- बृहस्पति व राहु की एक साथ युति से बनने वाला गुरु-चांडाल योग को महा पितृदोष माना जाता है
आगरा। वैदिक सूत्रम चेयरमैन विश्वविख्यात एस्ट्रोलॉजर पंडित प्रमोद गौतम के अनुसार पितृ दोष के स्थाई समाधान के लिए “नारायण बलि” के विधान से ज्ञात अतृप्त मृतक आत्मा को प्रेतत्व से पूर्ण मुक्ति मिलती है। जब किसी भी व्यक्ति की जन्मकुंडली में देवगुरु बृहस्पति एवं छाया ग्रह राहु की एक साथ युति से गुरु-चांडाल नामक योग बनता है तो वैदिक हिन्दू ज्योतिष के अनुसार इसे महा-पितृ-दोष माना जाता है, जिसके पूर्ण निवारण के लिए किसी सिद्ध धार्मिक स्थल पर नारायण बलि देने का विधान शास्त्रोंनुसार माना जाता है।
पंडित गौतम ने नारायण बलि की पूजा पद्धति के संदर्भ में बताते हुए कहा कि नारायण बलि विधान अप्रत्याशित रूप से घटित आकस्मिक दुर्घटनाओं एवं आत्महत्या के द्वारा प्रेतत्व को प्राप्त अतृप्त आत्माओं को सद्गगति एवं मुक्ति प्रदान करने का एक अचूक उपाय है नारायण बलि जिसकी शास्त्रोक्त विधि से पूजा अवधि लगभग 6 से 7 घंटे की होती है। बिहार में गया तीर्थ इसके लिए सबसे उत्तम स्थान है।
“नारायण बलि” नारायण को बलि के रूप में प्रदान करना है
पंडित गौतम ने बताया “नारायण बलि” का विधान तब किया जाता है, जब कोई ज्ञात अतृप्त मृतक आत्मा को प्रेतत्व से मुक्ति दिलानी हो। एक प्रकार से ”नारायण बलि” के कर्मकांड के विधि विधान से उस अतृप्त प्रेतात्मा को भगवान नारायण के चरणों में समर्पित कर देना, भगवान नारायण को बलि के रूप में प्रदान करने को नारायण बलि कहते हैं। इसको और सरल भाषा में समझने का प्रयास करें तो कुल मिलाकर जिस आत्मा का नाम, गोत्र पता हो, उसे ज्ञात अतृप्त मृतक आत्मा कहते हैं। उनके निम्मित नारायण बलि, पार्वण श्राद्ध आदि किये जाते हैं।
पितृ पक्ष में अनुष्ठान किसी भी दिन किए जा सकते हैं
पंडित गौतम ने आगे बताया कि यदि किसी आत्मा का अथवा हमारे अपने पूर्वजों का नाम और गोत्र पता न हो तो उनके निमित्त, उनके उद्धार अथवा तृप्ति के लिए “त्रिपिंडी श्राद्ध” आदि किये जाते हैं। भगवान विष्णु, भगवान ब्रह्मा, भगवान शंकर के निमित्त तीन पिंड बनाकर उनका पूजन कर उनके निमित्त तर्पण आदि कर सभी प्रकार की दुर्गति को प्राप्त पूर्वजों की आत्माओं की सद्गगति एवं उनके उद्धार के लिए प्रार्थना की जाती है। इसलिए इस कर्म को त्रिपिंडी श्राद्ध अर्थात तीन पिंड बनाकर किया गया श्राद्ध कर्म कहा जाता है। कुल मिलाकर जैसे त्रिपिंडी श्राद्ध का महत्त्व है, उसी प्रकार से नारायण बलि का भी अपना महत्त्व है। जिसे भी अपने ज्ञात अथवा अज्ञात पूर्वजों की सद्गगति करनी हो, उनको प्रेतत्व से पूर्ण रूप से मुक्त करना हो, उनके निम्मित नारायण बलि, त्रिपिंडी श्राद्ध आदि कर्म कृष्ण पक्ष में किसी विशेष तिथि एवं वार के संयोग में करना चाहिए। पितृ पक्ष में अतृप्त पितृ तृप्ति के अनुष्ठान 16 दिनों के दौरान किसी भी दिन किए जा सकते हैं।