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मणिपुर मुद्दे पर संसद में पीएम के बयान की मांग बनाम विपक्ष चर्चा से भाग रहा है बयान

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गोंदिया/महाराष्ट्र। वैश्विक स्तरपर भारत दुनियां का सबसे बड़ा लोकतंत्र के रूप में विख्यात है,जिसकी अनेक देशों में मिसालें दी जाती है कि हर विषय व बिल पर खुलकर चर्चा कर आम सहमति बनाते हुए विषयों का व कानूनों की गुणवत्ता को निखारा जा सके, जिसका सटीक उदाहरण हमारा आज का संविधान है, जिसकी संविधान सभा की बहस दिसंबर 1946 से जनवरी 1950 तक चली थी उस कवायद का मकसद था आदेश रूप में संसदीय बहस की परंपरा बहाल रखते हुए उसे मजबूती दी जाए। सांसदों के लिए विवेक सम्मत तरीके से मतदान की इजाजत हो ताकि विमर्श की अपेक्षित प्रक्रिया पुनर्जीवित हो। ब्रिटिश में पीएम को हर बुधवार को हाउस आफ कॉमन में सांसदों के प्रश्नों का जवाब देना होता है विपत्ति अवधि कोविड-19 के दौरान भी पीएम ने वर्चुअली सांसदों के सवालों का जवाब देना देना पड़ा था जबकि भारत में उस अवधि में प्रश्नकाल की भी समाप्त कर दिया गया था।

मेरा मानना है कि भारत में संसदीय लोकतंत्र को अपनी रचनात्मक दरकरार के साथ पक्ष-विपक्ष की जवाबदेही सुनिश्चित करना चाहिए और सांसदों को स्वायत्त पहलू की भी इजाजत हो। भारत में अनुमानतः एक संसद सदस्य 25 लाख से अधिक नागरिकों का प्रतिनिधित्व करता है, जो भूटान वहबोत्सवाना स्लोवेनिया जैसे अनेक छोटे देशों की आबादी से भी बड़ा है जो अनुमानतः 2026 तक नए सीमांकन और अनुपात गणित के हिसाब से लोकसभा की एक हजार से अधिक सीटें हो सकती है।

जाहिर है भारत के लिए विशाल समय संसाधन लगेंगे इसलिए ही नए संसद भवन का निर्माण किया गया है। परंतु जिस तरह से मानसून सत्र-2023 का हाल आज भारत सहित पूरी दुनियां देख रही है कि 20 जुलाई से 11 अगस्त तक चलने वाले सत्र में आज 1 अगस्त 2023 भी निकल गया है परंतु संसद के दोनों सदन बाधित हैं। 8 दिनों में केवल 18 घंटे ही काम हुआ है आज पारित चलचित्र अधिनियम 2023 बिल सहित सभी बिल दोनों सदनों में ध्वनिमत से ही पारित हो रहे हैं न कि किसी भी प्रकार की चर्चा थी, क्योंकि विपक्ष मणिपुर मुद्दे पर संसद में पीएम के बयान की मांग पर अड़ा है तो पक्ष का बयान है कि विपक्ष चर्चा के लिए भाग रहा है। मेरा मानना है कि दोनों पक्षों को कुछ झुककर रास्ता निकालना चाहिए। पीएम को संसद में बयान देने की मांग को संभवत स्वीकार करना चाहिए क्योंकि इसके पूर्व दशक में भी इसी सत्ताधारी पक्ष की मांग पर वर्तमान विपक्ष के तत्कालीन पीएम को आखिर झुककर बयान देना पढ़ा था जिसकी चर्चा हम नीचे पैरा में करेंगे, या फिर विपक्ष ने चूंकि अविश्वास बिल का प्रस्ताव लाया है जो स्वीकार कर लिया गया है, तो स्वाभाविक ही है पीएम के बयान की संभावना है इसलिए सदन चलने में सहयोग देने पर विचार करना चाहिए। चूंकि दोनों पक्षों के उड़ने से बाधित संसद की कार्यवाही में संभवतः हर मिनट में ढाई लाख रुपए खर्च होते हैं याने 1 घंटे में ढाई करोड़ रुपए खर्च होते होंगे जो टैक्सपेयर्स की गाड़ी कमाई है, इसलिए आज हम मीडिया में उपलब्ध जानकारी के सहयोग से इस आर्टिकल के माध्यम से चर्चा करेंगे, मानसून सत्र 2023 बाधित-लोकतंत्र को धरातल पर उतारने पक्ष विपक्ष दोनों की ज़वाबदेही ज़रूरी-झुकना सर्वश्रेष्ठ माननीय गुण है।

साथियों बात अगर हम मानसून सत्र 2023 की करें तो संसद के मानसून सत्र को शुरू हुए 12 दिन हो चुके हैं, इस बीच संसद के दोनों सदनों में 8 दिन की बैठकें हुई हैं, हालांकि बैठकों के हिसाब से तो 8 दिन हो गया है, लेकिन अगर सदन की कार्यवाही की बात करें तो ये लगातार बाधित होते रही है। पिछले कुछ सालों से ऐसा लगने लगा है कि संसद की लगातार बाधित होती कार्यवाही संसदीय प्रक्रिया का मूलभूत हिस्सा बन चुका है। हालांकि सैद्धांतिक तौर से ऐसा नहीं है, लेकिन व्यवहार में हम ऐसा ही देख रहे हैं। मानसून सत्र के दौरान भी मणिपुर हिंसा को लेकर सत्ता पक्ष और विपक्ष में तनातनी का खामियाजा संसद की कार्यवाही को भुगतना पड़ रहा है। 31 जुलाई को भी राज्यसभा और लोकसभा दोनों ही सदनों में हंगामा और अवरोध का ही बोलबाला रहा। इसी माहौल में लोकसभा से चलचित्र विधायक 2023 को भी पारित करवा लिया गया।

संसद के मानसून सत्र में हुए हंगामे और सत्ता पक्ष और विपक्ष में बढ़ते टकराव से देश बहुत चिंतित है। देश में विकास की बयार बहे इसके लिए जरूरी है कि परस्पर संवाद का वातावरण बना रहे। यह हो सकता है अगर सांसद अपने संकल्प को याद करें। संसद के पचास साल पूरे होने पर पीए संगमा की अध्यक्षता में हर दल और समूह की सहमति से निर्णय किया गया था कि प्रश्नकाल में व्यवधान पैदा नहीं किया जाएगा। आजादी के 75 साल पूरे होने पर हम आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं कम से कम इसमें एक संकल्प सांसद करें तो संसदीय लोकतंत्र में सुधार की शुरुआत हो सकती है, लेकिन क्या हमारे आजकल के सांसद यह संकल्प लेने की स्थिति में हैं? यह खतरा सिर्फ सांसदों के संकल्प करने से नहीं हटेगा क्योंकि आजकल के सांसद यह संकल्प लेने में समर्थ हैं? संसद में विपक्ष का हंगामा जारी है, माना ये भी जाता है कि विपक्ष संसद में कार्यवाही को बाधित करते हुए कहीं न कहीं किसी रणनीति पर काम कर रहा है। बताते चलें कि केंद्र की तरफ से दिल्ली अध्यादेश समेत बहुत से विधेयक इस मॉनसून सत्र में लाए जाने हैं।

साथियों बात अगर हम मणिपुर मुद्दे पर संसद में पीएम के बयान की मांग बनाम विपक्ष चर्चा से भाग रहा है बयान की करें तो, संसद का मानसून सत्र चल रहा है, लेकिन भारी हंगामे के कारण यह स्थगित हो जा रहा है, आज भी बिना किसी सार्थक चर्चा के लोकसभा के सत्र को स्थगित कर दिया गया। दरअसल विपक्ष मणिपुर के मुद्दे को लेकर चर्चा करना चाहता है, सत्ताधारी पार्टी भी कह रही है कि हम इस विषय पर चर्चा को तैयार हैं, लेकिन फिर भी संसद का सत्र हंगामे की भेंट चढ़ता है और स्थगित कर दिया जाता है। विपक्षी नेता पीएम की चुप्पी पर भी निशाना साध रहे हैं। संसद के मानसून सत्र की शुरुआत के दौरान पीएम ने इस मुद्दे पर अपनी बात रखी थी। उन्होंने कहा था कि यह घटना शर्मसार करने वाली है, दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा दरअसल विपक्षी दल मणिपुर मुद्दे पर सदन में पीएम के बयान की मांग कर रहे हैं, जिसके कारण संसद के मानसून सत्र में व्यवधान देखने को मिल रहा है।ऐसे में यह याद करना भी जरूरी है कि यूपीए सरकार के दौरान सदन की स्थिति क्या रहती थी। बता दें कि यूपीए सरकार के दौरान ऐसे कई मौके आए जब विपक्ष यानी वर्तमान सत्ता पक्ष की मांग पर पीएम माननीय सिंह ने संसद में बयान दिया था।

साथियों बात अगर हम करीब एक दशक पूर्व भी ऐसी ही स्थिति पर वर्तमान सत्ताधारी तब विपक्ष द्वारा पीएम के बयान की मांग की करें तो, 4 मार्च, 2011 को केंद्रीय सतर्कता आयुक्त के रूप में पी.जे. थॉमस की नियुक्ति का मुद्दा संसद में गूंजा था तब विपक्ष ने मांग की कि पीएम पूरे प्रकरण पर बयान दें। विपक्ष की मांग को मानते हुए तत्कालीन पीएम को संसद में आकर बयान देना पड़ा था। दरअसल 7 मार्च, 2011 को केंद्रीय सतर्कता आयुक्त के रूप में पी.जे.थॉमस की नियुक्ति को गलती बताते हुए पीएम ने कहा था कि वह इसके लिए पूरी जिम्मेदारी लेते हैं। उन्होंने लोकसभा में कहा, हम सुप्रीम कोर्ट के फैसले को स्वीकार करते हैं और उसका सम्मान करते हैं। सरकार नए सीवीसी की नियुक्ति करते समय कोर्ट द्वारा दिए गए दिशा निर्देशों/निर्देशों को ध्यान में रखेगी। 20 अगस्त, 2013 को सरकार पर कोयला घोटाले को छुपाने का आरोप लगाते हुए, वर्तमान सत्ता पक्ष तब विपक्ष ने कोयला ब्लॉक आवंटन पर गायब फाइलों पर पीएम सिंह से बयान की मांग करते हुए संसद को बाधित कर दिया था, इसके 10 दिन बाद 30 अगस्त, 2013 को कोयला खदानों के आवंटन से संबंधित गुम फाइलों को लेकर हमले के बीच, पीएम ने कहा था कि वह कोयला मंत्रालय की फाइलों के संरक्षक नहीं हैं, उन्होंने यह स्पष्ट कर दिया कि किसी भी दोषी व्यक्ति को सरकार द्वारा बचाया नहीं जाएगा। कोयला ब्लॉक आवंटन समेत अनियमितताओं को लेकर तब विपक्ष सदस्यों के सवालों का जवाब दिया था।

साथियों बात अगर हम अविश्वास प्रस्ताव की करें तो,क्या लोकसभा में टिक पाएगा अविश्वास प्रस्ताव? सवाल ये है कि विपक्ष के इस अविश्वास प्रस्ताव का मकसद क्या है, वो भी ऐसी स्थिति में जब पता है कि लोकसभा के अंदर ये प्रस्ताव टिक नहीं पाएगा। ऐसा इसलिए कि किसी भी प्रस्ताव पर लोकसभा में वोटिंग होती है और जिधर संख्याबल ज्यादा होता है, फैसला उसी के पक्ष में आता है। फिलहाल लोकसभा में संख्याबल के हिसाब से सत्ताधारी पार्टी की अगुवाई वाला पक्ष मजबूत है। इस लिहाज से अविश्वास प्रस्ताव टिक ही नहीं सकता है।

अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर उसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि मणिपुर मुद्दे पर संसद में पीएम के बयान की मांग बनाम विपक्ष चर्चा से भाग रहा है बयान। मानसून सत्र 2023 का हाल देखकर आगे मतदान का प्रयोग सोच समझकर कीजिएगा ! मानसून सत्र 2023 बाधित – लोकतंत्र को धरातल पर उतारने पक्ष विपक्ष दोनों की जवाबदेही – झुकना सर्वश्रेष्ठ मानवीय गुण है।

लेख़क एडवोकेट किशन सनमुख़दास भावनानी कर विशेषज्ञ एवं स्तंभकार हैं।