नई दिल्ली। सभी देश वासियों को बधाई। हमारे वैज्ञानिकों को बधाई। चंदा मामा अब दूर के नहीं रहे। ठीक है 16 जुलाई 1969 को नील आर्मस्ट्रॉंग ने अपने पैर चांद पर रखे थे। हमारे राकेश शर्मा 1984 में सोवियत सोयुज से चांद पर पहुंचे। तब भी सारे जहां से अच्छा हिंदुस्तान हमारा था। लेकिन हमारे चंद्रयान -3 की सफलता इन सबसे कहीं ऊपर है। चांद के दक्षिणी ध्रुव पर हम वहां पहुंचे हैं जहां कोई नहीं पहुंच सका। कुछ बेवकूफों ने ये भी सवाल उठाया कि अब मून मिशन का क्या मतलब? उनको कौन बताए ऐसा ही था तो चांद पर दशकों पहले पहुंचने वाला रूस अपने लूना को क्यों भेज रहा था जो क्रैश हो गया। हमारा मकसद अपना पीठ थपथपाना है। दोस्त रूस पर कटाक्ष नहीं। राकेश शर्मा तो उन्हीं के रॉकेट में सवार होकर चंदा मामा से मिलने गए थे। लेकिन अब हम मिथक भी बदलेंगे और कथानक भी। चांदा मामा दूर के पुए पकाए गुड़ के.. वाली कहावत याद होगी। अब ये कहावत तो बदलेगी। अगर दक्षिणी ध्रुव पर हिम का कोई कण भी है तो वो हमारे रोवर प्रज्ञान की नजरों से नहीं बच पाएगा। जीवन की गुंजाइश हो या न हो, धरा पर मानवता के कल्याण के लिए जो भी इस्तेमाल हो सकेगा उसका रास्ता हमारा चंद्रयान प्रशस्त करेगा। इसमें कोई शक नहीं है।
इतिहास के गवाह
जब इसरो ने लाइव स्ट्रीम शुरू किया तो देखा हमारे लैंडर की गति 1600 मीटर प्रति सेकंड थी वो 1200 मीटर प्रति सेकंड हो गई है। लैंडर मॉड्यूल की दूरी चांद से घटती जा रही है। जब ये कमेंट्री चल रही थी तो कमांड सेंटर में मौजूद हमारे वैज्ञानिकों के चेहरे पर खुशी लेकिन इजहार करने का इंतजार। ये भाव साफ नजर आ रहा था। और हम आप जैसे हिंदुस्तानियों की धड़कन बढ़ती जा रही थी। कमांड सेंटर पर मौजूद लोगों में से कुछ तो मानों मंत्रोच्चार कर रहे हों। बुदबुदाते लबों को कंपकंपाती उंगलियों से ढकते हुए वो चेहरे शायद 2019 को याद कर रहे थे जब हम इतिहास बनाने से चूक गए। 800 न्यूटन के चारों इंजन तब सही तरीके से काम कर रहे थे। ये पांच बजकर 54 मिनट का वाकया था। इन्हीं इंजनों के सहारे लैंडर की गति कम होती जा रही थी। ये क्रैश लैंडिंग रोकने के लिए जरूरी होता है। तभी तालियां बजती हैं। दूरी 10 किलोमीटर रह जाती है। और स्पीड एकदम सटीक। लैंडिंग से दस मिनट पहले हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जोहान्सबर्ग से जुड़ते हैं। वो ब्रिक्स समिट में हिस्सा लेने दक्षिण अफ्रीका गए हुए हैं। वो सभी वैज्ञानिकों को नमन करते हैं। आपको याद होगा 2019 का वो क्षण जब क्रैश लैंडिंग के कारण इसरो प्रमुख के सिवन फफक कर रोने लगे और पीएम ने उन्हें गले लगा लिया।
थम गईं सांसें
विक्रम के पैर यानी चारों स्टैंड खुले हुए हैं और वो सिर्फ 100 मीटर प्रति सेकंड की रफ्तार पर आ चुका है। तालियों की गड़गड़ाहट से कमांड सेंटर गूंज उठता है। अब महज एक किलोमीटर का फासला बचा है। पावर डिसेंट की बारी है। हमारा विक्रम अपना पैर सीधा करता है और चांद पर पांव जमाने वाला है। चमकता हुआ विक्रम हमारा सीना चौड़ा कर रहा था। उसकी किरणें चांद की सतह पर तिरंगे की ताकत बयां कर रही थी। उधर पीएम मोदी भी सांस थामे विक्रम को निहार रहे थे। लैंडिंग साइट पर आते आते गति एकदम मंद पड़ जाती है। लैंडर अपना पथ प्रशस्त करता हुआ महज 100 मीटर दूर है और सबसे नाजुक मोड़ पर हमारा चंद्र मिशन। तभी सेंसरों से खबर मिलती है कि लैंडिंग के लिए जगह मुफीद है। मोदी के चेहरे पर मंद मुस्कान दिखती है। मैं बता नहीं सकता कि ये दृश्य हमारे जैसों के लिए कितना रोमांचकारी है। राकेश शर्मा को तो हमने बड़ा होकर जाना। लेकिन ये मिशन अपोलो या सबसे अलग है। ठीक छह बजकर तीन मिनट पर हमारा सपना पूरा होता है। पूरे देश का सीना चौड़ा हो जाता है। हमारा विक्रम चांद को चूम रहा है। वो मिशन पर कामयाब है। और उसके पेट से रोवर प्रज्ञान निकलने को तैयार है। इसी के साथ सॉफ्ट लैंडिंग की घोषणा होती है और मोदी देश को संबोधित करते हैं।
ये दिखाता है हमारे संकल्प को। हमारी इच्छा शक्ति को। हम एक बार फेल हुए तो क्या हुआ। हमने प्रण लिया था। इसीलिए आज चंद्रयान की यात्रा सफल होनी ही थी।