Home Blog वर्गहीन, जातिहीन और संघर्ष मुक्त सामाजिक व्यवस्था के समर्थक थे स्व. पंडित...

वर्गहीन, जातिहीन और संघर्ष मुक्त सामाजिक व्यवस्था के समर्थक थे स्व. पंडित दीनदयाल उपाध्याय

527
0

जब तक पंक्ति में खड़े अंतिम व्यक्ति तक सेवा नहीं पहुँचती तब तक देश विकसित नहीं कहा जा सकता। इस सोच के साथ जिस चिंतक ने राजनीति में शुचिता की कल्पना की, देश का दुर्भाग्य है उन्हें हमने समय से पहले खो दिया। एक असाधारण व्यक्तित्व के रूप में 25 सितंबर 1916 को भारत भूमि पर पंडित दीनदयाल उपाध्याय के रूप में एक दार्शनिक, समाजशास्त्री, अर्थशास्त्री एवं कुशल राजनीतिज्ञ ने जन्म लिया। पंडित उपाध्याय ने एक ऐसे राष्ट्र के निर्माण की कल्पना की थी, जहां विकास अंतिम पंक्ति के व्यक्ति तक पहुंचे। वह वर्गहीन, जातिहीन और संघर्ष मुक्त सामाजिक व्यवस्था के समर्थक थे। इस दिशा में निसंदेह काफी प्रयास किये गए हैं, लेकिन फिर भी काफी कुछ किया जाना शेष है।

यह कहना गलत नहीं होगा कि मौजूदा वक्त में दुनिया जिस मोड़ पर खड़ी है वहां पंडित दीनदयाल उपाध्याय के विचारों को आत्मसात करना बेहद जरूरी हो गया है। पूंजीवादी एवं समाजवादी विचारधाराएं हमें आगे होने का अहसास तो करा रही हैं, लेकिन इस अहसास में एक खोखलापन है। पंडित उपाध्याय को इस खोखलेपन का भान था, इसलिए वे कहते थे कि पूंजीवादी एवं समाजवादी विचारधाराएं केवल हमारे शरीर एवं मन की आवश्यकताओं पर विचार करती हैं, और इसलिए वे भौतिकवादी उद्देश्य पर आधारित हैं, जबकि संपूर्ण मानव विकास के लिए इनके साथ ही आत्मिक विकास भी आवश्यक है।

दीनदयाल उपाध्याय जितने अच्छे राजनेता थे, उतने ही उच्च कोटि के चिंतक, विचारक और लेखक भी थे। वह केवल समस्या पर ध्यान आकर्षित नहीं करते थे बल्कि उसका समाधान बताने में भी विश्वास रखते थे। उन्होंने दुनिया को ‘अंत्योदय’ से परिचित कराया। एक ऐसा विचार, जो सबसे पहले और सबसे अधिक सहायता उस व्यक्ति को उपलब्ध कराने पर जोर देता है, जिसकी जरूरत सबसे अधिक है। सरल शब्दों में कहा जाए तो ज़रुरतमंदों में से एक ऐसे व्यक्ति का चुनाव करना, जिसे मदद की दरकार सबसे ज्यादा हो और फिर उसी से शुरुआत करते हुए प्रत्येक व्यक्ति तक सहायता पहुंचाना। पंडित उपाध्याय मानते थे कि जिस झोंपड़ी में पहले से ही दीया जल रहा है, वहां बल्ब लगाने से बेहतर होगा पहले उस घर को रोशन किया जाए जो अंधकार में डूबा है। अंधेरे में जलाया गया एक छोटा सा दीया भी उम्मीदों के उजाले का प्रतीक बन सकता है।

पंडित दीनदयाल के चिंतन को मुख्यत: अंत्योदय के रूप में याद किया जाता है, लेकिन एकात्म मानववाद भी उनकी दूर दृष्टी को दर्शाता है। उनके द्वारा स्थापित एकात्म मानववाद की परिभाषा वर्तमान परिप्रेक्ष्य में ज्यादा सामयिक है। दीनदयाल उपाध्याय कहते थे कि जिस प्रकार मनुष्य का शरीर, मन, बुद्धि और आत्मा के ठीक रहने पर वह चरम सुख और वैभव की प्राप्ति कर सकता है, ठीक उसी तरह यदि समाज के प्रत्येक तबके पर ध्यान दिया जाए तो भारत को आदर्श राष्ट्र बनने से कोई नहीं रोक सकता। एकात्म मानववाद का उद्देश्य एक ऐसा स्वदेशी सामाजिक-आर्थिक मॉडल विकसित करना था, जिसमें विकास के केंद्र में मानव हो। यानी व्यक्ति एवं समाज की आवश्यकता को संतुलित करते हुए प्रत्येक व्यक्ति को गरिमापूर्ण जीवन प्रदान करना। यह व्यक्तिवाद का खंडन करता है और एक पूर्ण समाज के निर्माण के लिए परिवार तथा मानवता के महत्व को प्रोत्साहित करता है।

पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने कई दशक पहले ही आज की समस्या और उसके समाधान को रेखांकित कर दिया था। वे दूरदृष्टा थे, उन्हें पता था कि आजादी के बाद जिस तरह से पश्चिमी संस्कृति, विचारधारा को अपनाने की इच्छाएं जन्म ले रही हैं, वो आगे चलकर एक नई समस्या को जन्म देगी। विकास की दौड़ में वह व्यक्ति सबसे पीछे छूट जाएगा जिसके विकास के नाम पर सबकुछ किया जा रहा है। पंडित उपाध्याय के दर्शन, विचारों को पढ़कर ऐसा प्रतीत होता है, जैसे मौजूदा परिस्थितियों, समस्याओं को देखकर, उनका आंकलन करके ही उन्होंने उन्हें लिखा है। आज यदि पंडित दीनदयाल उपाध्याय हमारे बीच होते तो अपनी कृतियों के लिए उन्हें नोबल पुरस्कार मिलना तय था।

11 फरवरी, 1968 को वे हम सबको छोड़कर दुनिया से रुखसत हो गए। उनका निधन आज तक पहेली बना हुआ है। पंडित दीनदयाल उपाध्याय लखनऊ से पटना जा रहे थे, इसी दौरान उनका शव मुगलसराय रेलवे यार्ड में पाया गया। उनकी मौत की गुत्थी सुलझाने के लिए सीबीआई से भी जांच कराई गई, मगर कुछ हासिल नहीं हुआ। आज मुगलसराय स्टेशन का नाम दीनदयाल नगर रखकर उनकी स्मृति को संजोया गया है। वर्तमान मोदी सरकार दीनदयाल जी की अंत्योदय से प्रेरित कार्य कर रही। अंतिम व्यक्ति तक मात्र सेवा नहीं, अंतिम पंक्ति में खड़ा व्यक्ति देश का राष्ट्रपति भी हो सकता है यह करके दिखा दिया। जिस तेज़ी से हम विकासशील से विकसित की ओर बढ़ रहे हैं, अंत्योदय की परिकल्पना सार्थक रूप लेगी।
पंडित दीन दयाल उपाध्याय की अंत्योदय की अवधारणा से प्रेरित होकर ही अंत्योदय अन्नपूर्णा सेवा शुरू की। उनके अवतरण दिवस पर उनकी स्मृति को पुनश्च नमन।

लेखक पूरन डावर राष्ट्रीय चिंतक एवं आर्थिक विश्लेषक हैं।

 

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here