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डिजिटल एडिक्शन की लत से ऐसे पाएं छुटकारा

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नई दिल्ली। इन दिनों बड़ी संख्या में बच्चे ही नहीं बल्कि वयस्क भी इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स की लत का शिकार हो रहे हैं। मनोचिकित्सकों का कहना है कि डिजिटल लत वास्तविक है और यह उतनी ही खतरनाक हो सकती है जितनी की कोई नशे की लत।

टिकटॉक की लत बनी मौत का कारण
पिछले सप्ताह टिकटॉक खेलने से रोकने पर तमिलनाडु में 24 वर्षीय एक मां के आत्महत्या करने और मध्यप्रदेश में पिछले महीने लगातार 6 घंटे पबजी खेलने वाले एक छात्र की दिल का दौरा पड़ने से हुई मौत की खबरों आने के बाद डॉक्टरों ने चेतावनी दी है। विशेषज्ञों का कहना है कि डिजिटल लत से लड़ने के लिए सबसे जरूरी है इस लत के बढ़ने पर इसका एहसास कराना। फोर्टिस हेल्थकेयर के मानसिक स्वास्थ्य एवं व्यावहारिक विज्ञान विभाग के निदेशक का कहना है कि, ‘लोगों के लिए काम, घर के अंदर जीवन, बाहर के मनोरंजन और सामाजिक व्यस्तताओं के बीच संतुलन कायम रखना सबसे महत्वपूर्ण है। उन्हें यह सुनिश्चित करना है कि वे पर्याप्त नींद ले रहे हैं। यह बहुत जरूरी है। इसलिए वयस्कों को प्रति सप्ताह 4 घंटे के डिजिटल डीटॉक्स को जरूर अपनाना चाहिए। इस अंतराल में उन्हें अपने फोन या किसी भी डिजिटल गैजेट का उपयोग नहीं करना चाहिए। अगर किसी को इन चार घंटों में परेशानी होती है तो यह चिंता करने की बात है।’

डिजिटल डीटॉक्स से ऐसे छुड़ाएं गैजट्स और सोशल मीडिया की लत
मोबाइल, कंप्यूटर, लैपटॉप, टैबलट्स.. पता नहीं और क्या-क्या! हमारे आसपास मौजूद डिवाइसेज जितनी सहूलियत हमें देते हैं, उतना ही सेहत को नुकसान भी पहुंचाते हैं। डिजिटल डीटॉक्स से इस नुकसान को कम किया जा सकता है। आगे जानें, क्या है डिजिटल डीटॉक्स और कैसे इससे फायदा उठा सकते हैं आप..

क्या है डिजिटल डीटॉक्स
शरीर से जहरीले पदार्थों, जैसे कि शराब या ड्रग्स को निकालने के लिए किए जाने वाले उपचार को डीटॉक्स (Detox) कहते हैं। इसी तर्ज पर Digital Detox का मतलब हुआ डिजिटल डिवाइसेज से मुक्ति पाने की प्रक्रिया। अपने​ आसपास की सभी डिजिटल डिवाइसेज को स्विच ऑफ करने या कुछ वक्त के लिए उन्हें इस्तेमाल न करने को डिजिटल डीटॉक्स कहते हैं। यह वक्त 24 घंटे से 72 घंटे तक हो सकता है। सोशल साइट्स और तेज कम्युनिकेशन के इस दौर में हम अक्सर मोबाइल या कंप्यूटर से चिपके रहते हैं। इनसे दूर रहने से भले ही आप कुछ वक्त के लिए बाकी दुनिया से कट जाएं, लेकिन ऐसा करके आप खुद और अपने परिवार के और करीब आ सकते हैं। यह मानसिक रूप से भी काफी सुकून देने वाला होता है। डिजिटल डीटॉक्स आपको रिफ्रेश करता है और नई एनर्जी देता है।

डिजिटल डीटॉक्स को अपनाने में ये तरीके होंगे मददगार

इसके लिए मजबूत इच्छाशक्ति की जरूरत होती है। डिजिटल डीटॉक्स को तमाम लोग अपनाना चाहते हैं, लेकिन बिना सही प्लानिंग के यह करना मुश्किल साबित हो सकता है। कुछ लोग मोबाइल से दूरी तो बना लेते हैं, लेकिन कंप्यूटर पर ईमेल आदि चेक करते रहते हैं। कुछ सिर्फ सोशल मीडिया पर जाना छोड़ देते हैं। वैसे, अपनी सहूलियत के हिसाब से कोई भी तरीका अपनाया जा सकता है। ये तरीके मददगार साबित हो सकते हैं:

  • किसी भी तरह के डिजिटल डीटॉक्स पर जाने के लिए अपने करीबियों और सहकर्मियों के अडवांस में बताना बेहतर रहता है। वरना वह आप तक पहुंचने के लेकर परेशान हो सकते हैं। डीटॉक्स पर जाने के तकरीबन 12 घंटे पहले ही सोशल मीडिया के जरिए लोगों के बता सकते हैं कि आप कितने वक्त तक डिजिटल डीटॉक्स पर जा रहे हैं।
  • अक्सर हमें सुबह उठते ही मोबाइल नोटिफिकेशन या ईमेल चेक करके दिन को प्लान करने की आदत होती है। इनके न होने पर अजीब महसूस हो सकता है। ऐसे में सुबह उठ कर वॉक पर जा सकते हैं या कुछ लिखने-पढ़ने का काम कर सकते हैं। पेट्स के साथ वक्त बिता सकते हैं। बच्चों के साथ पार्क में खेलने जा सकते हैं। कुछ लोग सुबह उठ कर मेडिटेशन भी करते हैं। इससे दिमाग काफी फ्रेश होता है।
  • इसकी शुरुआत कब करनी है इसलिए लिए सही वक्त को चुनना बहुत जरूरी है। मिसाल के तौर पर हफ्ते के शुरुआती दिनों में पर्सनल और प्रफेशनल लाइफ काफी बिजी होती है। बेहतर होगा कि वीकेंड या लंबी छुट्टी वाले दिनों में डिजिटल डीटॉक्स आजमाएं।
  • अगर फोन पर म्यूजिक सुनते हैं तो इसके लिए एयरप्लेन मोड इस्तेमाल करें। इससे फोन की सभी सर्विसेज बंद हो जाएगी, लेकिन आप म्यूजिक सुन पाएंगे। अगर कोई प्लेलिस्ट ऑन-लाइन है तो उसे ऑफ-लाइन सुनने के लिए डाउनलोड कर लें।
  • अब मोबाइल ही हमारी अलार्म क्लॉक बन चुका है। मोबाइल को दूर रखें और अलार्म घड़ी को ही सुबह का साथी बनाएं। सुबह उठने के लिए उसे बेड से दूर रखें जिससे उठ कर अलार्म बंद करने जाना पड़े और नींद खुल जाए।
  • मोबाइल और कंप्यूटर का स्क्रीन आंखों को तनाव देता है। रात में सोने से पहले और सुबह उठते ही मोबाइल स्क्रीन से मुलाकात आंखों के लिए परेशानी का सबब बन सकती है। इसी तरह से ईमेल और सोशल मीडिया अकाउंट से कुछ घंटे दूर रह कर ही आप खुद को तरोताजा महसूस करने लगेंगे।
  • मोबाइल और बाकी डिवाइसेज हमारा बहुत सा वक्त लेते हैं। इनके आसपास न होने से आप बोरियत के शिकार हो सकते हैं। ऐसे में जरूरी है कि कोई ऐक्टिविटी प्लान की जाए। मिसाल के तौर पर आप किसी किताब को पढ़ने का टारगेट रख सकते हैं। अगर इंस्टाग्राम के शौकीन हैं तो किसी आर्ट गैलरी में घूम कर आ सकते हैं। फिटनस रुटीन प्लान कर सकते हैं।
  • साल में एक बार डिजिटल डीटॉक्स से कुछ नहीं होगा। साल में इसे कई बार करने की जरूरत है। शुरुआत साल में तीन बार 24 घंटे, 48 घंटे और 72 घंटे के टारगेट के साथ कर सकते हैं। आने वाले सालों में इसे बढ़ा भी सकते हैं।

दैनिक जीवन से दूर जाना डिजिटल लत का संकेत

मनोचिकित्सा विभाग के एक सीनियर कंसल्टेंट का कहना है कि, ‘गैजेट्स के आदी लोग हमेशा गैजेट्स के बारे में सोचते रहते हैं या जब वे इन चीजों का उपयोग नहीं करने की कोशिश करते हैं तो उन्हें अनिद्रा या चिड़चिड़ापन होने लगता है। डिजिटल लत किसी भी अन्य लत जितनी खराब है। तो अगर आपको डिजिटल लत है, तो ये संकेत है कि आप अपने दैनिक जीवन से दूर जा रहे हैं। आप हमेशा स्क्रीन पर निर्भर हैं।’ ऐसे लोग व्यक्तिगत स्वच्छता तथा अपनी उपेक्षा तक कर सकते हैं। वे समाज, अपने परिवार से बात करना भी बंद कर देते हैं और अपनी जिम्मेदारियों के बारे में सोचना या अपने नियमित काम करना भी बंद कर देते हैं। ऐसे लोगों में अवसाद, चिंता, उग्रता, अनिद्रा, चिड़चिड़ापन के साथ-साथ अन्य चीजों पर ध्यान केंद्रित करने में परेशानी भी हो सकती है। मनोचिकित्सक ने सलाह दी कि लोगों को जब लगे कि उनका बच्चा स्क्रीन पर ज्यादा समय बिता रहा है तो उन्हें सबसे पहले अपने बच्चे से बात करनी चाहिए और उन्हें डिजिटल गैजेट्स से संपर्क कम करने के लिए कहना चाहिए।

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