ट्रेवल डेस्क। सैदुलाजाब गांव साकेत से सटा हुआ वो शहरी गांव है, जहां कुछ साल पहले लोग गाय पाला करते थे। लेकिन सैदुलाजाब का अब शहरीकरण हो चुका है। इसके बदले रूप को देखकर हर कोई आश्चर्य से भर जाता है। दिल्ली में बहुत से छोटे-छोटे इलाके आज बड़े शॉपिंग हब बन चुके हैं। समय के साथ यहां के कई गांव की रूपरेखा भी बदल चुकी है। ऐसे ही गांव के जैसा था सैदुलाजाब, जो कि अब युवाओं का अपना अड्डा बन चुका है। यहां की चंपा गली में युवा अपनी सारी टेंशन भूलकर खूब एंजॉय करते हैं। तो आज हम आपको बता रहे हैं सैदुलाजाब के खास चिल पॉइंट के बारे में…
युवाओं का पसंदीदा अड्डा
अब सैदुलाजाब युवाओं का पसंदीदा प्लेस बन गया है। यहां उनके लिए किसी चीज की कमी भी नहीं है। अपनी स्ट्रेसफुल लाइफ को थोड़ा रिलैक्स देने के लिए यहां यंगस्टर्स आते हैं। यह लुटियंस जोन और साउथ दिल्ली का टूरिस्ट हब बन चुका है। सैदुलाजाब आज के युवाओं के लिए इंस्टा पॉइंट जैसा है। फेसबुक, इंस्टाग्राम और स्नैपचैट आदि सोशल मीडिया पर सैदुलाजाब की चंपा गली काफी फेमस है। इसका गली का नाम चंपा है पर इसे पर्शियन स्टाइल में डिजाइन किया गया है। यहां पर्शियन कैफे की भरमार होने के कारण यह फेमस टूरिस्ट स्पॉट बनता जा रहा है।
म्यूजिक स्टोर्स से लेकर बुक लॉज तक सब मिलेगा
साकेत मैट्रो के नजदीक बसे सैदुलाजाब के आसपास कई और टूरिस्ट प्लेस भी हैं, जो इस जगह को और भी खास और लोगों की पहली पसंद बनाते हैं। गार्डन ऑफ फाइव सेंसेस और चंपा गली घूमने के लिए दिल्ली के हर कोने से लोग आते हैं। वहीं, म्यूजिक स्टोर्स, कैफे व बुक लॉज, इसे एक कल्चरल लुक देते हैं। ग्रीन पार्क से मेधा साहू ने बताया कि शहर के हल्ले से दूर जब शांति की तरफ आना होता है तो मैं यहीं आती हूं। यहां आकर मैं किताबें पढ़ती हूं। फोटो भी खीचती हूं, यह जगह इतनी सुंदर है कि यहां बहुत अच्छी फोटो आती हैं।
चाय के साथ कॉफी पर चर्चा
अगर आप कॉफी पीने के शौकीन हैं तो फिर यहां कि कॉफी आपका मूड बदकर रख देगी। यहां के बाजार में ब्लू टोकाई कॉफी रोस्टर में मिलती है दिल खुश कर देने वाली होती है यह मैजिकल कॉफी। कलरफुल रोज कैफे में पुराने फर्नीचर के साथ आपको नए एक्सपेरिमेंट होते दिखाई देंगे। चाय पर चर्चा करने के लिए सबसे अच्छी जगह है चंपा गली का जुगमुग ठेला। यहां बने शांति और सुकून के माहौल में आप बातें करना और बुक पढ़ना काफी पसंद करेंगे। वहीं, कोरियन कुजीन पेश करते हुए कोरिया बिंग कैफे और फो किंग ऑसम कैफे आपको कोरियन कुजीन की लाजवाब डिश पेश करेंगे।
गांव से मॉर्डन प्लेस बनने तक का सफर
स्थानीय लोगों का कहना है कि उन्हें अपने गांव के शहरी होने में कोई दिक्कत नहीं है बल्कि इससे यहां का लुक बदल गया है और हमेशा रौनक रहने लगी है। इसी गांव के रहने वाले बिसन सिंह ने बताया कि कुछ साल पहले तक यहां पर सिर्फ गाय ही पाली जाती थीं। इसके अलावा कुछ फर्नीचर की दुकानें भी थीं, जिनपर थोड़े-बहुत लोग आते थे। फिर कुछ लोग हमारे पास जमीन किराए पर लेने आए। इस जगह पर उन्होंने बुक कैफे बनाए और भी कई कॉफी शॉप खोलीं। धीरे-धीरे इन दुकानों की संख्या बढ़ती गई। अब यहां पूरी दिल्ली से लोग घूमने आते हैं।