क्या मंशा है RJD की
बिहार जनसंख्या के अनुपात में आरक्षण बढ़ाना और प्राइवेट सेक्टर में आरक्षण लागू करना, राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के ये दो चुनावी वादे हैं। इन दो वादों के जरिए आरजेडी ने अपनी मंशा साफ कर दी है कि वह ‘पिछड़े बनाम बाकी जतियां’ के सिद्धांत पर समाज का जातीय ध्रुवीकरण करके बीजेपी को टक्कर देना चाहती है।
आरक्षण की मात्रा और सीमा में बढ़ोतरी का यह प्रस्ताव मंडल आयोग की सिफारिशों से भी एक कदम आगे हैं। इस संदर्भ में यह भी ध्यान देने योग्य है कि सामान्य वर्ग अभी भी 27 फीसदी कोटे को पूरी तरह से पचा नहीं पाया है। इस तरह आरजेडी उम्मीद कर रही है 2015 की वह रणनीति फिर काम कर जाए जिसके तहत उसने जेडीयू और कांग्रेस के साथ मिलकर चुनावों को पिछड़ों और अंगड़ों के बीच महाभारत में बदल दिया था और बीजेपी का सफाया कर दिया था।
2015 में आरजेडी ने आरएसएस चीफ मोहन भागवत के ‘जातीय आरक्षण की समीक्षा’ वाले बयान को मंडल समर्थकों का गुस्सा भड़काने में किया। चार साल बाद, अब आरजेडी पिछड़े वर्ग से कह रही है कि मोदी सरकार का 10 फीसदी अपर कास्ट कोटा पहले से मौजूद जातियों के आरक्षण के कोटे में सेंध लगाने की कोशिश है।
लालू का जेल में होने से लड़खड़ा सकती है रणनीति
हालांकि, उसकी यह रणनीति दो तथ्यों की वजह से लड़खड़ा रही है। पहला, ‘पिछड़े बनाम अगड़े’ की लड़ाई के अहम घटक जेडीयू के सीएम नीतीश कुमार का बीजेपी खेमे में शामिल हो जाना। दूसरा मंडल आक्रोश के प्रतीक लालू प्रसाद का चारा घोटाले की वजह से जेल में होना।
लालू के उत्तराधिकारी तेजस्वी यादव की अगुआई में आरजेडी के कार्यकर्ताओं को उम्मीद है कि कांग्रेस और क्षेत्रीय दलों (उपेंद्र कुशवाहा की आरएलएसपी, जीतन राम मांझी की एचएएम और मुकेश साहनी की विकासशील इंसान पार्टी) को साथ लेने से तमाम जातियों का एक बड़ा तबका उनके साथ होगा। उन्हें उम्मीद है कि इसका बहुत ज्यादा न सही फिर भी पर्याप्त फायदा हो सकता है। पार्टी को यह भी उम्मीद है कि अति पिछड़े और अति दलित जैसा वर्ग जो नीतीश कुमार से छूट गया है वह भी उनके साथ चलेगा। कांग्रेस इसमें शेष जातियों को जुटाकर रखने के लिए गोंद का काम करेगी।
क्या दलितों को लुभा सकेगी
आरजेडी पिछले एक साल से दलितों को भी लुभाने की पूरी कोशिश कर रही है। उन्हें लगता है कि यूपी में बीएसपी की तरह बिहार के दलितों के पास अपनी कोई पार्टी नहीं है और इसका लाभ उठाया जा सकता है।
दलितों में अपनी पैठ बढ़ाने के लिए आरजेडी ने मायावती की बीएसपी को भी साथ लेने की नाकाम कोशिश की थी। जानकारों का कहना है कि यादव, मुस्लिम, दलित वोटों के साथ अगर कुछ अति पिछड़े भी जुड़ गए तो मोदी की अगुआई वाले बीजेपी गठबंधन के लिए मुसीबत खड़ी हो सकती है।