हैं कि ग्रामीण इलाकों में तैनात कई शिक्षकों को पुरानी पद्धति से काम करने की आदत पड़ गई है। इसमें देर से स्कूल पहुंचना या अनुपस्थित रहना भी शामिल है। ऐसे में विरोध का कारण ये भी हो सकता है। निरीक्षण के दौरान यह निकलकर आता था कि स्कूलों में टीचर आते ही नहीं थे। कई बार 90 प्रतिशत तक टीचर अनुपस्थित मिले हैं। मीडिया के अनुसार कुछ जिलो में तो यह निकलकर आया है कि वहां पर टीचर अफसरों को एक फिक्स अमाउंट दे देते हैं, बाकी वो नोएडा और दूसरे शहरों में रहकर दूसरा काम भी करते हैं। उन्हें आराम से सैलरी मिलती है। अगर सरकार ने डिजिटल हाजिरी तय की है तो इसके पीछे उसने पूरी जानकारी जुटाई है, तब ही लागू किया है,इसमें फर्जीवाड़ा नहीं होगा, इसकी क्या गारंटी? एक्सपर्ट्स का मानना है कि इसमें फर्जीवाड़े की कोई गुंजाइश नहीं है। इसकी वजह यह है कि स्कूलों की मैपिंग की गई है। जिस टैबलेट से अटेंडेंस लगनी है, उसे स्कूल के आसपास होना जरूरी है।

दूसरा- फेस रिकग्निशन के जरिए अटेंडेंस लगनी है। इसमें रेटिना तक स्कैन होगी। इसलिए शिक्षक को स्कूल में उस समय रहना ही होगा। गड़बड़ी यही हो सकती है कि अटेंडेंस लगाकर टीचर चला जाए, लेकिन उसे फिर छुट्‌टी के समय स्कूल आना होगा। यानी कम से कम दो बार उसे स्कूल आना ही होगा। उन शिक्षकों के लिए ज्यादा दिक्कत होगी, जो शहर में रहते हुए कभी-कभार स्कूल जाते हैं। स्कूल पर जाने के बाद ही लगती थी हाजिरी सरकार ने डिजिटल अटेंडेंस की जो नई व्यवस्था लागू की थी उसके लिए किसी बायोमेट्रिक मशीन की जरूरत नहीं थी। डिजिटल हाजिरी लगाने का काम शिक्षकों के मोबाइल से ही होना था, लेकिन दिक्कत ये थी कि वो तभी होगा जब शिक्षक स्कूल में मौजूद रहेगा। मतलब जब तक मोबाइल स्कूल वाले लोकेशन पर नहीं जाता है तब तक हाजिरी नहीं लगेगी। पोर्टल को इस तरह से डिजाइन किया गया था कि स्कूल की लोकेशन लेने के बाद ही शिक्षक उसमें लॉग इन कर पाते। लोकेशन वाले पोर्टल को लेकर शिक्षकों को कान खड़े हो गए। कई शिक्षकों ने पोर्टल के स्लो चलने की शिकायत की तो कुछ ने उसमें गड़बड़ी की बात कही। देखते ही देखते अटेंडेंस का मामला इतना तूल पकड़ लिया कि शिक्षक धरना प्रदर्शन पर उतर आए, मामला लखनऊ तक पहुंच गया। शिक्षकों के एसोसिएशन ने मुख्य सचिव से मुलाकात की, फिर सरकार ने डिजिटल अटेंडेंस के फैसलों पर दो महीने तक के लिए रोक लगा दी। सरकार ने इस मामले पर एक कमेटी बनाने और फिर उसके सुझाव के आधार पर आगे बढ़ने का आश्वासन दिया। यूपी के संभल जिले में हाल ही में एक घटना ने सरकारी स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता और शिक्षकों की जवाबदेही पर सवाल खड़े कर दिए हैं। संभल के जिलाधिकारी ने एक सरकारी शिक्षक को निलंबित कर दिया है, जिससे यह स्पष्ट हो गया है कि डिजिटल हाजिरी का विरोध क्यों किया जा रहा है।

अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि डिजिटल भारत में सभी शासकीय विभागों के कार्यालयों में डिजिटल अटेंडेंस नियम लागू करना समय की मांग शिक्षण क्षेत्र सहित सभी प्रशासनिक विभागों में वर्किंग अवर्स में अनुशासात्मक मानदंडों को सख़्ती से लागू करना समय की मांग। प्रशासन की सख़्त नीतियों से शिक्षा की गुणवत्ता प्रशासनिक कार्यों की जवाबदेही में तीव्र सुधार को रेखांकित करना ज़रूरी है।

लेखक – एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी कर विशेषज्ञ एवं स्तंभकार हैं।