संगीत, कला और साहित्य से प्रख्यात मेरा शहर आगरा ऐतिहासिक धरोहरों, सांस्कृतिक एंव धार्मिक चेतना का सदियों से केंद्र बिंदु रहा है।
एक युग था जब यह शहर लाल पत्थर का था। संपन्नता इसका मुख्य केंद्र बिंदु थी। समय की धारा बहती चली गई और आज भी यह शहर ऐतिहासिक धरोहरों के कारण विश्व में अपना अद्भुत स्थान रखता है।
यह शहर जहां हिंदू-मुस्लिम एकता के कारण जाना जाता है वहीं दूसरी ओर सामाजिक दायित्व के निर्वहन में समाजसेवियों का भी यहां कभी अभाव नहीं रहा। अपने कर्तव्यों के प्रति समाजसेवी हमेशा से शहर में सजग रहे हैं। एक जमाना था इस शहर को सेठों के शहर से जानते थे। सेठ अगर व्यवसाय में उन्नतशील थे तो समाज सेवा में भी पीछे नहीं थे। धर्मशालाओं का निर्माण, तपती भीषण गर्मी में शीतल जल उपलब्ध कराना, गरीब निर्धन कन्याओं के विवाह की व्यवस्था तथा समाज सेवा के अन्य क्षेत्रों में वे कभी भी विमुख नहीं हुए।
आगरा की भूमि ने समाजसेवियों को समय-समय पर प्रतिष्ठापित किया और मानवता के प्रति संदेश देते हुए कहा कि पीड़ित मानव की सेवा ही सबसे बड़ी सेवा है। आज इस कड़ी में मैं जिक्र कर रहा हूं आगरा की उस शख्सियत का जिनका नाम आगरा में बहुत आदर से लिया जाता है। हस्तियां भी उनके संरक्षण में नतमस्तक होती है, आत्मीयता भी उनका अभिनंदन करती है। मैं बात कर रहा हूं श्री पूरन डावर साहब की।
व्यक्तित्व के निर्माण से लेकर सांस्कृतिक, सामाजिक एवं अन्य कार्यक्रमों में उनकी भूमिका अहम् रहती है तथा भूख के एहसास को भी वे समझते हैं और समाज सेवा में उन्होंने जो आयाम स्थापित किए हैं उनसे सदियों तक आगरा की जनता उन्हें अभिनन्दित करेगी। विनम्रता की पराकाष्ठा तो देखिए एक सफल उद्योगपति होने के बावजूद भी उन्हें स्वयं के लिये उद्योगपति शब्द सुनना कतई पसन्द नहीं है। यदि उन्हें कोई सिर्फ उद्योगपति कहता है तो उनकी चिढ़चिढ़ाहट उनके चेहरे पर स्पष्ट झलकती है। ऐसा मैंने कई बार देखा भी है। वे अकूत संपत्ति के मालिक ही नहीं बल्कि अकूत सहृदयता के प्रतीक भी हैं। वे एक सच्चे और सफल सौदागर भी हैं उद्योग में निवेश करना कोई इनसे सीखे। एफमेक के अध्यक्ष के रूप में उन्होंने फुटवियर उद्योग के अंदर नई क्रांति का सृजन किया है तो दूसरी और मानवता में निवेश करने में भी उनकी पहल को यह शहर भलीभांति जानता है।
सक्षम डावर मेमोरियल ट्रस्ट के माध्यम से डावर साहब ने अर्थ के अभाव में छात्र-छात्राओं के हित के लिए जो किया उससे मेरा शहर निरन्तर गद् गद् है। अत्यंत रियायती दर पर स्वच्छ एवं पौष्टिक भोजन को उपलब्ध कराकर इस शहर में एक नज़ीर पेश की है। फुटवियर उद्योग से संबंध रखने वाले पूरन डावर साहब ने फुटवियर उद्योग को विश्व में एक कीर्तिमान के रुप में स्थापित किया है। आगरा को आज ऐतिहासिक इमारतों के अतिरिक्त फुटवियर उद्योग के नाम से भी जाना जाता है। इस दिशा में डावर साहब एवं उनकी समिति द्वारा किए गए कार्यों का सकारात्मक प्रतिफल है। बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी पूरन डावर साहब की सरलता, सहजता और विनम्रता से आगरा ही नहीं वरन विश्व में फुटवियर उद्योग से जुड़ी संबंधित हस्तियां इनके आत्मीयता पूर्ण व्यवहार से भलीभांति परिचित हैं।
सेवा के क्षेत्र में वे रतन टाटा जी तो नहीं है पर आगरा के परिवेश में रतन टाटा से कम भी नहीं हैं। संपूर्ण विश्व कोविड के दंश को झेल रहा था। भारत की भी स्थिति अत्यंत गंभीर थी। भारत सरकार ने लॉकडाउन की घोषणा की और गाइडलाइन दी कि आप स्वयं को सुरक्षित रखिये, घरों से बाहर नहीं निकलना है, स्थिति भीषण थी। अफरा तफरी के माहौल में कभी ना रुकने वाली भूखे-प्यासे पुरुषों, महिलाओं और बच्चों की भारी भीड़ दिल्ली से बिहार और उत्तर प्रदेश की ओर सड़क मार्ग से पैदल ही निकल पड़ी थी। यह भीड़ आगरा होते हुए जा रही थी क्योंकि अपने प्राणों को बचाना ही प्रथम लक्ष्य था।
आगरा के महानायक पूरन डावर को घर की कैद पसंद नहीं थी, उन्हें मानवता का सच्चा सौदा जो करना था। वे घर से बाहर निकल आये, तत्काल पूरी टीम गठित की और युद्ध स्तर पर भोजन व्यवस्था अपने फार्म हाउस स्थित किचन में की। कोई भी व्यक्ति इस भीषण गर्मी में भूखा प्यासा उनके शहर से न जाए इस दिशा में कार्य प्रारंभ हो चुका था। दूसरे ही दिन अखबारों में डावर साहब सुर्खियां बने। नेतृत्व के रूप में एक कार्यकर्ता और एक कार्यकर्ता के लिए नेतृत्व की परिभाषा को डावर साहब ने परिलक्षित किया।
डावर साहब का समाजसेवियों में सीधा संदेश गया कि वह व्यक्ति अपनी जान की चिंता किए बगैर दूसरे लोगों के हित के लिए कार्य करें। अनुकरण का सिद्धांत प्रतिपादित होते हुए मैंने जीवन में ऐसा कभी नहीं देखा। आगरा में जो मिसाल कायम की उसमें पूरन डावर साहब अब आस्था का मुख्य केंद्र बिंदु बन चुके थे। कोविड की दूसरी लहर में डावर साहब ने एक चुनौती के रूप में अस्थाई तौर पर सींगना स्थित एफमेक की बिल्डिंग में कोविड पीड़ित अस्पताल का निर्माण किया। समय की बहुत कम अवधि में अस्पताल के रूप को देखकर आगरा का जनमानस कृतज्ञ हो उठा। सेवा का यह आयाम आगरा के स्वर्णिम अध्याय की रचना रच चुका था।
धन तो कोई भी उद्योगपति दिखावे में दे सकता है। प्राणों को संकट में डालकर सेवा के क्षेत्र में यदि कोई व्यक्तित्व निकलता है तो समझ लो मंगल की वर्षा होती है। कुछ ऐसा ही मेरे शहर ने संपूर्ण लॉकडाउन कीअवधि में देखा। ऐसे व्यक्तित्व किसी भूमि पर राज नहीं करता बल्कि लोगों के दिलों में अपने साम्राज्य को स्थापित करता है। पूरन डावर साहब की छाप अमिट है।
एक लंबे अर्से के साथ मैं डावर साहब के साथ जुड़ा हुआ हूं। सेवा के अध्याय का एक हिस्सा मैंने स्वयं भी देखा है। इनको स्वयं भी नहीं पता इन्होंने कितने लोगों की कितनी मदद की है। अगर एक हाथ से देते हैं तो दूसरे हाथ को ज्ञात नहीं होता यह कहावत डावर साहब पर चरित्रार्थ होती है। मुझे यह कहने में भी संकोच नहीं है कि कुछ लोग पूरन डावर साहब की शराफत का नाजायज लाभ भी उठाते हैं। एक बार मैंने उनसे यह बात की थी तो वह मुझ पर ही नाराज हो उठे और बोले, “क्या लाया हूं क्या ले जाऊंगा कोई मुझसे जबरदस्ती कुछ नहीं ले जाता।” आक्रोशित डावर साहब का यह रूप मैंने ना के बराबर देखा था। डावर साहब के उक्त आक्रोश ने मुझे प्रेरणा से सशक्तिक किया।
डावर साहब चिरायु हों। सेवा का यह कारवां समाज सेवियों के लिए एक प्रेरणा का स्रोत बना रहे।
सुभाष ढल, लेखक, समाजसेवी एवं चिंतक