लोगों में अवेयरनेस की कमी है। लोग व्हाट्सएप मैसेज तो एक दूसरे को फॉरवर्ड करते हैं पर कभी भी खुद उनको अमल में नहीं लेते। आज लोगों का लाइफस्टाइल काफी खराब हो गया है। जिसके चलते लोगों का शरीर बीमारियों का घर बन रहा है। यह कहना है आगरा के गेस्ट्रोइंट्रोलॉजिस्ट डॉ. प्रितुल सक्सेना का। जो की दिल्ली गेट स्थित एडवांस गेस्ट्रोकेयर के डायरेक्टर है तथा रेनबो हॉस्पिटल आगरा के चीफ गेस्ट्रोलॉजिस्ट है। गेस्ट्रोइंट्रोलॉजिस्ट के तौर पर शहर के शीर्ष डॉक्टर्स में शुमार डॉ. सक्सेना ने एक इंटरव्यू के दौरान टीबीआई 9 के अजय शर्मा से बात करते हुए चिकित्सा जगत और अपनी निजी जिन्दगी से जुड़े कुछ मुद्दों पर चर्चा की। पेश है उनसे हुई बातचीत के खास अंश…
आपका बचपन कैसा बीता। डॉक्टर बनने की प्रेरणा आपको कहाँ से मिली?
मेरे दादा जी स्व. डॉ. केएन सक्सेना एसएन मेडिकल कालेज में एमबीबीएस फस्ट बैच के वे गोल्ड मैडलिस्ट रहे। उनके अलावा मेरे पिताजी डॉ. डी के सक्सेना चीफ मेडिकल ऑफिसर झांसी से रिटायर हुए और ताऊ जी जॉइंट डायरेक्टर हेल्थ से रिटायर हुए। दोनों ही प्रशासनिक पदों पर रहे तो शुरू से सभी को मेडिकल प्रोफेशन में देखा तो इन्हीं की प्रेरणा से मैंने यह प्रोफेशन चुना। मेरी बड़ी सिस्टर भी गाइनोकोलोजिस्ट हैं।
आपने अपनी एजुकेशन कहाँ से कम्प्लीट की?
गवर्मेंट मेडिकल कालेज नांदेड महाराष्ट्र से 1999 में मैंने एमबीबीएस के लिए ज्वाइन किया उसके बाद 2007 में मैंने एमडी मेडिसन के लिए आगरा के एसएन मेडिकल कालेज में एडमिशन लिया। 2013 में मैंने जीवी पन्त अस्पताल नई दिल्ली में गेस्ट्रोइंट्रोलॉजी में डीएम के लिए एडमिशन लिया जोकि 2016 में कम्प्लीट हुआ। उसके बाद उसी साल सितम्बर से ही मेरी आगरा में प्रैक्टिस जारी है।
गेस्ट्रोइंट्रोलॉजी ब्रांच ही क्यों चुनी?
शुरू से ही मेरा रुझान मेडिसन की तरफ तो था ही, एमडी मेडिसन करने के बाद मैंने देखा की पेट के रोगियों की संख्या लगातार बढ़ रही है। मेडिकल प्रैक्टिस करते हुए मैंने देखा कि लीवर, स्टमक और पेनक्रियाज रिलेटेड प्रॉब्लम लगातर बढ़ती जा रही हैं तो मुझे लगा कि क्यों न इसी में स्पेशलाईजेशन करके मानवता की सेवा की जाय।
गेस्ट्रोइंट्रोलॉजी में आप अपनी क्या ख़ास स्पेशलिटी मानते हैं?
गेस्ट्रोइंट्रोलॉजी में तीन स्पेशलिटी होती हैं हीपेट्लोजी जोकि लीवर से रिलेटेड है। दूसरी लूमिनल गेस्ट्रोइंट्रोलॉजी जिसमें मुह से लेकर शौच क्रिया के रास्ते तक कि सारी डिसीज आती है। तीसरी पेनक्रियाटिको विलियनसाइंसेज जिसमें लिवर से लेकर पित्त की थैली व पित्त की थैली की नली व प्रेंक्रियास के रोग तक कई प्रकार की बीमारियों से रिलेटेड प्रॉब्लम्स होती हैं। इनका जो ट्रीटमेंट होता है वो एंडोस्कोपी विधि द्वारा संभव है। जिसे इंडोथैरेपी बोलते हैं। मेरा जो एरिया ऑफ़ इंटरेस्ट या स्पेशलाइजेशन है वो इंडोथैरेपी हैं। जिसकी मैंने ख़ास तीन साल की ट्रेनिंग ली है जितने भी एंडोस्कोपीक प्रॉसीजर हैं उनको हम आगरा में करने का प्रयास कर रहे हैं।
इस प्रोफेशन में किस ख़ास लक्ष्य के साथ आप काम कर रहे हैं?
मैं एडवांस एंडोस्कोपीक थैरेप्युपिक प्रॉसीजर को अधिक से अधिक आगरा में अपग्रेड करने की कोशिश कर रहा हूँ। जब मैं दिल्ली में था तब मैं यह फील करता था कि एडवांस गेस्टोइंडोस्कोपी आगरा में नहीं है जिससे कि सारे मरीज दिल्ली रेफर कर दिए जाते हैं तो मुझे लगता था आगरा में एक कमी है जिसको दूर करने की जरुरत है जिसमें काफी हद तक हम कामयाब हुए हैं।
मोटापा आज लोगों में सबसे बड़ी प्रॉब्लम है मोटापे का आंकलन कैसे करें और इससे कौन से रोग होते हैं?
मोटापा जिसको हम ओवेसिटी बोलते हैं। बॉडी मॉस इनडेस्क एक टूल होता है जिसके द्वारा मोटापे को कैटेगराइज किया जाता है। वेट इन केजी डिवाडेड बाय हाईट इन मीटर का होल स्क्वायर होता है। जो वेल्यू निकलकर आती है जोकि अगर 30 के ऊपर होता है तो उसको हम मोटापा ओवेसिटी बोलते हैं और जब यह 40 से ऊपर चला जाता है तो उसको हम मोर्विड ओवेसिटी कहते हैं। इसी को सिंड्रोम एक्स या मेटाबोलिक सिंड्रोम भी कहा जाता है। इसमें डायबिटीज होना ब्लड प्रेशर होना, खून में चिकनाई बढऩा, हार्ट में कमजोरी आना तथा कमर की चौड़ाई बढऩा ये सब आम बात है। ऐसे में शीघ्र डॉक्टर से परामर्श लें।
आज हर तीसरा आदमी इस इस प्रकार के रोगों से ग्रसित है इसकी मुख्य वजह क्या है?
लोगों में अवेरनेस की कमी है लोग व्हाट्सएप मैसेज तो एक दूसरे को फॉरवर्ड करते हैं पर कभी खुद उनको अमल में नहीं लेते। आज लोगों का लाइफस्टाइल काफी खराब हो गया है लोग अधिकतर एक जगह बैठकर काम करते हैं। लोग एक्सरसाइज बिलकुल नहीं करते, साथ ही आज का खान-पान भी शुद्ध नहीं है। जोकि सभी प्रकार के रोगों की जड़ है।
हेल्दी लाइफ स्टाइल के लिए आप क्या सलाह देना चाहेंगे?
देखिये, सबसे पहली बात आपको जरूरी है कि ब्रेकफास्ट, लंच और डिनर का समय निर्धारित रखें। उसको कभी भी न छोड़ें। दूसरी बात नियमित कम से कम 45 मिनट एक्सरसाइज करें। हफ्ते में विशेष परिस्थिति में 2 बार छुट्टी कर सकते हैं, मगर 5 दिन प्रॉपर एक्सरसाइज जरुर करें। खाने-पीने का ध्यान रखें। डेली वेजिटेवल सेलेड या फ्रूट डाईट में जरुर शामिल करें। साथ ही डेली लगभग 250 ग्राम तक दूध, दही या कोई भी डेरी प्रोडक्ट जरुर कन्ज्यूम करें। मिर्च मसाले जितना हो सके कम से कम स्तेमाल करें। कोई भी रिफाइंड या ओलिवऑइल का इस्तेमाल न करें। सरसों का तेल और शुद्ध देशी घी इस्तेमाल में ले सकते हैं।
पेट से जुड़ी प्रॉब्लम किस उम्र के लोगों में अधिक होती हैं?
एक सुपर स्पेशलिस्ट के नजरिये से गौर किया जाय तो 6 महीने से 95 साल तक किसी भी उम्र में पेट से जुड़ी प्रॉब्लम्स हो सकती हैं। लेकिन टीन एज पेसेंट्स आजकल वायरल हैपेटाईटिस से पीडि़त अधिक आ रहे हैं। वहीं 40 से 50 की उम्र में हाइपर एसिडिटी व आंत की सूजन अधिक देखने को मिल रही है।
गेस्ट्रोइंट्रोलॉजी में पेट से जुड़े रोगों का ट्रीटमेंट किया जाता है ऐसे कौन से रोग हैं जोकि पेट की समस्याओं से पैदा होते हैं?
पेट से जुड़े रोगों की बात करें तो पेनक्रियाज शरीर की ऐसी ग्रन्थि है जो शरीर में सभी प्रकार के खाना पचाने के रसायन बनाती है। हम कुछ भी खाएं हमारी बॉडी बिना रसायन की मदद के उसको पचा नहीं सकती। साथ ही साथ पेनक्रियाज शरीर में इन्सुलिन बनाने का काम भी करता है जिससे शुगर कंट्रोल करता है जोकि शरीर में डायबिटीज नहीं होने देता। जब पेनक्रियाज किसी कारण से खराब होने लगता है और वह लगभग 90 प्रतिशत तक डैमेज हो जाता है और जब उसकी वर्किंग कैपेसिटी इतनी नहीं रहती तो लोगों को खाना नहीं पचता, बिना पचा खाना शौच के समय निकल जाना व डायबिटीज हो जाना ये बहुत कॉमन है और ऐसे में ये जो डायबिटीज होती है इसको हम व्रीटल डाइवटीज बोलते हैं जोकि अधिकतर वना इन्सुलिन के कंट्रोल नहीं होती है दूसरा लीवर है जोकि हमारे शरीर की सभी मॉस पेशियों को, हड्डियों को मशल्स को ब्लड हार्ट को या जहाँ भी प्रोटीन की आवश्यकता पड़ती है वो लीवर से मिलती है और जब लीवर काम करना बंद कर देता है तो प्रोटीन की कमी आ जाती है। जिससे कई प्रकार की बीमारियां जन्म लेती हैं। मैं हमेशा कहता हूँ कि लीवर हमारा सबसे अच्छा दोस्त है किसी भी बॉडी पार्ट की अपेक्षाकृत लीवर की कैपेसिटी रीजनरेटिव केपेसिटी बेहतर है।