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इतिहास के पन्नों से… जब चीन, पाकिस्तान भी नहीं डिगा पाया था हमें

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हमें अपना इतिहास भूलना नहीं चाहिये, 16 मई 1975 को जब सिक्किम हमारा हुआ। चीन, पाकिस्तान के दबाव से भारत की प्रधानमंत्री टस से मस नहीं हुई।

असलम के सैफी

जी हां, अपने देश भारत का छोटा सा, प्यारा सा, सुंदर सा पहाड़ी राज्य सिक्किम आज शायद विदेश में होता यदि लौह महिला इंदिरा गांधी न होतीं। इसका श्रेय भारत की पहली महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को ही जाता है कि उन्होंने चारों ओर प्रकृति की सुंदरता से भरे-पूरे अतिसुंदर सिक्किम को भारत का अंग बनाया। यह 16 मई 1975 की बात है जब सिक्किम में चोग्याल राजवंश के शासन का अवसान हुआ और सिक्किम आधिकारिक तौर पर 22वें राज्य के रूप में भारत गणराज्य का अंग बना।

कहा जाता है कि सिक्किम को भारत में शामिल किए जाने की सोच 1962 में भारत-चीन युद्ध के बाद शुरू हुई। वरना, इससे पहले सन् 1642 से सिक्किम चोग्याल राजवंश के अधीन था। उस राजवंश के अंतिम शासक पाल्देन ठोंडुप नामग्याल थे। वह भारत गणराज्य में सिक्किम के विलय को राजी नहीं थे। मगर, भारत की इंदिरा सरकार भी विलय के अलावा और कुछ मानने को तैयार नहीं थी। सिक्किम में जनमत संग्रह कराया गया। वहां की जनता ने राजतंत्र के विरुद्ध लोकतंत्र एवं भारत गणराज्य में विलय के प्रति अपना मत दिया।

सिक्किम को भारत में शामिल कराने की कवायद धरातल पर पहले से ही शुरू कर दी गई थी। भारत की तत्कालीन इंदिरा सरकार ने इसके लिए कल-बल-छल-बुद्धि सारे दांव अपनाए थे। भारत सरकार के आदेशानुसार 5 और 6 अप्रैल की रात 12 बजे हमारी सेना ने कार्यवाही शुरू की और 6 अप्रैल 1975 को सुबह-सुबह भारतीय सेना ने राजा चोग्याल के राजमहल को चारों ओर से घेर लिया। पांच हजार भारतीय सैनिकों को राजमहल के 243 गार्डों पर काबू पाने में वक्त नहीं लगा। उसी दिन सिक्किम का आजाद देश का दर्जा समाप्त हो गया। राजा चोग्याल को उनके ही राजमहल में नजरबंद कर दिया गया। उससे बहुत पहले से ही आम जनता की भी बगावत जारी थी। जनमत संग्रह में जनता ने राजा, राजवंश व राजशाही का तीव्र विरोध किया।

सिक्किम को भारत का 22वां राज्य बनाने का संविधान संशोधन विधेयक 23 अप्रैल 1975 को लोकसभा में पेश किया गया। उसी दिन यह 299-11 मत से पारित भी हो गया। 26 अप्रैल 1975 को राज्यसभा ने भी इसे पास कर दिया। 15 मई 1975 को राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने विधेयक को मंजूरी दी और सिक्किम आधिकारिक रूप से भारत गणराज्य का अंग बन गया।

दिल्ली के म्यूनिसिपल कमिश्नर बी.एस. दास को कार्यकारी के रूप में सिक्किम सरकार की जिम्मेदारी लेने के लिए दिल्ली से सिक्किम भेजा गया। 8 अप्रैल 1975 को बी.एस. दास सिलीगुड़ी से हेलीकॉप्टर द्वारा गंगटोक पहुंचे। वहां चोग्याल के विरोधी काजी लेंडुप दोर्जी व भारतीय शासन-प्रशासन, पुलिस व सेना अधिकारियों ने उनका स्वागत किया। जुलूस निकाल कर दास को उनके निवास स्थान ले जाया गया।

बी.एस. दास 10 अप्रैल को जा कर राजा चोग्याल से मिले व बैठक की जो बड़ी कड़वी रही। राजा चोग्याल भड़क गए। उन्हें चेतावनी दी कि सिक्किम को गोवा समझने की भूल न कीजिएगा। राजा चोग्याल की चाहत थी कि सिक्किम को भूटान जैसा स्वतंत्र, प्रभुसत्ता संपन्न देश का दर्जा दिया जाए। उन्होंने बी.एस. दास से यह भी कहा कि सिक्किम में सरकार मेरी ही चलेगी। भारत ने मेरी सरकार की सेवा में आपको भेजा है। आपको हमारे संविधान के तहत काम करना होगा। किसी भ्रम में न रहियेगा और कभी भी हमें दबाने की कोशिश मत कीजियेगा। खैर, जो होना था वही हुआ।

राजा चोग्याल को झुकना पड़ा। आठ मई 1975 को उन्होंने समझौते पर हस्ताक्षर किया। पर, कभी भी सिक्किम का भारत में विलय दिल से स्वीकार नहीं किया। उन्होंने बाहरी दुनिया से भी मदद मांगी मगर कुछ काम न आया। भारत की ओर से चोग्याल को कहा गया कि वह बाहरी दुनिया से कोई सहयोग लेने के फेर में न पड़ें। उनके राजवंश को बरकरार रखा जाएगा। उनका पुत्र ही उनका उत्तराधिकारी होगा पर उन्हें मानना पड़ेगा कि वह भारत गणराज्य के अधीन हैं। मगर, राजा चोग्याल इस बात पर अड़े थे कि सिक्किम उनका आजाद देश है और वह इसे नहीं छोड़ेंगे। 16 मई 1975 को आधिकारिक रूप से भारत गणराज्य में सिक्किम विलय के बाद भी राजा चोग्याल नहीं रुके। जहां वह चीन, पाकिस्तान आदि देशों से मदद का जुगाड़ लगाते रहे वहीं भारत की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को भी अपने पक्ष में करने की कोशिश की। मगर, इंदिरा गांधी टस से मस नहीं हुईं। सिक्किम के भारत में विलय का चीन ने विरोध भी किया और इसकी तुलना 1968 में रूस के चकोस्लोवाकिया पर आक्रमण से कर डाली। तब, इंदिरा गांधी ने चीन को उसका तिब्बत वाला मामला याद दिलाया तो चीन शांत हुआ।

आज के नौजवान जरूर ध्यान दें यह सब हमें खैरात और थाली में सजाकर नहीं मिला। आज़ादी के बाद भी इसके लिए बड़े निर्णयों के साथ कार्य किये गए थे।

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