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नेशनल पेपर डे : कागज के प्रति आमजन के दिमाग की भ्रांतियां दूर होनी चाहिए

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मानव जीवन में कागज़ का उपयोग लगभग 2000 वर्षों से अधिक समय से हो रहा है। कागज़ के 14000 से भी ज्यादा उपयोग हैं। प्रारंभ में पुराने वस्त्रों, पेड़ों के पत्तों इत्यादि को कूटकर, पीस कर, उस की लुगदी बना, कागज़ का उत्पादन किया जाता था। कागज़ बनाने के लिए पेड़ों का काटना आवश्यक नहीं है क्योंकि भारतवर्ष में- लगभग तीन चौथाई से ज्यादा कागज़ को रद्दी कागज़, गेहूं की भूसी, चावल की तूड़ी, गन्ने की खोई इत्यादि को गलाकर बनाया जाता है जिसे पहले अमुमन जला दिया जाता था जोकि वायु प्रदूषण का भी कारण बनता था। शेष एक चौथाई से भी कम कागज़ को लकड़ी के पल्प से बनाया जरूर जाता है यहाँ यह बात गौर करने वाली है इसको बनाने के लिए प्रयोग लकड़ी निजी, सरकारी या अधिकृत जंगलों की लकड़ी काट कर नहीं बल्कि अपनी जमीन पर अपने लिए उगाए गए पेड़ों की होती है। जैसा कि हम चीनी बनाने के लिए खुद गन्ना बोते है खुद काटते है और उसकी चीनी बनाते है फिर बोते है फिर काटते है। या गेहूं बोते है और उसे काटते है अपने लिए और फिर दुबारा बोते है अपने लिए। इस ही प्रकार पेपर इंडस्ट्री यदि एक पेड़ स्वयं की भूमि पर से भी काटती है तो लगभग डेढ़ पेड़ (औसतन) लगाती भी है ताकि भविष्य में भी उसकी आपूर्ति हो सके। इस प्रकार ज्यादा पेड़ लगाने से ज्यादा ऑक्सीजन एवं ज्यादा हरियाली होती है और इससे भारत की हरित क्रांति मिशन को भी कोई नुक़सान नहीं पहुँचता।

ज्ञान के आभाव में कागज़ एवं इससे बनी चीजों के प्रति भ्रांतियाँ प्रचार किया जा रहा है, जबकि इस सम्बन्ध वस्तुस्थिति इस प्रकार है:-
• कागज़ निर्माता कागज़ बनाने के लिए स्वयं की भूमि के पेड़ों की कटाई कर कई गुना नए पेड़ लगाते हैं।
• कागज़ उद्योग 3 राष्ट्रीय उद्देश्यों में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है-
• ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा, साक्षरता और रोजगार उत्पादन।
• कागज़ पर्यावरण अनुकूल है।
• कागज़ पुनः नवनीकरण (recycling) योग्य है।
• कागज़ पर पढ़ना और लिखना दूसरे माध्यमों (जैसे कि डिजिटल) के मुकाबले सबकी सेहत के लिए भी अच्छा होता है।
• पेपर जैव निम्निकर्णीय (biodegradable) होता है।
• अधिकांश पेपर अपशिष्ट कागज़ (वेस्ट रीसाइक्लिंग) से बनाये जा रहे है।
• भारत में लगभग सभी पेपर मिल इस दिशा में अच्छी तरह से कार्य कर रही हैं एवं आधुनिक, अनुमोदित तथा कुशल प्रदूषण नियंत्रण प्रणाली की स्थिति के आंकड़े सरकारी प्राधिकरण को सरवर पर ऑनलाइन भेजती रहती है।

एक चौथाई से भी कम कागज़ को लकड़ी के पल्प से बनाया जरूर जाता है पर इसके लिए प्रयोग लकड़ी निजी, सरकारी या अधिकृत जंगलों की लकड़ी काट कर नहीं बल्कि अपनी जमीन पर अपने लिए उगाए गए पेड़ों की होती है। जैसा कि हम चीनी बनाने के लिए खुद गन्ना बोते है खुद काटते है और उसकी चीनी बनाते है फिर बोते है फिर काटते है।
-राजीव कुमार अग्रवाल, पूर्व अध्यक्ष, फेडरेशन ऑफ पेपर ट्रेडर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एफपीटीए)