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लंदन नहीं मेरा इंडिया है स्मार्ट : पूरन डावर

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मैं, पिछले दिनों यूके ट्रैवल पर था जब वापस लौट रहा था तो भारत से यूके की इस यात्रा अनुभव में कुछ सुखद अनुभव और सुखद अंतर महसूस हुआ। एक ओर जहां देश में आम आदमी अभी बुनियादी आवश्यकताओं से बहुत दूर है। निश्चित रूप से अभी बड़ी लड़ाई-बड़े प्रयास किए जाने हैं, हमें 5 जी की स्पीड पर चलना होगा हालाँकि कुछ क्षेत्रों हम 5 जी की तेज गति से आगे बढ़ रहे हैं।

देश बदल रहा है एक समय था जब दिल्ली एयरपोर्ट पर प्रवेश से पहले और प्रवेश के बाद कितना समय एयर लाइन की लाइन में, कितना समय इमेग्रेशन में, कितना समय कस्टम में… जोकि घात लगाकर बैठे होते थे। कितने डालर ले जा रहे हो, कहाँ-कहाँ रखे हैं, फिर सिक्योरिटी में लंबी लाइन। उतरने से पहले डर का माहौल सौ आशंकाओं से मन ग्रसित रहता था, कितना समय इमीग्रेशन में लगेगा, कितने समय में सामान आएगा और कितना समय कस्टम में लगेगा, क्या-क्या खोला जायेगा। रात 2-3 बजे फ्लाइट आये फिर थके हुए बैग को खोलो री पैक करो। जूते का व्यापार करते है तो जूते के सैंपल होते थे। इनका डिक्लेरेशन कहाँ है, सैंपल नॉट फॉर सेल पंच किया होता था बावजूद इसके सौ सवाल। …नहीं ये तो वहीं से लाए हो अभी ड्यूटी दे दो फिर वापस लेते रहना। यह एक बड़ा दर्द होता था।

आज स्थित बिलकुल उलट है, …आपका स्वागत है 9 बजे फ्लाइट उतरी। इंटरनेशनल इमेग्रेशन भी हो गया सामान भी आ गया ड्यूटी फ्री शॉपिंग भी हो गयी और 9:30 बजे महज 30 मिनट में पार्किंग में भी पहुँच गए। पैसेंजर पहले से 100 गुना अधिक फिर भी कोई लाइन नहीं, सिक्योरिटी में हो या इमेग्रेशन में, कस्टम की बात करें तो यदि किसी के पास अधिक से अधिक समान दिखा तो अधिक से अधिक एक्स-रे मशीन से पास करा दो।

बात लंदन एयरपोर्ट की, उतरे गेट से अराइवल तक लंबी दूरी कम से कम एक घंटे की इमेग्रेशन लाइन। Heathrow पर पार्किंग सारे टर्मिनल के लिये एक टर्मिनल 2 पर पार्किंग टर्मिनल 3 की दूरी तय करना कोई आसान काम नहीं। पहली बार किसी के लिये व्हीलचेयर का अनुभव हुआ। लंदन एयरपोर्ट पर 6 बजे चेकइन हो चुके थे व्हीलचेयर पर 3 चेंज के बाद बमुश्किल 8 बजे फ्लाइट में घुस सके, पेशेंट बेचारा वैसे ही मर ले।
दूसरी ओर दिल्ली एयरपोर्ट पर हवाई जहाज के दरवाजे से निकलते ही ऊपर व्हीलचेयर तैयार सीधे इमेग्रेशन पर मौजूद। दिल्ली एयरपोर्ट की बग्गियाँ क्या कहने और लंदन एयरपोर्ट पर आजकल जुगाड़ चल रही हैं।
देश तेज़ी से बदल रहा है जीडीपी बढ़ रही है देश की आंतरिक व्यवस्थाएँ बेसिक सुविधाएँ भी ठीक होंगी। आज़ादी के उन्माद में हैं हमने बहुत कुछ खोया है, सिविक सेंस तो मिट चुका है क्योंकि जिन पर सिविक सिस्टम बनाने की ज़िम्मेदारी थी उन्होंने सिविक सिस्टम न बना कर मात्र डंडे से काम लेना बेहतर समझा, सिविक सिस्टम के अभाव में जो सिविलाइज्ड थे वे भी जाहिल होने को मज़बूर हो गये। अभी बहुत कुछ होना बाक़ी है अभी टॉयलेट और स्वच्छता से शुरूआत हुई है, ग़रीबों को घर, बिजली, पानी, ईंधन की बात हो रही, शिक्षा में बदलाव, आयुष्मान जैसे स्वास्थ्य बीमे की, छोटे से छोटे व्यक्ति को बैंकिंग में लाने की।

उधर मेक इन इंडिया, स्टार्ट अप इंडिया, स्टैंडअप इंडिया, स्किल इंडिया, रीस्किल इंडिया, अपस्किल इंडिया, डिजिटल इंडिया। इन सारी योजनाओं का स्पष्ट लाभ मिल रहा है, देश में हर दिन 500 से अधिक कंपनियाँ रजिस्टर हो रहीं। 100 से ऊपर स्टार्टअप, हर दस दिन में एक युनिकॉन कंपनी, ऑटोमोबाइल, इलेक्ट्रॉनिक्स मिसाइल, हेलीकॉप्टर और लड़ाई के जहाज़ों की मैन्यूफ़ैक्चरिंग, देश तेज़ी से आगे बढ़ रहा है। अभी बहुत कुछ करना बाक़ी है, बुनियादी क़ानून, न्याय व्यवस्था से लेकर चुनाव सुधार तक बड़े कदम अभी आवश्यक हैं। बात शुरू हो चुकी है हर रोज़ चर्चा भी हो रही है, समय के साथ सब होगा ऐसी संभावनायें स्पष्ट दिख रही हैं। बाक़ी राजनीति अपनी जगह है, कुछ बदलना है तो सत्ता में रहना है। सत्ता के लिये राजनीति करनी पड़ेगी, सीधी उँगली से घी नहीं निकलता तो टेढ़ी उंँगली से सही।

सामाजिक चिंतक, आर्थिक विश्लेषक एवं जूता निर्यातक पूरन डावर की यूके यात्रा के अनुभवों पर उनका विश्लेषण