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कोरोना के कहर में क्यों नहीं लड़ रहे प्राइवेट प्रैक्टिस करने वाले डाक्टर

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आर.के. सिन्हा । जब सारी दुनिया के डॉक्टर, साइंटिस्ट, नर्सिंग स्टाफ वगैरह कोरोना जैसे खतरनाक  वायरस से लड़ रहे हैं और इसकी कोई कारगर वैक्सीन को खोजने में दिन-रात जुटे हुए हैं, तब हमारे प्राइवेट प्रैक्टिस करने वाले डाक्टर कहाँ गायब हैं । वे कहीं दिख या मिल नहीं रहे हैं। क्या उन्हें इस कठिन समय में इस तरह गायब होना चाहिए था? इन्हें रोगी मुंहमांगी फीस देते रहे हैं। लेकिन जब देश और समाज को इनकी सबसे अधिक जरूरत है तब ये घरों में जाकर छिप गए। क्या लॉकडाउन के चलते इन्हें भी अपने क्लिनिक बंद रखने के आदेश मिले हैं? कहना न होगा कि इन हालातों में सबसे ज़्यादा ज़रूरत डाक्टरों की है और ये निजी प्रैक्टिस करने वाले डाक्टर ही जो आज के सबसे लोकप्रिय और कमाऊ हैं, पहले मैदान छोड़ कर कहीं निकल गए । आप अपने शहर से लेकर किसी भी गांव, कस्बे, या मेट्रो शहर का हाल जान लें। आपको सब जगहों से यही खबर मिलेगी कि प्राइवेट प्रैक्टिस करने वाले डाक्टर अपनी-अपनी प्रैक्टिस बंद करके नदारद हैं। क्या उन्हें इस आपातकाल काल में यह करना चाहिए था ? तो अंततः संकट में काम आए सरकारी डाक्टर ही। हालांकि उन्हें बदनाम करने वाले भी हमारे यहां कम नहीं है। लेकिन कोरोना से संक्रमित रोगियों का इलाज तो बेचारे ये ही कर रहे हैं। जरा बता दीजिए कि कौन सा प्राइवेट प्रैक्टिस करने वाला डाक्टर इस वक्त कोरोना के मरीजों की चिकित्सा में जुटा  है?

 गर्भवती महिला की डिलवरी कैसे टलेगी

दरअसल इंसान कुछ बीमारियों को और दर्द को सहन कर सकता है, टाल भी सकता है ।लेकिन हर परेशानी- बीमारी को नहीं टाला जा सकता। गर्भवती महिला की डिलीवरी को कैसे टाला जा सकता है ?  डायलिसिस को आप कैसे टाल सकते हैं ? हार्ट अटैक और ब्रैन हैमरेज को कैसे बर्दाश्त कर सकते हैं ? बच्चों के दर्द कैसे बर्दाश्त किए जाएं ? क्या इन छोटी-छोटी बातों की समझ भी प्राइवेट प्रैक्टिस करने और मोटी रकम कमाने वाले डाक्टरों को  नहीं है। ये इतने पत्थरदिल कैसे हो गए? जब पृथ्वी पर और समूची मानव जाति पर संकट आया हुआ है तो ये इस तथ्य को भूले नहीं कि ये  मां के पेट से ही डाक्टर के रूप में पैदा होकर नहीं बन कर आये थे, उनके डाक्टर बनने में मुल्क का बड़ा पैसा लगा है, वो पैसा  देश की जनता का है, हमारा-आपका सबका है।

डाक्टर बनकर भी खूब कमाया

फिर डाक्टर बनने के बाद भी उन्होंने अवाम से ख़ूब पैसा कमाया है जिससे उन्होंने ऐश की ज़िंदगी गुज़ारी है। आज हालात बिगड़े तो ये पीठ दिखाने लगे। जिस एहतियात के साथ सरकारी मेडिकल स्टाफ़ कोरोना के मरीज़ देख रहे हैं या इमरजेंसी अटैंड कर रहे हैं उसी एहतियात के साथ ये प्राइवेट डाक्टर  अपने फर्ज का निर्वाह करने से क्यों पीछे भाग रहे हैं। आजकल किसी भी सरकारी अस्पताल के डाक्टर दिन में कम से कम 12-14 घंटे तक काम कर रहे हैं। इसी तरह से उनका  साथ देना वाला नर्सिंग स्टाफ भी पूरी मेहनत से काम कर रहा है।

 क्या अपने प्राइवेट क्लिनिकों और अस्पतालों को बंद करके घर बैठ गए ये प्राइवेट प्रैक्टिस करने वाले डाक्टर आजकल पुलिस जवानों को सड़कों पर नहीं देख रहे है? पुलिस हर हाल में मुस्तैद रहती है। अप्रिय   घटनाओं में पुलिसवालों की जान भी गई हैं। देश में कर्फ्यू और लॉकडाउन को ये ही लागू करवाते हां। वर्ना  लोग तो सड़कों पर कभी भी आ जाएं।  इसी तरह से सेना के जवान भी हर हाल में मोर्चे पर डटे रहते हैं, शहीद भी होते हैं क्योंकि उन्हें उस सेवा के लिए चुना गया है और तैयार भी किया गया है। इसी तरह डाक्टरों को भी एक ख़ास सेवा के लिए तैयार किया गया है वो सेवा उनसे हर हाल मे ली जाए, रिस्क है तो रिस्क को मिनिमाइज़ किया जाए।

इस वक्त जनता अन्य तमाम रोगों-तकलीफों से दो-चार हो रही है। आजकल  बैंकों का स्टाफ़ भी काम कर रहा है, किराना वाले, सब्ज़ी वाले दूघ वाले सब अपना काम कर रहे हैं। तो ये  डाक्टर क्यों रणभूमि में उतरने से परहेज कर रहे हैं? सरकार को चाहिए कि वह इन्हें भी अपना काम जारी रखने के लिए कहे। इस सबों को नजदीक के सरकारी  अस्पतालों में रिपोर्ट कर वहां की मडिकल टीम को मदद करने का आदेश जारी करें । जो डाक्टर सरकारी निर्देशों का पालन न करें उन पर भी चाबुक चले। उनका लाइसेंस कैंसिल कर दिया जाए। जनता दर्द से कराहती रहे और ये घरों में बैठे रहें,  यह तो बर्दाशत नहीं किया जा सकता है।

 गंवा दिया छवि सुधारने का मौका

 देखा जाए तो मौजूदा वक्त इन प्राइवेट प्रैक्टिस करने वाले डाक्टरों के लिए सुनहरे अवसर के रूप में आया था, ताकि ये अपनी स्याह हो गई छवि को थोडा उजला कर लें। पर ये तो इस अनुपम अवसर का भी लाभ उठाना तो दूर, अपनी छवि को और खराब ही कर रहे हैं।  तो क्या माना जाए कि इन पर रोगियों से पैसे हड़पने के आरोप सच होते हैं? इस कारण से ही इनके साथ रोगियों के संबंधी और दोस्त कभी-कभी अभद्रता करते  हैं। बेशक सारे निजी प्रैक्टिस करने वाले डाक्टर तो खराब नहीं हैं, पर पैसे के लालच में रोगी का खून चूसने वाले डाक्टरों की तादाद बढ़ती ही जा रही है। ये रोगी को ग्राहक मानते हैं। इनकी इसी सोच के कारण रोगी और समाज इनसे दूर हो गया है। आज  लॉक डाउन को दो हफ्ते हो गए हैं, पर अस्पतालों के आकडे बताते हैं कि मरीजों की संख्या में भरी कमी  हुई है । इसलिए ही इनका पहले वाला समाज में सम्मान नहीं होता। ये रोगियों को टेस्ट के नाम पर चूना लगाते हैं। रोगी की आंखों में धूल झोंकते हैं।

याद रखिए कि जो  डाक्टर अपने रोगियों का मन से इलाज करते हैं, उन्हें अब भी भगवान ही माना जाता है। दिल्ली के एम्स या देश के किसी भी सरकारी अस्पताल के अधिकतर डाक्टरों को उनके मरीज खुदा मानते हैं क्योंकि ये उनकी सेवा में दिन-रात लगे रहते हैं। हालांकि सरकारी अस्पतालों के डाक्टर और शेष स्टाफ बेहद  कठिन और विपरीत हालातों में सेवाएं देते हैं। इनके तनख्वाह भी प्राइवेट अस्पतालों से कम होते हैं । अब ये ही कोरोना से लड़ रहे हैं। कोरोना को धूल में ये ही मिलाएंगे। इन्ही डाक्टरों ने पहले अपने –अपने शहर में दंगों और अन्य अप्रिय घटनाओं के अवसरों पर पीठ नहीं दिखाई है। ये प्राइवेट प्रैक्टिस करने वाले डाक्टरों की तरह सिर्फ पैसा कमाने के बारे में ही नहीं सोचते।  देश-दुनिया सदैव इनकी कृतज्ञ रहेगी।

(लेखक वरिष्ठ संपादक एवं स्तंभकार हैं)

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