- दिल्ली में विश्व व्यापार संगठन के 22 सदस्य देशों की दो दिवसीय बैठक का आज आखिरी दिन है
- इस बैठक में भारत ने सदस्य देशों द्वारा व्यापारिक मुद्दों पर एकतरफा कार्रवाई के कानून में संशोधन प्रस्ताव पेश किया
- चीन और दक्षिण अफ्रीका ने भारत के इस संशोधन प्रस्ताव पर सहमति जताई है
- राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप की अमेरिकी फर्स्ट पॉलिसी ने चीन और भारत जैसे देशों के सामने बड़ी चुनौती पेश की है
बिज़नेस डेस्क। एशिया महादेश की दो बड़ी अर्थव्यवस्था, चीन और भारत किसी मुद्दे पर एकमत हों, ऐसा बहुत कम देखने को मिलता है। दोनों देशों के बीच कड़ी प्रतिस्पर्धा का कारण एशिया में चीन की बढ़ती ताकत को भारत से मिल रही तगड़ी चुनौती है। लेकिन, अमेरिका ने एकतरफा ट्रेड वॉर छेड़कर दोनों देशों को एकजुट कर दिया है।
WTO की बैठक में साथ आए भारत-चीन
सोमवार को विश्व व्यापार संगठन (WTO) के 22 विकासशील और सबसे कम विकसित सदस्य देशों की बैठक शुरू हुई। भारत ने इस दो दिवसीय बैठक में व्यापारिक मुद्दों पर सदस्य देशों की एकतरफा कार्रवाई से संबंधित कानून में संशोधन का प्रस्ताव पेश किया है। चीन और दक्षिण अफ्रीका भारत के इस कदम के समर्थन में हैं। इस प्रस्ताव को लेकर चर्चा का एक प्रमुख बिंदु यह है कि यह विकासशील देशों के लिए विशेष प्रावधान हैं जिसे विशेष और विभेदकारी व्यवहार (स्पेशल ऐंड डिफरेंशल ट्रीटमेंट) कहा जाता है। इसके तहत विकासशील देशों को समझौतों और वादों को लागू करने के लिए ज्यादा वक्त मिलता है। साथ ही, इसमें उनके व्यापारिक हितों की सुरक्षा के प्रावधान भी हैं।
‘अमेरिका फर्स्ट’ की पॉलिसी से चीन के सामने बड़ी चुनौती
व्यापारिक मुद्दे पर भारत और चीन का एकमत होना आश्चर्य की बात नहीं है। अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप की व्यापारिक मसलों में ‘अमेरिका फर्स्ट’ की पॉलिसी से चीन के सामने बड़ी चुनौती खड़ी हो गई है और दोनों देशों के बीच जारी व्यापारिक बातचीत (ट्रेड टॉक्स) के सकारात्मक दिशा में जाने का कोई संकेत नहीं मिल रहा है। अमेरिका ने 5.6 अरब डॉलर (करीब 395 अरब रुपये) मूल्य की आयातित वस्तुओं पर ड्यूटी बेनिफिट्स हटाकर भारत को भी व्यापारिक झटका दिया है। यूएस ट्रेड सेक्रटरी विल्बर रॉस ने अपने हालिया दिल्ली दौरे में भारत पर आरोप लगाया कि वह अमेरिका से आयातित वस्तुओं पर अन्यायपूर्ण तरीके से आयात शुल्क लगाता है। बहरहाल, अमेरिका की एकपक्षीय कार्रवाई के खिलाफ बहुपक्षीय एकजुटता से भारत और चीन फायदे में रहेंगे।
हल नहीं हो रहे व्यापारिक विवाद
इस बैठक में चर्चा का दूसरा विषय डब्ल्यूटीओ के विवाद निपटान तंत्र की अपीलीय संस्था का पतन होना है। विभिन्न देशों के बीच व्यापारिक विवादों के निपटारे के लिए सुनवाई करने वाली अपीलेट बॉडी इसलिए अप्रभावी हो गई है क्योंकि अमेरिका ने जजों की नियुक्ति पर रोक लगा दी। इस संस्था में आम तौर पर सात जज होते हैं, लेकिन फिलहाल इसमें तीन जज ही बचे हैं। दिसंबर में दो और जजों की सेवानिवृत्ति के बाद सिर्फ एक जज ही बचेंगे। उसके बाद किसी भी मसले पर सुनवाई की गुंजाइश खत्म हो जाएगी क्योंकि तीन जजों का जरूरी कोरम ही पूरा नहीं हो पाएगा।
WTO में फंसे हैं ये मुद्दे
वर्ल्ड ट्रेड ऑर्गनाइजेशन में जो मुद्दे फंसे हैं, उनमें भारत और चीन की दो-दो शिकायतें प्रमुख हैं। भारत ने लोहा और स्टील के आयात पर अमेरिका द्वारा सेफगार्ड ड्यूटीज लगाए जाने के आदेश को चुनौती है। एक अन्य मामले में भारत ने नवीकरणीय ऊर्जा (रीन्यूएबल एनर्जी) पर अमेरिकी कदमों को चुनौती दी है। वहीं, चीन ने अमेरिका द्वारा टैरिफ लगाए जाने के खिलाफ डब्ल्यूटीओ में शिकायत की है। साथ ही, चीन ने कुछ स्टील प्रॉडक्ट्स पर अमेरिका द्वारा ड्यूटी बढ़ाने के फैसले को चुनौती दी है। दरअसल, करीब 70 देशों ने अमेरिका से जजों की नियुक्ति पर रोक हटाने की बार-बार गुहार लगाई है। यह दुर्लभ मामलों में एक है जिसमें भारत, चीन और यूरोपियन यूनियन एक तरफ खड़ा है।