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छोटे बच्चों के सामाजिक चिंतन को न करें नजरअंदाज

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छोटे बच्चों की अपनी अलग दुनिया होती है। एक खास उम्र के बाद उनमें बदलाव देखा जा सकता है। 12 से 36 महीने तक की आयु सीमा के बच्चों को टॉडलर कहा जाता है। इस अवधि के दौरान एक बच्चे का भावनात्मक और संज्ञानात्मक विकास होने लगता है, जिसके कारण उनके सोशल स्किल्स भी डेवलप होते हैं। यह वह वक्त होता है, जब बच्चा घर से बाहर निकलता है। डेकेयर से लेकर प्ले स्कूल आदि में टॉडलर जाने लगते हैं। ऐसे में वह घर के सदस्यों के अतिरिक्त दूसरे बच्चों व व्यस्क लोगों से मिलते हैं।

कभी-कभी इस अवस्था में बच्चे सोशल फीयर्स भी जन्म लेने लगते हैं। हो सकता है कि वह दूसरों के साथ सामाजिक संपर्क होने पर सहज महसूस ना करें। शुरूआती दिनों में नई जगह पर सेट होने में बच्चे थोड़ा समय लगता है, लेकिन अपरिचित लोगों को उसे घबराहट या एंग्जाइटी होती है तो ऐसे में जल्द से जल्द बच्चे की मदद करनी चाहिए, अन्यथा आगे चलकर उसे इस सोशल एंग्जाइटी के कारण कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है।

जानिए कारण
टॉडलर की मदद करने से पहले आपको उनमें होने वाली सोशल एंग्जाइटी के कारणों के बारे में भी जानना चाहिए। वैसे अभी तक यह पूरी तरह क्लीयर नहीं है कि इतनी छोटी उम्र के बच्चों में सोशल एंग्जाइटी का वास्तविक कारण क्या है। हालांकि इसके लिए अधिकतर मामलों में जेनेटिक्स को कारण माना जाता है, क्योंकि यह एक बच्चे के स्वभाव और व्यक्तित्व में योगदान देता है। इसके अलावा, एक बच्चे का वातावरण भी उन्हें सोशल एंग्जाइटी का शिकार बना सकता है। मसलन, अगर घर में पहले से ही कोई बड़ा बच्चा इस तरह की समस्या से पीड़ित हो तो छोटा बच्चा भी उसे देखकर काफी कुछ सीख जाता है। वैसे एक अध्ययन में यह भी पाया गया कि छोटे बच्चे अपनी मां से भी सोशल एंग्जाइटी बिहेवियर सीख सकते हैं। मां द्वारा अनजाने में ही अशाब्दिक संकेत बच्चे को यह सिखा सकते हैं कि अजनबी या अपरिचित व्यक्ति चिंता का एक स्रोत हैं।

यूं करें मदद
अब सवाल यह उठता है कि इतनी कम उम्र के बच्चों की आप किस तरह मदद कर सकती हैं ताकि उनकी सोशल एंग्जाइटी को कम किया जा सके।
• सबसे पहले तो पैरेंट्स घर में हेल्दी सोशल इन्टरैक्शन करें। इससे बच्चा देखता और सीखता है कि बाहरी दुनिया व अजनबी लोगों से बहुत अधिक डरने की आवश्यकता नहीं है।
• बच्चे को नए लोगों से घुलने-मिलने का मौका दें और उन्हें इसके लिए प्रोत्साहित करें। लेकिन कभी भी उसके साथ जबरदस्ती ना करें। इससे बच्चे पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।
• अगर आपका बच्चा पहली बार बाहर जा रहा है तो ऐसे में पहले घर पर उसकी रिहर्सल करने से बच्चे के मन के डर को काफी हद तक कम किया जा सकता है। मसलन, अगर आप उन्हें डेकेयर या प्ले स्कूल ले जा रही हैं तो पहले घर पर रोल प्ले करें। इससे बच्चे को स्कूल के माहौल की काफी जानकारी पहले ही हो जाती है।

• बच्चे की सोशल एंग्जाइटी को कम करने के लिए पहले खुद को शांत रखें। इससे बच्चे को लगता है कि नई जगहों पर जाना या नए लोगों से मिलने-जुलने में कोई डर नहीं है।
• बच्चे को लेकर ओवर-प्रोटेक्टिव ना हों। इससे उनका आत्मविश्वास बूस्ट अप नहीं होता। जिसके कारण वह अपने मन के डर को दूर नहीं कर पाते।
• अगर किसी भी उपाय से आपको पर्याप्त रूप से लाभ ना हो तो ऐसे में आप प्रोफेशनल हेल्प भी ले सकते हैं।

अगर आप अपने बच्चों के विकास में बाधा नहीं बनना चाहते तो, उनकी सामाजिक गतिविधियों पर नजर रखें और बच्चे को सही और गलत के विषय में सटीक जानकारी प्रदान करें, ताकि उसे भी हर चीज का अहसास हो सके। अक्सर बच्चे जब स्कूल की दुनियां में प्रवेश करते हैं, तो उनके लिए एक अलग तरह का माहौल होता है। जिसे बच्चे गहराई से लेते हुए उसका अनुसरण करते हैं।

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