डेढ़ साल बाद रोशन हुई जिंदगी

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    नई दिल्ली। दिव्यांगता को ताकत बना सिविल सर्विसेज में पाया 714वां स्थान है। यह कहना है कि 27 साल के सतेंद्र का।
    सतेंद्र कहते हैं, बचपन में मेरी आंखों की रोशनी नहीं जाती तो शायद मैं अमरोहा में ट्रैक्टर पर बैठा खेत ही जोत रहा होता। खुशी है कि उन लोगों के लिए प्रेरणा बन पाया हूं, जो अपनी अक्षमताओं के कारण जिंदगी की जंग लड़ना ही भूल गए हैं। सतेंद्र डीयू के अरविंदो कॉलेज में पढ़ा रहे हैं। सतेंद्र की चर्चा की वजह उनका सिर्फ टीचर होना नहीं, बल्कि नेत्रहीन होने के बावजूद 27 साल की उम्र में सिविल सर्विसेज की परीक्षा में सफलता हासिल करना है। सतेंद्र ने अपनी शारीरिक परेशानी के बावजूद न सिर्फ यह परीक्षा पास की, बल्कि अपने ही जैसे लोगों को साहस दिया है कि वह अपनी एक अलग पहचान बना सकते हैं।
    सभी अपने अंदर की शक्ति को जानें
    सतेंद्र कहते हैं, बचपन में मेरी आंखों की रोशनी नहीं जाती तो शायद मैं अमरोहा में ट्रैक्टर पर बैठा खेत ही जोत रहा होता। खुशी है कि उन लोगों के लिए प्रेरणा बन पाया हूं, जो अपनी अक्षमताओं के कारण जिंदगी की जंग लड़ना ही भूल गए हैं। सतेंद्र डीयू के अरविंदो कॉलेज में पढ़ा रहे हैं। सतेंद्र की चर्चा की वजह उनका सिर्फ टीचर होना नहीं, बल्कि नेत्रहीन होने के बावजूद 27 साल की उम्र में सिविल सर्विसेज की परीक्षा में सफलता हासिल करना है। सतेंद्र ने अपनी शारीरिक परेशानी के बावजूद न सिर्फ यह परीक्षा पास की, बल्कि अपने ही जैसे लोगों को साहस दिया है कि वह अपनी एक अलग पहचान बना सकते हैं।

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