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देर से सही आखिर एक देश एक चुनाव बिल को कैबिनेट में पास होना ऐतिहासिक कदम

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-पूरन डावर, चिंतक एवं विश्लेषक

देर से सही आखिर एक देश एक चुनाव बिल को कैबिनेट ने मंजूरी दे दी अब लोकसभा व राजसभा से पास कराना है। यह बिल उतना ही महत्वपूर्ण है जितना जनसंख्या नियंत्रण और एक देश एक कानून। पूरे 5 वर्ष देश के किसी न किसी राज्य में चुनाव, आचार संहिता, लुभावने वायदे देश के लिए कोई दृढ़ निर्णय नहीं केवल मुफ्त की रेवड़ियाँ, करोड़ों रुपये का खर्च, सैकड़ों जानें, पूरे 5 वर्ष करोड़ों रुपये के सरकारी विज्ञापन.. जनता के समय और धन की बरबादी।

देश के संविधान में एक ही चुनाव की व्यवस्था थी लोकसभा और विधानसभा के चुनाव साथ-साथ होते थे और उसके तुरंत बाद स्थानीय निकायों के चुनाव होते थे, 1967 के बाद जब संयुक्त विधायक दल की सरकार बनी और समय से पहले राज्य सरकारों का गिरना शुरू हुआ उतर प्रदेश में 67 के बाद 69 में पुनः चुनाव हए तो चुनाव बाकी बचे हए 3 साल के लिए हुए.. यह अच्छी प्रक्रिया थी राज्य सरकार में पाला बदलते समय विधायक को सोचना पड़ता था दोबारा चुनाव में आना पड़ेगा। 2 साल बाद फिर चुनाव में खर्च करना होगा, न जाने क्यों इस व्यवस्था को बदल दिया गया और चुनाव पूरे 5 वर्ष के लिए होने लगे और सारे राज्यों का समय बदल गया। नतीजा पूरा देश हर समय चुनाव मोड में रहता है।

अवधि 5 वर्ष ही होगी केवल एक बार या तो कार्यकाल बढ़ाना होगा या घटाना होगा उसकी दुरस्त व्यवस्था भी पूर्व राष्ट्रपति कोविंद कमेटी ने कर दी है, ना कोई चुनाव रोका जाएगा जिस राज्य के चुनाव होने हैं होंगे लेकिन 2029 में लोकसभा के साथ पुनः होंगे यानी कि 2024 में चुनाव वाले राज्य में 5 वर्ष, 25 वालों को 4 वर्ष, 26 वालों का 3 और उत्तर प्रदेश जिसके 27 में होना है उसके चुनाव 2 वर्ष के लिए होंगे।

देश पहले होना चाहिए, किसी भी दल को कम से कम इस बिल का विरोध नहीं करना चाहिए क्योंकि कार्यकाल घटाया नहीं जा रहा। कोई राज्य सरकार समय से पहले भंग होती है तो बचे हुए कार्यकाल के लिए होगी। विपक्षी दलों को यह समझना होगा इसमें किसी दल विशेष का लाभ नहीं है सरकारें आयेंगी जायेंगी कोई भी सरकार अपरिहार्य नहीं है कितना भी अच्छा काम करे सारी जनता संतुष्ट नहीं हो सकती और जनता और बेहतर की उम्मीद करती है दूसरे दलों को भी मौका देना चाहती है परिवर्तन शाश्वत नियम है।

यदि दल केवल विरोध के लिए विरोध करते हैं तो देश आगे नहीं बढ़ सकता मगर देश की विडंबना यही है। काश दल कम से कम ऐसे मुद्दों पर तो एक हों जिसमें किसी दल का लाभ या हानि नहीं है लेकिन देश को बड़ा लाभ और जनता को सुविधा 5 वर्ष में 1 बार मतदान केंद्र पर, एक बार शोर शराबा, 5 वर्ष में एक बार राजनीति पूरे 5 वर्ष जनता अपना काम और सरकार अपना काम करे।